तयम्मुम

सात सूरतें ऐसी हैं जिन में वुज़ू और ग़ुस्ल के बदले तयम्मुम करना चाहिए।

तयम्मुम की पहली सूरत

वुज़ू या ग़ुस्ल के लिए जितने पानी की ज़रूरत है, उसका मोहिय्या करना मुमकिन न हो।

642.  अगर इंसान आबादी में हो तो ज़रुरी है कि वुज़ू और ग़ुस्ल के लिए पानी को इस हद तक तलाश करे कि उसके मिलने से नाउम्मीद हो जाये और अगर बयाबान में हो तो ज़मीन ऊँची नीची होने या दरख़्तों के ज़्यादा होने की  वजह से रास्ता चलने में परेशानी होने की सूरत में चारों तरफ़ इतनी दूरी तक पानी तलाश करे जितने फ़ासले पर पुराने ज़माने में कमान से फ़ेका हुआ तीर जाता था।  लेकिन अगर रास्ता व ज़मीन हमवार हो  तो हर तरफ़ दो तीर के फ़ासले के बराबर पानी की तलाश में जाये।

643.  अगर ज़मीन ऐसी हो कि जो कुछ तरफ़ से हमवार और कुछ तरफ़ से ना हमवार तो जो तरफ़ हमवार हो उस में दो तीरों के फ़ासले के बराबर और जो तरफ़ ना हमवार हो उस में एक तीर के फ़सले के बराबर पानी तलाश करे।

644.  जिस तरफ़ पानी न मिलने का यक़ीन हो उस तरफ़ तलाश करना ज़रूरी नही है।

645.  अगर किसी इंसान की नमाज़ का वक़्त तंग न हो और पानी हासिल करने के लिए उसके पास वक़्त हो और उसे यक़ीन हो कि जितनी दूरी तक पानी तलाश करना ज़रूरी है उससे ज़्यादा दूरी पर पानी मौजूद है, तो अगर उसके लिए कोई मुशकिल न हो और कोई रुकावट भी न हो तो उसे पानी हासिल करने के लिए वहाँ जाना चाहिए। अगर उसे सिर्फ़ पानी के मौजूद होने का गुमान हो तो वहाँ जाना ज़रूरी नहीं है। लेकिन अगर ुसे पानी के मौजूद होने के बारे में इत्मीनान हो तो एहतियाते वाजिब की बिना पर ुसे वहां पानी लेने के लिए जाना चाहिए।

646.  यह ज़रूरी नहीं है कि इंसान ख़ुद पानी की तलाश में जाये बल्कि वह किसी ऐसे इंसान को भेज सकता है जिस के कहने पर उसे इत्मिनान हो और इस सूरत में अगर एक इंसान कई इंसानों की तरफ़ से जाये तो काफ़ी है।

647.  अगर इस बात का एहतेमाल हो कि सफ़र के सामान में या पडाव डालने की जगह पर या क़ाफ़िले में पानी मौजूद है तो ज़रूरी है कि इस क़दर जुस्तुजू करे कि उसे पानी के न होने का यक़ीन हो जाये या उस के मिलने से नाउम्मीद हो जाये।

648.  अगर एक इंसान  नमाज़ के वक़्त से पहले पानी तलाश करे और हासिल न कर पाये और नमाज़ के वक़्त वहीं रहे तो पानी की तलाश में दोबारा जाना ज़रूरी नही है।          

649.  अगर कोई इंसान नमाज़ का वक़्त दाख़िल होने के बाद पानी तलाश करे और पानी हासिल न कर पाये और बाद वाली नमाज़ के वक़्त तक उसी ज़गह रहे, तो अगर पानी मिलने का एहतेमाल हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि दोबारा पानी की तालाश में जाये।

650.  अगर किसी इंसान की नमाज़ का वक़्त तंग हो या उसे चोर डाँकू और दरिंदे का ख़ौफ़ हो या पानी की तलाश इतनी कठिन हो कि वह उस परेशानी को बर्दाश्त न  कर सकता हो तो इस हालत में  पानी की तलाश ज़रूरी नहीं है।

