बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

हम्द व सलात के बाद

आज मुसलमानों के क़िबल ए अव्वल, मस्जिदे अक़सा को यहूदियों को हाथों से नुक़्सान का ख़तरा है। कुछ अखबारों के अनुसार, लगभग बीस हज़ार फ़िलस्तीनी जवान उसके चारों तरफ़ खड़े होकर इसकी हिफ़ाज़त कर रहे हैं। इस हालत में दुनिया के तमाम मुसलमानों, ख़ास तौर पर इस्लामिक देशों के हाकिमों पर फ़र्ज़ है कि इस बारे में गहराई के साथ ग़ौर के साथ मस्जिद अक़सा की हिफ़ाज़ की भर पूर कोशिश करें।

मस्जिदे अक़सा मुसलमानों का क़िबल ए अव्वल होने के अलावा, वह जगह भी है, जहाँ पहुँच कर, शबे मेराज पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का वह ज़मीनी सफर ख़त्म हुआ, जो मस्जिदुल हराम से शुरू हुआ था और वहीं से आसमान का सफ़र शुरू हुआ था।

इस बारे में किसी भी तरह की ग़फ़लत जायज़ नही है। क्योंकि इस्राईल प्लान के साथ काम कर रहा है और ज़ाहिर में लोगों को यह यक़ीन कराने की कोशिश कर रहा है कि यह काम केवल चरमपंथी यहूदियों का है और हुकूमत इसके ख़िलाफ़ है।

वास्तविक्ता यह है कि यह काम, इस्राईल की सरकार, अमेरीका से साँठ गाँठ करके उसकी हिमायत के साथ कर रही है। इस बड़े ख़तरा का अंदाज़ा उसी वक़्त होगा जब हम अमेरीका व यहूदियों की इस्लाम दुश्मनी पर ग़ौर करेंगे। हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि यह लोग इस्लाम को ख़त्म करने और मस्जिदुल हराम व मस्जिदुन नबी को विध्वंस करने की फ़िक्र में है।

ऐ दुनिया के मुसलमानों ! ऐ इस्लाम व दीन का दम भरने वालो ! इस प्रोपेगंडे के सामने हरगिज़ ख़ामौश न बैठो। आख़िर में दुआ करता हूँ कि अल्लाह तमाम मुक़द्दस मक़ामात, ख़ास तौर पर मुसलमानों की प्राथमिक मस्जिदों की हिफ़ाज़त फ़रमाये और तमाम इस्लामिक देशों, विशेष रूप से फ़िलस्तीन को इस्राईल के शर से महफ़ूज़ रखे।

इन्शाल्लाह तआला

मुहम्मद फ़ाज़िल लंकरानी
11 अप्रैल सन् 2005