607. वाजिब है कि मैयित को ज़मीन में इतनी गहराई में दफ़्न किया जाये कि न उसकी बू बाहर आसके और न दरिन्दे उसका बदन बाहर न निकाल सकें। अगर दरिन्दों के ज़रिये उसके बदन के निकाले जाने या उसकी बदबू फैलने का खतरा न हो तब भी क़ब्र को इतना ही गहरा खोदना चाहिए जितना ऊपर बयान किया गया है। अगर दरिन्दों के ज़रिये मैयित के निकाले जाने का ख़तरा हो तो क़ब्र को ईंटों वग़ैरा से पक्का कर देना चाहिए।
608. अगर मैयित को ज़मीन में दफ़्न करना मुमकिन न हो, तो उसे किसी कमरे या ताबूत में रखा जा सकता है।
609. मैयित को क़ब्र में दाहिनी करवट से इस तरह लिटाना चाहिए कि उसका सामने का हिस्सा क़िबला रुख़ हो।
610. अगर कोई इंसान पानी के जहाज़ में मर जाये और उसकी मैयित के खराब होने का ख़तरा न हो और उसे किश्ती में रखने में भी कोई रुकावट न हो, तो खुश्की तक पहुँचने का इन्तेज़ार करना चाहिए ताकि उसे ज़मीन में दफ़्न किया जा सके। अगर यह मुमकिन न हो तो जहाज़ में ही ग़ुस्ल, हनूत, कफ़न और नमाज़ के बाद उसे एक चटाई में लपेटे और चटाई का मुँह बंद करके उसे समुन्द्र में डाल दे। या कोई भारी चीज़ उसके पैरों में बाँध कर उसे पानी में छोड़ दें। अगर मुमकिन हो तो उसे ऐसी जगह पर डाले जहाँ वह फ़ौरन जानवरों का लुक़मा न बन सके।
611. अगर दुश्मन के ज़रिये क़ब्र खोद कर मैयित को बाहर निकाले जाने का ख़ता हो तो इस सूरत में अगर मुमकिन हो तो मसला न. 610 में बयान किये गये तरीक़े के मुताबिक़ मैयित को समुन्द्र में डाल देना चाहिए।
612. अगर मैयित को समुन्द्र में डालना या उसकी क़ब्र को पक्का करना ज़रूरी हो तो उसके ख़र्च को मैयित के अस्ल माल से लेना चाहिए।
613. अगर कोई काफ़िर औरत मर जाये और उसके पेट में मरा हुआ बच्चा हो और उस बच्चे का बाप कोई मुसलमान हो तो उस औरत को क़ब्र में बाईं करवट से किबले की तरफ़ पीठ करके इस तरह लिटाना चाहिए कि बच्चे का मुँह क़िबले की तरफ़ हो जाये। अगर पेट में मौजूद बच्चे के बदन में अभी जान न पड़ी हो तब भी एहतियाते वाजिब की बिना पर यही हुक्म है।
614. मुसलमानों को काफ़िरों के क़ब्रिस्तान में और काफ़िरों को मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़्न करना जायज़ नही है।
615. मुसलमान को ऐसी जगह पर दफ़्न करना जायज़ नही है जहाँ पर उसकी बेहुरमती होती हो जैसे कूड़ा व गंदगी फेंके जानी वाली जगह।
616. मैयित को गस्बी ज़मीन में दफ़्न नही करना चाहिए इसी तरह ऐसी जगह पर भी दफ़्न करना जायज़ नही है जो किसी दूसरे काम के लिए वक़्व की गई हो जैसे मस्जिद व इमाम बाड़े वग़ैरा के लिए वक़्फ़ की गई ज़मीनें।
617. किसी मैयित की क़ब्र खोद कर, उसमें दूसरे मुर्दे को दफ़्न करना जायज़ नही है। लेकिन अगर क़ब्र पुरानी हो गई हो और उसमें पहली मैयित की हड्डियाँ तक बाक़ी न रही हों और क़ब्र की ज़मीन क़ब्रिस्तान के लिए वक़्फ़ हो या किसी ऐसे इंसान की मिलकियत हो जो दूसरी मैयित को दफ़्न करने की इजाज़त देता हो या ज़मीन बंजर हो तो इन सूरतों में उसमें दूसरे मुर्दे को दफ़्न कर सकते हैं। अगर यह एहतेमाल हो कि पहली मैयित अभी पूरी तरह ख़ाक नही हुई है तो दूसरा मुर्दा दफ़्न करने या किसी दूसरे काम के लिए क़ब्र को खोलना जायज़ नही है। लेकिन अगर क़ब्र किसी वजह से खुल जाये तो उसमें दूसरा मुर्दा दफ़्न करने में कोई हरज नही है।
618. मैयित के बदन से जो हिस्से जुदा हो गये हों चाहे वह उसके बाल, नाख़ुन या दाँत ही हों, उन्हें उसके साथ ही दफ़्न कर देना चाहिए। जो नाख़ुन या दाँत इंसान की ज़िंदगी में उससे जुदा हो जायें, उन्हें दफ़्न करना मुस्तहब है।
619. अगर कोई इंसान कुवें में डूब कर मर जाये और उसे बाहर निकालना मुमकिन न हो तो उस कुवें का मुँह बंद करके, उसे ही उसकी क़ब्र बना देना चाहिए।
620. अगर कोई बच्चा माँ के पेट में मर जाये और उसका पेट में रहना माँ की ज़िंदगी के लिए खतरनाक हो तो, जो तरीक़ा सबसे आसान हो उसके ज़रिये उसे बाहर निकाल लेना चाहिए। अगर बच्चे को बाहर निकालने के लिए उसके टुकड़े टुकड़े करने पर मजबूर हों तो ऐसा करने में भी कोई हरज नही है। अगर उस औरत का शौहर अहले फ़न हो तो वह और अगर यह मुमकिन न हो तो कोई अहले फ़न औरत बच्चे को बाहर निकाले और अगर यह भी मुमकिन न हो तो कोई अहले फ़न महरम मर्द निकाले और अगर यह भी मुमकिन न हो तो अहले फ़न नामहरम मर्द यह काम करे और अगर यह भी मुमकिन न हो तो फिर वह इंसान भी बच्चे को बाहर निकाल सकता है जो अहले फ़न न हो।
621. अगर माँ मर जाये और बच्चा उसके पेट में ज़िन्दा हो अगरचे बच्चे के ज़िन्दा रहने की उम्मीद न भी हो तब भी पिछले मसले में बयान किये गये इंसानों के ज़रिये औरत के बायें पहलु को चाक करके बच्चे को बाहर निकाल लेना चाहिए और बाद में उस जगह को सी देना चाहिए।