651.  अगर कोई इंसान पानी तलाश न करे यहाँ तक कि नमाज़ का वक़्त तंग हो जाये, तो ऐसा करने पर वह गुनाह  का मुरतकिब तो होगा लेकिन तयम्मुम के साथ उसकी नमाज़ सही है।

652.  अगर कोई इंसान इस यक़ीन की बिना पर कि उसे पानी नही मिल सकता पानी की तलाश में न जाये और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ ले और बाद में उसे पता चले कि अगर तलाश करता तो पानी मिल सकता था तो उसकी नमाज़ बातिल है।  

653.  अगर किसी इंसान को तलाश करने पर पानी न मिले और वह तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ले और नमाज़ पढ़ने के बाद उसे पता  चले कि जहाँ उसने पानी तलाश किया था वहाँ पानी था तो इस सूरत में ुसकी नमाज़ सही है।  

654.  अगर नमाज़ का वक़्त दाख़िल होने के बाद किसी इंसान का वुज़ू बाक़ी हो और उसे मालूम हो कि अगर उसने अपना वुज़ू बातिल कर दिया तो दोबारा वुज़ू करने के लिए पानी नही मिलेगा तो इस सूरत में अगर वह अपना वुज़ू बाकी रख सकता हो तो उसे बातिल नही करना चाहिए।

655.  अगर कोई इंसान नमाज़ के वक़्त से पहले बा वुज़ू हो और उसे मालूम हो कि अगर उसने अपना वुज़ू बातिल कर लिया तो दोबारा वुज़ू करने के लिए पानी हासिल करना उसके लिए मुमकिन न होगा तो इस सूरत में अगर वह उपना वुज़ू बाकी रख सकता हो  तो एहतियाते वाजिब यह है कि उसे बातिल न करे।

656.  जब किसी के पास फ़क़त वुज़ू या ग़ुस्ल के लिए पानी हो और वह जानता हो कि उसे गिरा देने की सूरत में पानी नही मिल सकेगा, तो नमाज़ का वक़्त दाख़िल हो जाने के बाद उस पानी को गिराना हराम है और एहतियाते वाजिब यह है कि उस पानी को नमाज़ के वक़्त से पहले भी न गिराये।

657.  अगर कोई इंसान यह जानते हुए कि उसे पानी न मिल सकेगा, नमाज़ का वक़्त हो जाने के बाद अपने वुज़ू को बातिल कर दे या जो पानी उसके पास हो उसे गिरा दे तो उसने गुनाह तो किया,  मगर तयम्मुम के साथ उसकी नमाज़ सही है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस नमाज़ की क़ज़ा भी करे।

तयम्मुम की दूसरी सूरत

658.  अगर कोई इंसान बुढ़ापे या कमज़ोरी की वज़ह से या चोर डाकू और जानवर वग़ैरा के ख़ौफ़ से या कुवें से पानी निकालने के वसाइल न होने की वहज से पानी हासिल न कर सकता हो तो उसे तयम्मुम कर लेना चाहिए।

659.  अगर कुवें से पानी निकालने के लिए डोल और रस्सी वग़ैरा ज़रूरी हों और वह इंसान उन्हें ख़रीदने या किराये पर लेने के लिए मज़बूर हो तो चाहे उनकी क़ीमत आम भाव से कई गुना ज़्यादा ही क्यों न हो, उसे चाहिए कि उन्हें हासिल करे। इसी तरह अगर पानी अपनी असली क़ीमत से महंगा बेचा जा रहा हो तो उसके लिए भी यही हुक्म है। लेकिन  अगर उन चीज़ों के हासिल करने पर इतना ख़र्च होता हो कि उस की जेब इज़ाज़त न देती हो तो फिर उन चीज़ों का हासिल करना वाजिब नहीं है।

660.  अगर कोई इंसान पानी हासिल करने के लिए क़र्ज़ लेने पर मजबूर हो तो  ुसे क़र्ज़ ले लेना  चाहिए। लेकिन जिस इंसान को यक़ीन या गुमान हो कि वह अपने क़र्ज़े  को अदा नही कर पायेगा तो  उस के लिए क़र्ज़ लेना वाजिब नही है।

