536. मुसलमान का ग़ुस्ल, हुनूत, कफ़न, नमाज़् मैयित और दफ़्न चाहे वह शिया इसना अशरी न भी हो हर मुकल्लफ़ पर (नौ साल से ज़्यादा की लड़की और पन्द्रह साल से ज़्यादा का लड़का, अगर पागल न हों मुकल्लफ़ कहलाते हैं।) वाजिब है। अगर इन कामों को कुछ लोग अंजाम दे दें तो दूसरे तमाम इंसानों से वुजूब साक़ित हो जाता है, लेकिन अगर कोई भी अंजाम न दे तो सब गुनाहगार हैं।
537. अगर कोई इंसान मैयित के कामों में मश्ग़ूल हो जाए तो दूसरों के लिए इस बारे में कोई इक़्दाम करना वाजिब नही है, लेकिन अगर वह इन कामों को अधूरा छोड दें तो दूसरे पर उन्हें पूरा करना ज़रूरी है।
538. अगर किसी को यक़ीन हो कि कोई दूसरा मैयित को (नहलाने, कफ़्नाने और दफ़्नाने) के कामों में मशग़ूल है तो उस पर वाजिब नहीं है कि मैयित के इन कामों के बारे में कोई क़दम उठाये, लेकिन अगर उसे इस बारे में फ़क़त शक या गुमान हो तो ज़रूरी है इक़्दाम करे।
539. अगर किसी इंसान को मालूम हो कि मैयित का ग़ुस्ल या कफ़न या नमाज़ या दफ़्न ग़लत तरीक़े से हुआ है तो ज़रूरी है कि इन कामों को दुबारा अंजाम दे। लेकिन अगर उसे इन कामों के बातिल होने का गुमान हो या यह शक हो कि यह काम सही हुए हैं कि नहीं तो उसके लिए इस बारे में कोई इक़्दाम करना ज़रूरी नहीं।
540. मैयित के ग़ुस्ल, कफ़न, नमाज़ और दफ़न के लिए उसके वली से इजाज़त लेनी ज़रूरी है।
541. औरत का वली जिसको उसके ग़ुस्ल कफ़न और दफ़्न में दख़ालत हासिल है, उसका शौहर है। उसके बाद वह इंसान जिनको मैयित से मिरास मिलती हो, वह उसकी औरतों पर मुक़द्दम है, और जो मीरास में मुक़द्दम है वह इन कामों भी मुक़द्दम है।
542. अगर कोई इंसान यह कहे कि मैं मैयित का वली हूँ या मैयित के वली ने मुझे इजाज़त दी है कि मैयित के ग़ुस्ल, कफ़न और दफ़्न को अंजाम दूँ , और कोई दूसरा यह न कहे कि मैं मैयित का वली या वसी हूँ या वली ने मुझे इन कामों के लिए इजाज़त दी है तो, मैयित के कामों को अंजाम देना उसी के ज़िम्मे है।
543. अगर मरने वाला अपने ग़ुस्ल, कफ़न, दफ़न और नमाज़ में अपने वली के अलावा किसी और को मुऐयन करे तो एहतियाते वाजिब यह है कि वली और वह दोनों इजाज़त दें। और अगर मैयित वसीयत करे और अपने बेटे को वसी बनाये तो एहतियाते वाजिब की बिना पर बेटे पर लाज़िम है कि अपने बाप की वसीयत के मुताबिक़ अमल करे और यह नही हो सकता कि वह उसे क़बूल न करे। लेकिन अगर वह अपने बेटे के अलावा किसी दूसरे को अपना वसी बनाये और जिसे वसी बनाया है, वह इससे बा ख़बर होने के बाद उसकी ज़िन्दगी में उस वक़्त तक जबकि उसके पास किसी दूसरे को वसी बनाने का वक़्त हो अगर उससे कहे कि मैं आपकी वसीयत पर अमल करने को तैयार नही हूँ, तो इसमें कोई हरज नही है, वरना उसकी वसीयत के मुताबिक़ अमल करे।