ग़ुस्ले मसे मैयित

515.          अगर कोई इंसान, किसी ऐसे मुर्दा इंसान के बदन को छुए (यानी अपने बदन का कोई हिस्सा उससे लगाए) जो ठंडा हो चुका हो और जिसे अभी ग़ुस्ल न दिया गया हो तो उसे चाहिए कि ग़ुस्ले मसे मैयित करे। चाहे वह उसे उसने नींद की हालत में छुए या जागते हुए, चाहे अपने आप छुए या किसी और तरीक़े से छू जाये, यहाँ तक कि अगर उसका नाखुन या हड्डी मुर्दे के नाख़ुन या हड्डी से छू जाए तब भी उसे ग़ुस्ल करना चाहिए। लेकिन अगर मुर्दा हैवान को छुआ जाए तो ग़ुस्ल वाजिब नहीं है।

516.           जिस मुर्दे का तमाम बदन ठंडा न हुआ हो उसे छुने से ग़ुस्ल वाजिब नहीं होता, चाहे उसके बदन का वह हिस्सा ही क्यों न छुआ जाये जो ठंडा हो चुका हो।

517.           अगर कोई इंसान अपने बाल मुर्दे के बदन से लगाए या अपना बदन मुर्दे के बालों से लगाए या अपने बाल मुर्दे के बालों से लगाये तो उस पर ग़ुस्ल वाजिब नहीं है। लेकिन अगर बाल इतने छोटे हों कि उनका मस करना मुर्दे छूना समझा जाये तो ग़ुस्ल वाजिब है। 

518.     मुर्दा बच्चे को छुने पर यहाँ तक कि ऐसे सिक़्त शुदा (गर्भपात हुए)  बच्चे को छूने पर जो चार महीने का पूरा हो चुका हो हो ग़ुस्ले मसे मैयित वाजिब है। बल्कि बेहतर यह है कि अगर चार महीने से कम के सिक़्त हुए बच्चे को भी छुआ जाये तो तब भी ग़ुस्ल किया जाये। इस बिना पर अगर चार महीने का मुर्दा बच्चा पैदा हुआ हो तो उसकी माँ को ग़ुस्ले मसे मैयित करना चाहिए, बल्कि अगर वह चार महीने से कम का हो तब भी उसकी माँ को ग़ुस्ले मसे मैयित करना चाहिए।

519.     जो बच्चा माँ के मरने के बाद दुनिया में आये  उस पर बालिग़ होने के बाद  ग़ुस्ले मसे मैयित करना वाजिब है।  

520.     अगर कोई इंसान एक ऐसी मैयित को मस करे जिसे तीनों ग़ुस्ल मुकम्मल तौर पर दिये जा चुके हों, तो उस पर ग़ुस्ल वाजिब नहीं होता। लेकिन अगर वह तीसरा ग़ुस्ल मुकम्मल होने से पहले मैयित के बदन के किसी हिस्से को मस करे, तो चाहे उस हिस्से को तीसरा ग़ुस्ल दिया जा चुका हो, उस इंसान के लिए ग़ुस्ल मसे मैयित करना ज़रूरी है।

521.     अगर कोई दीवाना या नाबालिग़ बच्चा मैयित को छुए तो दीवाने को आक़िल होने पर और बच्चे को बालिग़ होने के बाद ग़ुस्ले मसे मैयित करना ज़रूरी है। अगर कोई नाबिलग़ मगर मुमय्यिज़ (अच्छे बुरे को समझने वाला) बच्चा किसी मु्र्दे को छुए और मुमय्यिज़ होने की हालत में ही ग़ुस्ल करे तो उसका ग़ुस्ल सही है।

522.     अगर किसी ज़िन्दा इंसान के बदन से या किसी ऐसे मुर्दे के बदन से जिसे ग़ुस्ल न दिया गया हो कोई ऐसा हिस्सा जुदा हो जाए जिसमें हड्डी मौजूद हो और इससे पहले के जुदा होने वाले हिस्से को ग़ुस्ल दिया जाए, कोई इंसान उसे छू ले तो उसे ग़ुस्ले मसे मैयित करना चाहिए लेकिन अगर उस जुदा होने वाले हिस्से में हड्डी न हो तो उसे छूने पर ग़ुस्ल वाजिब नही है।

523.     अगर मुर्दे के बदन से जुदा हुई हड्डी या दाँतों को उन्हें ग़ुस्ल देने से पहले छुआ जाये तो एहतियाते वाजिब की बिना पर ग़ुस्ल करना चाहिए। इसी तरह ज़िन्दा इंसान के बदन से जुदा होने वाली उस हड्डी को छूने पर जिस पर गोश्त न हो, एहतियाते वाजिब की बिना पर ग़ुस्ल करना चाहिए। लेकिन किसी ज़िंदा इंसान के बदन से जुदा होने वाले उन दाँतों को छूने पर ग़ुस्ल वाजिब नही है, जिन पर गोश्त न हो। 

524.     ग़स्ले मसे मैयित का तरीक़ा वही है जो ग़ुस्ले जनाबत का है। यह ग़ुस्ल भी वुज़ू से किफ़ायत करता है (यानी इस ग़ुस्ल के बाद नमाज़ के लिए वुज़ू करने की ज़रूरत नही है।)  

525.     अगर कोई इंसान कई मैयितों को छुए या एक ही मैयित को कई बार छुए तो उसके लिए एक ग़ुस्ल काफी है।

526.     जिस इंसान ने मैयित को मस करने के बाद ग़ुस्ल न किया हो उसके लिये मस्जिद में ठहरना और बीवी से जिमाअ करना और उन आयात का पढना जिनमें वाजिब सजदा है ममनू नहीं है, लेकिन नमाज़ और उस जैसी इबादत के लिये ग़ुस्ल करना ज़रूरी है और बेहतर यह है कि वुज़ू भी करे।