661.  अगर कुवाँ खोदने में ऐसी कोई कठिनाई न हो जिसे बर्दाश्त न किया जासकता हो तो इंसान को चाहिए कि पानी हासिल  करने के लिए कुवाँ खोदे।

662.  अगर कोई इंसान बग़ैर एहसान रखे कुछ पानी दे तो उसे क़ुबूल कर लेना चाहिए।

तयम्मुम की तीसरी सूरत

663.  अगर किसी इंसान को पानी इस्तेमाल करने से अपनी जान पर बन जाने या बदन में कोई ऐब पैदा हो जाने या या मरीज़ हो जाने या मौजूदा मरज़ के बढ़ जाने या शदीद हो जाने या  इलाज मुआलेजा में दुशवारी पैदा होने का ख़तरा हो तो उसे तयम्मुम करना चाहिए। लेकिन अगर गर्म पानी ुसके लिए नुक़्सान दे न हो तो ुसे गर्म पानी से वुज़ू या ग़ुस्ल करना चाहिए।  

664.  ज़रूरी नहीं कि किसी इंसान को यक़ीन ही हो कि पानी उसके लिए नुक़्सान दे है। बल्कि अगर नुक़्सान का एहतेमाल भी हो और यह एहतेमाल आम लोगों की नज़र में सही हो और इस एहतेमाल की वजह से वह ख़ौफ़ ज़दा हो जाये तो उसे तयम्मुम करना  चाहिए।

665.  अगर कोई इंसान आँखों के दर्द में मुबतला हो और उसके लिए पानी नुक़्सान दे हो तो उसे तयम्मुम करना चाहिए।

666.  अगर कोई इंसान नुक़्सान के यक़ीन या ख़ौफ़ की वजह से तयम्मुम करे  और उसे नमाज़ से पहले इस बात का पता चल जाये कि पानी उसके लिए नुक़्सानदे नही है तो उसका तयम्मुम बातिल है और वह उसके साथ नमाज़ नही पढ़ सकता। लेकिन अगर ुसे इस बात का पता नमाज़ के बाद चले तो उसकी नमाज़ सही है। लेकिन बाद वाली नमाज़ों के लिए वुज़ू या ग़ुस्ल करना चाहिए।  

667.  अगर किसी को यक़ीन हो कि पानी उसके लिए नुक़्सान दे नही है और वह ग़ुस्ल या वुज़ू कर ले और बाद में उसे पता चले कि पानी उसके लिए नुक़्सान दे था तो उसका वुज़ू या ग़ुस्ल सही हैं।

तयम्मुम की चौथी सूरत

668.  अगर किसी इंसान को यह ख़ौफ़ हो कि पानी से वुज़ू या ग़ुस्ल कर लेने  के बाद वह ख़ुद या ुसके बीवी बच्चे या नौकर चाकर प्यास की वज़ह से मर जायेंगे या मरीज़ हो जायेंगे या ितने ज़्यादा प्यासे हो जायेंगे कि  प्यास बर्दाश्त करना उनके लिए मुशकिल होगा तो िन सूरतों में वुज़ू या ग़ुस्ल के बदले तयम्मुम करे । या अगर प्यास की वजह से उसके जानवरों के मर जाने का ख़तरा हो तो इस सूरत में भी उन्हें पानी पिलाये और नमाज़ के लिए वुज़ू या तयम्मुम करे। जिस नफ़्स की जान बचाना वाजिब हो ्गर वह इतना प्यासा हो कि अगर उसे पानी न दिया जाये तो वह मर जायेगा तो इस सूरत में पानी ुसे देकर तयम्मुम करना चाहिए।

669.  अगर किसी इंसान के पास उस पाक पानी के अलावा जो वुज़ू या ग़ुस्ल के लिए हो,  इतना नजिस पानी भी हो जितने की उसे और उससे मरबूत (सम्बन्धित) लोगों को पीने की ज़रूरत हो तो पाक पानी पीने के लिए रख ले और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़े। लेकिन अगर पानी अपने किसी जानवर को पिलाना चाहे तो उसे वह नजिस पानी पिलाये और पाक पानी से वुज़ू या ग़ुस्ल करे।

