635. किसी भी मुसलमान की क़ब्र को खोलना हराम है चाहे वह बच्चे या पागल इंसान की ही क़ब्र क्यों न हो। लेकिन अगर उसका बदन मिट्टी में मिलकर मिट्टी बन चुका हो तो क़ब्र खोलने में कोई हरज नही है।
636. इमाम ज़ादों, शहीदों, आलिमों और नेक लोगों की क़ब्रो को खोलना हराम है, चाहे उन्हे मरे हुए बरसों गुज़र चुके हों।
637. कुछ सूरतें ऐसी हैं जिनमें क़ब्र को खोलना हराम नही है।
1) अगर मैयित को ग़स्बी ज़मीन में दफ़्न कर दिया गया हो और उसका मालिक उसके वहाँ दफ़्न रहने पर राज़ी न हो।
2) अगर मैयित का कफ़न ग़स्बी हो या उसके साथ कोई ग़स्बी चीज़ दफ़्न कर दी गई हो और उसका मालिक इस बात पर रज़ामंद न हो कि वह चीज़ उसके साथ क़ब्र में रहे। या मैयित के माल में से कोई ऐसी चीज़ उसके साथ दफ़्न हो गई हो जो उसके वारिसों को मिलने वाली हो और उसके वारिस इस बात पर राज़ी न हों कि वह चीज़ क़ब्र में रहे। लेकिन अगर मरने वाले ने वसीयत की हो कि दुआ या अंगूठी या क़ुराने करीम उसके साथ दफ़्न किया जाये अगर उसकी वसीयत उसके कुल माल के तिहाई हिस्से से ज़्यादा न हो तो और उसकी वसीयत पर अमल करते हुए उन चीज़ों को उसके साथ दफ़ना दिया गया हो तो उन चीज़ों को निकालने के लिए क़ब्र को नही खोला जा सकता है।
3) अगर मैयित को बग़ैर ग़ुस्ल दिये या बग़ैर कफ़न पहनाये दफ़ना दिया गया हो या पता चले कि मैयित का ग़ुस्ल बातिल था, या उसे शरी अहकाम के मुताबिक़ कफ़न नही दिया गया था, या उसे क़ब्र में क़िबला रुख नही लिटाया गया था। इन सूरतों में अगर क़ब्र का खोलना मैयित की तौहीन का सबब हो यानी जनाज़े से बदबू आने लगी हो या वह पारा पारा हो गया हो तो क़ब्र को खोलना जायज़ नही है। बल्कि अगर मैयित को नमाज़ पढ़े बग़ैर भी दफ़्न कर दिया गया हो तब भी क़ब्र खोलना जायज़ नही है इस सूरत में उस की क़ब्र पर नमाज़ पढ़नी चाहिए।
4) अगर किसी हक़ को साबित करने के लिए मैयित के ज़िस्म को देखना ज़रूरी हो।
5) अगर मैयित को किसी ऐसी जगह पर दफ़्न कर दिया गया हो जहाँ उसकी बेहुरमती होती हो, मसलन उसे काफ़िरों के क़ब्रिस्तान में या उस जगह दफ़्न कर दिया गया हो जहाँ कूड़ा करकट डाला जाता हो।
6) अगर किसी ऐसे शरई मक़सद के लिए क़ब्र खोली जाये जिसकी अहमियत क़ब्र खोलने से ज़्यादा हो। मसलन किसी ज़िन्दा बच्चे को ऐसी हामला औरत के पेट से निकालना चाहते हो जिसे दफ़्न कर दिया गया हो।
7) अगर यह ख़तरा हो कि मैयित को दरिन्दें चीर डालेंगे या सैलाब बहा ले जायेगा या दुश्मन निकाल लेगा।
8) अगर मैयित के किसी ऐसे टुकड़े को दफ़्न करना चाहे जो उसके साथ दफ़्न न हो सका हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि उस हिस्से को क़ब्र में इस तरह रखें कि मैयित का बदन दिखाई न दे।
9) अगर मैयित ने वसीयत की हो कि उसे दफ़्न करने से पहले मुक़द्दस मुक़ामात की तरफ़ ले जाया जाये और जान बूझ कर या भूले से उसकी वसीयत के खिलाफ़ अमल हुआ तो जायज़ नही बल्कि वाजिब है कि क़ब्र खोल कर उसके जनाज़े को वहाँ ले जाया जाये। लेकिन अगर क़ब्र खोलने से उसकी तौहीन होती हो या उसका ज़िस्म सड़ चुका हो तो इन सूरतों में क़ब्र खोल कर मैयित को मुक़ामाते मुक़द्देसा पर ले जाना एहतियात के ख़िलाफ़ है चाहे उसने वसीयत ही की हो।