763. ज़ोह्र की नाफ़िलः, नमाज़े ज़ोह्र से पहले पढ़ी जाती है और उसका वक़्त अव्वले ज़ोह्र से शुरू होकर उस वक़्त तक बाक़ी रहता है जब ज़ोह्र के बाद शाख़स का साया 2/7 हो जाये। मसलन अगर शाख़स की ऊँचाई 70 सेंटी मीटर हो तो जब ज़ोह्र के बाद पैदा होने वाले उसके साये की लम्बाई 20 सेंटी मीटर हो जाये तो ज़ोह्र की नाफ़िलः नमाज़ का वक़्त ख़त्म हो जाता है।
764. अस्र की नाफ़िलः अस्र की नमाज़ से पहले पढ़ी जाती हैं और इसका वक़्त उस वक़्त ख़त्म होता है जब शाख़स का साया 4/7 हो जाये। अगर कोई इंसान ज़ोह्र या अस्र की नाफ़िलः उसके मुक़र्रेरा वक़्त के बाद पढ़ना चाहे तो ज़ोह्र की नाफ़िलः ज़ोह्र की नमाज़ के बाद और अस्र की नाफ़िलः अस्र की नमाज़ के बाद पढ़ सकता है, लेकिन एहतियाते वाजिब की बिना पर अदा और क़ज़ा की नियत न करे।
765. मग़रिब की नाफ़िलः का वक़्त, नमाज़े मग़रिब के बाद से उस वक़्त तक है, जब तक सूरज के छुपने के बाद आसमान में पश्चिम दिशा में पैदा होने वाली सुर्ख़ी ख़त्म न हो जाये ।
766. इशा की नाफ़िलः का वक़्त इशा की नमाज़ ख़त्म होने के बाद से आधी रात तक है, लेकिन बेहतर यह है कि इशा की नमाज़ ख़त्म होने के फ़ौरन बाद पढ़ी जाये।
767. सुबह की नाफ़िलः सुबह की नमाज़े से पहले पढ़ी जाती है और उसका वक़्त, आधी रात के बाद इतना वक़्त गुज़र जाने के बाद शुरू होता है, जितना ग्यारह रकअत नमाज़े शब पढ़ने में लगता है, लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि फ़ज्रे अव्वल से पहले न पढ़ी जाये।
768. नमाज़े शब का वक़्त आधी रात से सुबह की आज़ान तक है, लेकिन बेहतर यह है सुबह की अज़ान के क़रीब पढ़ी जाये।
769. मुसाफ़िर और वह इंसान जिसके लिए आधी रात के बाद नमाज़े शब पढ़ना मुशकिल हो या जाग ना पाने का ख़तरा हो तो वह उसे अव्वले शब में भी पढ़ सकता है।