694. तयम्मुम में चार चीज़ें वाजिब हैं:
(1) नियत
(2) दोनों हाथों की हथेलियों को एक साथ ऐसी चीज़ पर मारना जिस पर तयम्मुम करना सही हो।
(3) दोनों हथेलियों को पूरी पेशानी और उसके दोनों तरफ़ फ़ेरना जिस जगह से सर के के बाल उगते हैं वहाँ से भवों तक और नाक के ऊपर और एहतियाते वाजिब यह है कि भवों पर भी हाथों को फेरा जायें।
(4) बायें हाथ की हथेली को दाहिने हाथ की हाथेली की पुश्त पर और उसके बाद दाहिने हाथ की हथेली को बायें हात की हाथेली की तमाम पुश्त पर फेरना।
695. तयम्मुम चाहे वुज़ू के बदले हो या ग़ुस्ल के उसमें कोई फ़र्क़ नही है लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि ग़ुस्ल के बदले किये जाने वाले तयम्मुम में हाथों को दो बार ज़मीन में मारना चाहिए इस तरह कि एक बार ज़मीन पर हाथ मार कर उन्हें पेशानी पर फेरा जाये और दूसरी मार ज़मीन पर हाथ मारने के बाद उनसे दोनों हथेलियों की पुश्त का मसा किया जाये। बल्कि एहतियाते मुस्तहब यह है कि वुज़ू के बदले किये जाने वाले तयम्मुम में भी हाथों को दो ही बार ज़मीन पर मारा जाये, बल्कि बेहतर यह है कि तयम्मुम में तीन बार हाथों को ज़मीन पर मारा जाये दो बार लगातार हाथों को ज़मीन पर मार कर पेशानी पर फेरे और तीसरी बार हाथों को ज़मीन पर मार कर हाथों पर फेरे।