734. मग़रिब की नमाज़ का वक़्त वह है, जब वह सुर्ख़ी इंसान के सर पर से गुज़र जाये जो सूरज के छुपने के बाद पूरब की तरफ़ दिखाई देती है।
735. नमाज़े मग़रिब व इशा में से हर एक का मख़सूस व मुशतरक वक़्त है। नमाज़े मग़रिब का मख़सूस वक़्त, अव्वले मग़रिब से उस वक़्त तक है जिसमें तीन रकत नमाज़ पढ़ी जा सके, लिहाज़ा अगर कोई मुसाफ़िर हो और वह भूल कर इशा की पूरी नमाज़ उस वक़्त में पढले तो उसकी नमाज़ बातिल है। इशा की नमाज़ का ममख़सूस वक़्त वह है जब आधी रात होने में इतना वक़्त रह जाये, जिसमें चार रकत नमाज़ पढ़ी जा सके। अगर कोई इंसान उस वक़्त तक जान बूझ कर मगरिब की नमाज़ न पढ़े तो उसे पहले िशा की नमाज़ और बाद में मग़रिब की नमाज़ पढ़नी चाहिए।
मग़रिब की नमाज़ के मख़सूस वक़्त और इशा की नमाज़ के मख़सूस वक़्त के दरमियान में मग़रिब व इशा का मुशतरक वक़्त है। अगर कोई उस वक़्त में भूले से इशा की नमाज़ मघ़रिब से पहले पढ़ले और नमाज़ के बाद मुतवज्जेह हो तो उसकी नमाज़ सही है, उसे चाहिए कि मग़रिब की नमाज़ को उसके बाद पढ़े। अगर कोई इंसान ग़लत फ़हमी की बिना पर इशा की नमाज़ मग़रिब की नमाज़ से पहले पढ़ ले और नमाज़ के बाद उसे यह बात याद आये तो उसकी नमाज़ सही है और ज़रूरी है कि मग़रिब की नमाज़ उसके बाद पढ़े।
736. मख़सूस और मुशतरक वक़्त के जो मतलब पिछले मसले में बताया गया है वह लोगों के एतेबार से फ़र्क़ करता है, मसलन अगर अव्वले ज़ोहर से दो रकत नमाज़ पढ़ने के बराबर वक़्त गुज़र जाये तो मुसाफ़िर के लिए ज़ोहर का मख़सूस वक़्त ख़त्म हो कर, मुशतरक वक़्त दाख़िल हो जायेगा, और जो मुसाफ़िर नही है, उसके लिए चार रकत नमाज़ पढ़ने का वक़्त ग़ुज़रने के बाद।
737. अगर कोई इंसान मग़रिब की नमाज़ पढ़ने से पहले, भूले से इशा की नमाज़ पढने में मशग़ूल हो जाये और नमाज़ के दौराना उसे पता चले कि उसने ग़लती की है तो अगर उसने उसकी कुछ मिक़दार मुशतरक वक़्त में पढ़ी हो और अभी वह चौथी रकत के रूकू में न पहुँचा हो तो उसे चाहिए कि नियत को मग़रिब की नमाज़ की तरफ़ पलटा दे व नमाज़ तमाम करे और बाद में इशा की नमाज़ पढ़े। लेकिन अगर वह मग़रिब के मख़सूस वक़्त में समझे कि मैंने ग़लती की है तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसकी नमाज़ बातिल है।
अगर वह चौथी रकत के रुकू में जा चुका हो तो उसे चाहिए कि इशा की नमाज़ को तमाम करे औरक बाद में मग़रिब की नमाज़ पढ़े, अलबत्ता यह फ़र्ज़ उसी वक़्त हो सकता है जब इंसान मुसाफ़िर हो।
738. इशा की नमाज़ का वक़्त आधी रात तक है और एहतियाते वाजिब यह है कि मग़रिब व इशा की नमाज़ और इन्हीं जैसी दूसरी चीज़ों के लिए रात का हिसाब सूरज ग़ूरूब होने की इबतिदा से सुबह की अज़ान तक करना चाहिए। लेकिन नमाज़े शब और उसके मिस्ल के लिए सूरज निकलने तक हिसाब करना चाहिए।[1]
739. अगर कोई इंसान किसी मजबूरी की वजह से मग़रिब या इशा की नमाज़ आधी रात तक न पढ़े तो एहतियाते वाजिब की बिना पर अज़ाने सुबह से पहले क़ज़ा और अदा की निय्य्त किये बग़ैर पढ़ लेनी चाहिए।