763. मुस्तहब नमाज़ें बहुत सी हैं और उन्हें नाफ़िलः भी कहते हैं। मुस्तहब नमाज़ों में से रोज़ाना की नाफ़िलः की बहुत ताकीद की गई है। यह नाफ़िलः नमाज़ें, जुमे के दिन के अलावा चौंतीस रकअत हैं। जिनमें से आठ रकअत ज़ोह्र की, आठ रकअत अस्र की, चार रकअत मग़रिब की, दो रकअत इशा की, ग़यारह रकअत नमाज़े शब और दो रकअत सुबह की होती हैं। चूँकि इशा की दो रकअत नाफ़िलः एहतियाते मुस्तहब की बिना पर बैठकर पढ़ी जाती है, इसलिए वह एक रकअत शुमार होती है। लेकिन जुमे के दिन ज़ोह्र और अस्र की सोलह रकअत नाफ़िलः पर चार रकअत का और इज़ाफ़ा हो जाता है।
764. नमाज़े शब की गयारह रकअतों में से आठ रकअतें नाफ़िलः -ए- शब की नियत से, दो रकअत नमाज़े शफ़ा की नियत से और एक रकअत नमाज़े वत्र की नियत से पढ़ी जाती हैं। नाफ़िल-ए-शब का मुकम्मल तरीक़ा दुआ़ की किताबों में बयान किया गया है।
765. नाफ़िलः नमाज़ें बैठ कर भी पढ़ी जा सकती हैं, लेकिन बेहतर यह है कि बैठ कर पढ़ी जाने वाली नाफ़िलः नमाज़ों की हर दो रकतों को एक रकअत शुमार किया जाये। मसलन अगर कोई ज़ोह्र की आठ रकअत नाफ़िलः नमाज़ को बैठकर पढ़ना चाहे तो बेहतर यह है कि सोलह रकअतें पढ़े और अगर नमाज़े वत्र बैठ कर पढ़ना चाहे तो एक एक रकअत की दो नमाज़ें पढ़े।
766. ज़ोह्र और अस्र की नाफ़िलः नमाज़ें सफ़र में साक़ित हैं, लिहाज़ उन्हें नहीं पढ़ना चाहिए, लेकिन इशा की नाफ़िलः को इस नियत से पढ़ सकता है कि शायद यह मतलूब हो।