नमाज़े मैयित के अहकाम

588.     हर मुसलमान की मैयित पर नमाज़ पढ़ना वाजिब है चाहे वह बच्चा ही क्यों न हो, लेकिन बच्चे के लिए शर्त है कि उसके माँ, बाप, दादा, दादी या उनमें से कोई एक मुसलमान हो और बच्चे की उम्र छः साल पूरी हो चुकी हो।

589.     नमाज़े मैयित, मैयित को ग़ुस्ल देने, हनूत करने और कफ़न पहनाने के बाद पढ़नी चाहिए। अगर नमाज़े मैयित इन कामों से पहले या उनके दरमियान पढ़ी जाये तो अगर ऐसा भूल चूक की बिना पर भी हो तब भी काफ़ी नही है।

590.     नमाज़े मैयित पढ़ने के लिए, बदन या लिबास का पाक होना या वुज़ू, ग़ुस्ल या तयम्मुम से होना ज़रूरत नही है। अगर ग़स्बी लिबास में भी नमाज़े जनाज़ा पढ़ी जाये तो कोई हरज नही है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि इस नमाज़ में भी उन सब बातों का लिहाज़ रखा जाये, जो दूसरी नमाज़ों में ज़रूरी हैं।

591.     नमाज़े मैयित पढ़ने वाले को क़िबला रुख़ होना चाहिए और यह भी वाजिब है कि मैयित को नमाज़ पढ़ने वाले के सामने कमर के बल इस तरह लिटाया जाये कि मैयित का सर नमाज़ पढ़ने वाले के दाहिनी तरफ़ हो और पैर बाईं तरफ़ हों।

592.     मैयित पर नमाज़ पढ़ने वाले की जगह, मैयित की जगह से ऊँची या नीची नही होनी चाहिए, लेकिन मामूली सी ऊँचाई या गहराई में कोई हरज नही है।

593.     नमाज़ पढ़ने वाले को मैयित से दूर नही होना चाहिए, लेकिन अगर नमाज़ जमाअत से पढ़ रहा हो और सफ़ों से मुत्तसिल हो, तो मैयित से दूर रहने में कोई हरज नही है।

594.     नमाज़े मैयित पढ़ने वाले को चाहिए कि मैयित के सामने खड़ा हो, लेकिन अगर नमाज़ जमाअत के साथ हो रही हो और जमाअत की सफ़े मैयित के दोनों तरफ़ (दाहिने और बायें) निकल रही हों, तो जो लोग मैयित के सामने नही हैं उनकी नमाज़ में कोई हरज नही है।

595.     नमाज़ पढ़ने वाले और मैयित के दरमियान पर्दा, दीवार या ऐसी ही कोई दूसरी चीज़ नही होनी चाहिए। लेकिन अगर मैयित ताबूत या ऐसी ही किसी दूसरी चीज़ में रखी हो तो कोई हरज नही है।

596.     नमाज़ पढ़ते वक़्त, मैयित की शर्मगाह का ढका होना ज़रूरी है। अगर मैयित को कफ़न पहनाना मुमकिन न हो तो नमाज़ के वक़्त उसकी शर्मगाह को लकड़ी, ईंट या किसी दूसरी चीज़ से ढक देना चाहिए।

597.     नमाज़े मैयित, खड़े हो कर और क़ुरबत की नियत से पढ़नी चाहिए और नियत करते वक़्त मैयित को मुऐयन कर लेना चाहिए। मसलन नियत करनी चाहिए कि मैं इस मैयित पर नमाज़ पढ़ता हूँ, क़ुरबतन इला- अल्लाह।

598.     अगर कोई ऐसा इंंसान मौजूद न हो जो खड़े हो कर मैयित पर नमाज़ पढ़ सकता हो और इंतज़ार करना भी मुमकिन न हो या खड़े हो कर नमाज़ पढ़ने वाले के आने के बारे में मायूसी हो गई हो तो मैयित पर बैठ कर नमाज़ पढ़ी जा सकती है। अगर बैठ कर नमाज़ पढ़ने के बाद मैयित को दफ़्न करने से पहले कोई ऐसा इंसान आ जाये जो उस पर खड़े हो कर नमाज़ पढ़ सकता हो तो वाजिब है कि दोबारा खड़े हो कर नमाज़े मैयित पढ़ी जाये।

599.     अगर मरने वाले ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने के लिए किसी मख़सूस इंसान के बारे में वसीयत की हो तो उसे चाहिए कि मैयित के वली से इजाजत हासिल करे और एहतियाते वाजिब की बिना पर वली पर भी वाजिब है कि उसे इजाज़त दे।  

600.     किसी मैयित पर कई बार नमाज़ पढ़ना मकरूह है, लेकिन अगर मैयित किसी आलिम या मुत्तक़ी इंसान की हो तो मकरूह नही है।

601.     अगर मैयित को किसी मजबूरी की वजह से या भूल चूक की बिना पर बग़ैर नमाज़ पढ़े दफ़्न कर दिया जाये या अगर दफ़्न करने के बाद पता चले कि जो नमाज़ पढ़ी गई थी, वह बातिल थी, तो मैयित के बदन के पाश पाश होने से पहले, नमाज़ की शर्तों के साथ उसकी क़ब्र पर नमाज़ पढ़ना वाजिब है।