496. मुबतदिअः, मुज़तरिबः, नासियः और अदद की आदत रखने वाली औरत को अगर ऐसा ख़ून आये जिसमें हैज़ की निशानियाँ मौजूद हों या उसे यक़ीन हो कि यह तीन दिन तक जारी रहेगा तो उसे फ़ौरन इबादत तर्क कर देनी चाहिए। अगर बाद में पता चले कि वह हैज़ का खून नही था, तो छोड़ी हुई इबादत की क़ज़ा करे। लेकिन अगर उसे यक़ीन न हो कि यह तीन दिन तक जारी रहेगा और उसमें हैज़ की निशानियाँ भी न हो तो एहतियाते वाजिब की बिना पर तीन दिन तक इस्तेहाज़ः वाले काम करने चाहिए और जो काम हाइज़ पर हराम हैं, उन्हें छोड़ देना चाहिए, अगर वह ख़ून तीन दिन से पहले बंद न हो तो उसे हैज़ मान लेना चाहिए।
497. जो औरत हैज़ की आदत रखती हो चाहे यह आदत वक़्त के एतेबार से हो या अदद के एतेबार से या वक़्त और अदद दोनों के एतेबार से, अगर उसे यके बाद दीगरे दो महीने उसकी आदत के ख़िलाफ़ खून आये और उसका वक़्त या दिन या वक़्त और दिन दोनों बराबर हो तो उसकी आदत, इन दो महीनों में जिस तरह ख़ून आया है, उसमें बदल जायेगी। मसलन अगर पहले उसे महीने की पहली तारीख़ से सातवीं तारीख़ तक ख़ून आता था और अब लगातार दो महीनों में उसे दसवीं तारीख़ से सतरहवीं तारीख़ तक खून आया हो तो उसकी आदत दस से सतरहवीं तक हो जायेगी।
498. एक महीने से मुराद ख़ून के शुरू होने से तीस दिन तक है, महीने की पहली तारीख़ से महीने के आख़िर तक नही।
499. अगर किसी औरत को आम तौर पर महीने में एक बार ख़ून आता हो लेकिन किसी महीने में दो बार आजाये और उस ख़ून में हैज़ की निशानियाँ हों तो अगर उन दरमियानी दिनों की तादाद जिनमें उसे खून नही आया है दस दिन से कम न हो तो उसे चाहिए कि दोनों ख़ूनों को हैज़ क़रार दे।
500. अगर किसी औरत को तीन या तीन से ज़्यादा दिनों तक ऐसा ख़ून आये जिसमें हैज़ की निशानियाँ मौजूद हों और उसके बाद दस या दस से ज़्यादा दिनों तक ऐसा ख़ून आये जिसमें इस्तेहाज़ः की निशानियाँ हों और उसके बाद फिर तीन दिन तक हैज़ की निशानियों के साथ ख़ून आ जाये, तो उसे चाहिए कि उस पहले और आख़िरी ख़ून को जिसमें हैज़ की निशानियाँ पाई जाती हैं, हैज़ क़रार दे।
501. अगर किसी औरत का ख़ून दस दिन से पहले बंद हो जाये और उसे यक़ीन हो कि उसके बातिन में (अन्दर) हैज़ का ख़ून नही है, तो उसे अपनी इबादत के लिए ग़ुस्ल कर लेना चाहिए, चाहे उसे यह गुमान हो कि दस दिन पूरे होने से पहले उसे दोबारा ख़ून आ जायेगा। लेकिन अगर उसे यक़ीन हो कि दस दिन पूरे होने से पहले उसे दोबारा ख़ून आ जायेगा तो न उसे ग़ुस्ल करना चाहिए और न नमाज़ पढ़नी चाहिए बल्कि उसे हाइज़ के अहकाम पर अमल करना चाहिए।
502. अगर किसी औरत का ख़ून दस दिन से पहले बंद हो जाये और इस बात का एहतेमाल हो कि उसके बातिन में (अन्दर) हैज़ का ख़ून मौजूद है तो उसे चाहिए कि कुछ देर के लिए अपनी शर्मगाह में रूई रखे और उसे थोड़ू देर के बाद निकाल कर देखे, अगर वह साफ़ हो तो ग़ुस्ल करे और इबादत अंजाम दे और अगर वह सन गया हो तो चाहे उस पर जर्द रंग का ही ख़ून लगा हो तो इस सूरत में अगर वह हैज़ की मुऐय्यन आदत न रखती हो या उसकी आदत दस दिन की हो तो उसे इन्तेज़ार करना चाहिए और अगर दस दिन से पहले ख़ून बंद हो जाये तो ग़ुस्ल कर लेना चाहिए और अगर दसवे दिन के ख़ात्मे पर ख़ून बंद हो जाये या दस दिन के बाद भी आता रहे तो दसवें दिन ग़ुस्ल कर लेना चाहिए और अगर उसकी आदत दस दिनों से कम हो और वह जानती हो कि दस दिन से पहले या दसवें दिन के ख़ात्में पर ख़ून बंद हो जायेगा तो उसे ग़ुस्ल नही करना चाहिए। अगर उसे यह एहतेमाल हो कि उसे दस दिन से ज़्यादा ख़ून आयेगा तो एहतियाते वाजिब यह है कि एक दिन के लिए इबादत तर्क करे और वह इसके बाद दस दिन तक के लिए भी इबादत तर्क कर सकती है लेकिन बेहतर यह है कि दस दिन तक उन कामों को छोड़े रहे जो हाइज़ पर हराम है और मुस्तेहाज़ः के कामों को अंजाम दे। ्गर दस दिन पूरे होने से पहले या दसवें दिन के ख़ात्में पर ख़ून बंद हो जाये तो वह सब हैज़ है और अगर दस दिन से ज़्यादा ख़ून आये तो अपनी आदत के दिनों को हैज़ और बाक़ी को इस्तेहाज़ः क़रार दे और जो इबादत आदत के दिनों के बाद अंजाम नही दी है उसकी क़ज़ा करे।
503. अगर कोई औरत कुछ दिनों को हैज़ क़रार देकर उनमें इबादत न करे, और बाद में उसे पता चले कि वह ख़ून, हैज़ नही था, तो उसे चाहिए कि जो नमाज़ें और रोज़े उसने उन दिनों में छोड़े हैं उनकी क़ज़ा करे और अगर कुछ दिनों इस ख़्याल से इबादत करती रही हो कि जो खून आ रहा है वह हैज़ नही है और बाद में पता चले कि वह ख़ून हैज़ था तो अगर उन दिनों में उसने रोज़े रखे हैं तो उनकी क़ज़ा करना वाजिब है।