527. जो मुसलमान मुहतज़र हो यानी (जिसकी जान निकल रही हो) चाहे वह मर्द हो या औरत, बडा हो या छोटा, उसे कमर के बल इस तरह लिटाना चाहिए कि उसके पैरों के तल्वे क़िब्ला रुख़ हों।
528. एहतियाते वाजिब जब तक मैयित का ग़ुस्ल पूरा न हो उसे क़िब्ला रुख़ लिटायें। लेकिन जब उसका ग़ुस्ल पूरा हो जाए तो बेहतर यह है कि उसे इस तरह लिटायें जिस तरह उसे नमाज़े जनाज़ा पढ़ते वक़्त लिटाते हैं।
529. मोहतज़र को क़िब्ला रुख़ लिटाना हर मुसलमान पर वाजिब है और इस काम के लिए उसके वली से इजाज़त लेना ज़रूरी नहीं है।
530. मुस्तहब है कि जो इंसान जांकनी की (दम निकलने की) हालत में हो उसके सामने शहादतैन, बारह इमामों के नाम और दूसरे दीनी अक़ाइद इस तरह दोहरायें जायें कि वह समझ ले और उसकी मौत के वक़्त तक इन चीज़ों को दोहराते रहना भी मुस्तहब है।
531. मुस्तहब है कि जो इंसान जांकनी की हालत में हो उसे यह दुआ इस तरह सुनाई जाए कि वह समझ ले- अल्लाहुम्मग़् फ़िर-लियल कसीरा मिन मआसीक, वक़बल मिन्निल यसीरा मिन ताअतिक, या मन यक़-बलुल यसीरा व यअफ़ु अनिल कसीर, इन्नका अन्तल अफ़ूव्वुल ग़फ़ूर, अल्लाहुम्मा इरहमनी फ़-इन्नका रहीम।
532. मुस्तहब है, जिस की जान सख़्ती से निकल रही हो, अगर उसे तक्लीफ़ न हो तो उसे उस जगह ले जाना चाहिए जहाँ वह नमाज़ पढा करता था ।
533. जो इंसान जांकनी की हालत में हो उसकी आसानी के लिए (यानी इस मक़सद से कि उसकी जान आसानी से निकल जाए) उसके सिराहने सूरए यासीन, सूरए साफ़्फ़ात, सूरए अह्ज़ाब, आयतल कुर्सी और सूरए एराफ की 54वीं आयत यानी इन्ना रब्बाकुमुल-ल्लाहु अल्लज़ी ख़लक़स समावात.... और सूरए बक़रः की आखिरी तीन आयतों का पढना मुस्तहब है, बल्कि क़ुरआने मजीद जितना भी पढा जा सके पढना चाहि।
534. जो इंसान जांकनी की हालत में हो उसे तन्हा छोडना और उसके पेट पर कोई चीज़ रखना और जुनुब और हाइज़ का उसके पास रहना, इसी तरह उसके पास ज़्यादा बातें करना, रोना और सिर्फ औरतों को छोडना मकरूह है।