तयम्मुम की पाँचवीं सूरत

670.  अगर किसी इंसान का बदन या लिबास नजिस हो और उसके पास बस इतना ही  पानी हो कि अगर उससे वुज़ू या ग़ुस्ल करे तो बदन या लिबास धोने के लिए न बचता हो, तो ज़रूरी है कि उस पानी से बदन या लिबास धोये और तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़े। लेकिन अगर उसके पास कोई ऐसी चीज़ न हो जिस पर तयम्मुम किया जा सकता हो तो ज़रूरी है कि पानी वुज़ू या ग़ुस्ल के लिए इस्तेमाल करे और नजिस बदन या लिबास के साथ नमाज़ पढ़े।

तयम्मुम की छटी सूरत

671.  अगर किसी इंसान के पास ऐसे पानी या बरतन के अलावा (जिसका इस्तेमाल करना हराम हो) कोई और पानी या बरतन न हो। मसलन जो पानी या बरतन उसके पास हो वह ग़स्बी हो और उसके अलावा उसके पास कोई दूसरा पानी या बरतन न हो तो उसे वुज़ू और ग़ुस्ल के बजाये तयम्मुम करना चाहिए।

तयम्मुम की सातवीं सूरत

672.  अगर नमाज़ का वक़्त इतना कम रह गया हो कि वुज़ू या ग़ुस्ल करने पर सारी नमाज़ या उसका कुछ हिस्सा वक़्त के बाद पढ़े जाने का इमकान हो, तो इस सूरत में तयम्मुम करना ज़रूरी है।

673.  अगर कोई इंसान जान बूझ कर नमाज़ में इतनी देर करे कि वुज़ू या ग़ुस्ल का वक़्त बाक़ी न रहे तो वह गुनाहगार तो होगा, लेकिन तयम्मुम के साथ उसकी नमाज़ सही है। अगरचे एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस नमाज़ की क़ज़ा भी बजा लाये।

674.  अगर किसी को शक हो कि वुज़ू या ग़ुस्ल करने के बाद नमाज़ का वक़्त बाक़ी रहेगा या नहीं, तो उसे तयम्मुम करना चाहिए।

675.  अगर किसी इंसान ने वक़्त की तंगी की वज़ह से तयम्मुम किया हो तो उसका वह तयम्मुम सिर्फ़ उस अमल के लिए सही है, जिसका वक़्त तंग है, ुसके फ़ौरन बाद वह तयम्मुम बातिल हो जायेगा। लिहाज़ा अगर इंसान ने तंग होने की वजह से तयम्मुम करके नमाज़ पढ़ी हो और  नमाज़ के बाद उसके पास मौजूद पानी  बर्बाद हो गया हो या उसके सामने कोई दूसरी ऐसी मजबूरी आगई हो जिसकी वजह से वुज़ू या ग़ुस्ल न कर सकता हों  और इस सूरत में उसका फ़रीज़ा तयम्मुम हो तो अगर उसने ्पना पहला तयम्मुम  बातिल न किया हो तब भी नमाज़ के लिए दोबारा तयम्मुम करना ज़रूरी है।  

676.  अगर किसी इंसान के पास पानी हो, लेकिन वह वक़्त की तंगी के वजह से तयम्मुम कर के नमाज़ पढ़ने लगे और नमाज़ के दौरान जो पानी उसके पास था वह बर्बाद हो जाये तो वह बाद की नमाज़ को उस ी तयम्मुम से नही पढ़ सकता बल्कि ुसे दोबारा तयम्मुम करना होगा।

677.  अगर किसी के पास इतना वक़्त हो कि वह वुज़ू या ग़ुस्ल करके नमाज़ को उसके मुस्तहब अफ़आ़ल (जैसे  इक़ामत और क़ुनूत) के बग़ैर पढ़ सकता हो तो ज़रूरी है कि ग़ुस्ल या वुज़ू करे और नमाज़ को उसके मुस्तहब अफ़आ़ल के बग़ैर पढ़े। बल्कि अगर सूरः पढ़ने के लिए भी वक़्त न बचता हो तो ज़रूरी है कि ग़ुस्ल या वुज़ू करे और  नमाज़ में हम्द के बाद कोई सूरह न पढ़े।