504. बच्चे के ज़िस्म का पहला हिस्सा माँ के पेट से बाहर आने के वक़्त से जो ख़ून औरत को आता है अगर वह दस दिन से पहले या दसवें दिन के खात्मे पर बन्द हो जाए तो वह खूने निफ़ास है। औरत को निफ़ास की हालत में (नफ़्सा) कहते हैं।
505. जो ख़ून औरत को बच्चे का पहला हिस्सा बाहर आने से पहले आये वह निफ़ास नहीं है।
506. बच्चे की ख़िल्क़त का पूरा होना ज़रुरी नहीं है, बल्कि अगर ऐसा जमा हुआ ख़ून भी औरत के रहम (गर्भाश्य) से निकले जिसके बारे औरत ख़ुद जानती हो या जिसे देख कर इस काम के चार माहिर इंसान यह कहें कि अगर यह यह रहम में रह जाता तो इंसान बनता, तो उसके बाहर आने के बाद से दस दिन तक आने वाला ख़ून निफ़ास है।
507. हो सकता है कि निफ़ास का ख़ून एक लहज़े (पल) से ज़्यादा न आये, लेकिन वह दस दिन से ज़्यादा नही आता।
508. अगर किसी औरत को शक हो कि इस्क़ात(गर्भपात) हुआ है या नही या जो इस्क़ात हुआ वह बच्चा था या नही तो उसके लिए तहकीक़ करना ज़रुरी नहीं और उसे आने वाला ख़ून शरअन निफ़ास नहीं है।
509. किसी आम मस्जिद में ठहरना, मस्जिदुल हराम और मस्जिदुन नबी में जाना, अपने बदन के किसी हिस्से को क़ुरआन की तहरीर (लेख) से लगाना और वह दूसरे सभी काम जो हाइज़ पर हराम हैं, नफ़्सा पर भी हराम हैं और जो कुछ हाइज़ पर वाजिब, मुस्तहब व मक़रूह है वह नफ़्सा पर भी वाजिब, मुस्तहब व मकरूह है।
510. अगर औरत को निफ़ास की हालत में तलाक़ दी जाये तो वह बातिल है और निफ़ास की हालत में उससे जिमाअ (संभोग) करना हराम है। अगर उसका शौहर उससे जिमाअ (संभोग) करे तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि जो हुक्म हैज़ के अहकाम के बारे में बयान किया गया है उसके मुताबिक़ कफ़्फ़ारा अदा करे।
511. जब औरत को निफ़ास का ख़ून आना बंद हो जाये तो उसे गुस्ल कर के अपनी इबादत अंजाम देनी चाहिए। यह ग़ुस्ल वुज़ू से किफ़ायत करता है (यानी इस ग़ुस्ल के बाद इबादत के लिए वुज़ू करने की ज़रूरत नही है।) अगर दोबारा ख़ून आ जाये और बच्चे की पैदाइश के वक़्त से दस दिन के अन्दर अन्दर दूसरा ख़ून भी बंद हो जाये तो वह सारा ख़ून निफ़ास है। अगर दरमियान में ख़ून बंद रहने के दिनो में कोई रोज़ा रखा है तो उसकी कज़ा करना ज़रूरी है।
512. अगर औरत को निफ़ास का ख़ून आना बंद हो जाये और उसे यह एहतेमाल हो कि उसके बातिन में खून मौजूद है, तो उसे चाहिए थोड़ी सी रूई अपनी शर्मगाह (यौनी) मे रखे और कुछ देर के बाद उसे बाहर निकाल कर देखे अगर उस पर ख़ून न लगा हो तो इबादत के लिये गुस्ल करे।
513. अगर औरत को निफ़ास का ख़ून दस दिन से ज़्यादा आये और वह हैज़ में आदत रखती हो तो आदत के दिनो के बराबर की मुद्दत निफ़ास और बाक़ी इस्तेहाज़ः है। एहतियाते वाजिब यह है कि आदत के दिनों के बाद वाले दिन से बच्चे की पैदाइश के दसवें दिन तक अपनी इबादतों को मुस्तेहाज़ः के अहकाम के मुताबिक़ अंजाम दे। और अगर उसे हैज़ की आदत ना हो तो दस दिन तक निफ़ास और बाक़ी इस्तेहाज़ः है। इन दोनों सूरतों में एहतियाते मुस्तहब यह है दसवें दिन के बाद से बच्चे की पैदाइश के अट्ठारवें दिन तक अपनी इबादत को इस्तेहाज़ः के अहकाम के मुताबिक़ बजा लाए और जो काम नफ्सा पर हराम है उन्हें छोड़ दे।
514. निफ़ास के बाद आने वाले हैज़ के ख़ून के बीच में दस दिन का फ़ासिला होना चाहिए, लिहाज़ा अगर किसी औरत को निफ़ास के दिन पूरे होने के बाद दस दिन से पहले कोई ख़ून आये तो वह इस्तेहाज़ः है, चाहे वह उसकी आदत के दिनों में ही आये।