नमाज़ में बदन का छुपाना

792.   मर्द को नमाज़ की हालत में अपनी दोनों शर्मगाहों को छुपाना चाहिए चाहे कोई उसे देख रहा हो या न देख रहा हो और बेहतर यह है कि नाफ़ से घुटनों तक तमाम बदन को छुपाये।

793.   औरत को नमाज़ पढ़ते वक़्त अपना पूरा बदन छुपाना चाहिए यहाँ तक कि अपने सर और बालों को भी ढाँपे। लेकिन चेहरे का वह हिस्सा जो वुज़ू में धोया जाता है और हाथों और पैरों के पंजों को छुपाना ज़रूरी नही है। लेकिन वाजिब मिक़दार को ढाँप लेने का यक़ीन करने के लिए, चेहरे के अतराफ़ का कुछ हिस्सा और कलाइयों से नीचे तक का कुछ हिस्सा और पैरों के टखनों से नीचा का कुछ हिस्सा भी ढाँपे।

794.   जब इंसान भूले हुए सजदे या भुले हुए तशह्हुद की क़ज़ा बजाला रहा हो तो ज़रूरी है कि अपने आपको उसी तरह ढाँपे जिस तरह नमाज़ के वक़्त ढाँपा जाता है। एहतियात यह है कि सजदा -ए- सह्व करते वक़्त भी अपने आप को उसी तरह ढाँपे।

795.   औरतों को नमाज़ की हालत में अपने मसनूई बालों, पिनहानी ज़ीनत (जैसे हाथों के कड़े या गले का हार) और चेहरे की ज़ीनत (जैसे आँखों का सुरमा) को छुपाना ज़रूरी नही है, लेकिन उन्हें नामहरम से छुपाना वाजिब है।   

796.   अगर कोई इंसान जान बूझकर नमाज़ में अपनी शर्मगाह न ढाँपे तो उसकी नमाज़ बातिल है। बल्कि अगर मसला न जानने की वजह से ऐसा करे तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसे दोबारा नमाज़ पढ़नी चाहिए।

797.   अगर किसी इंसान को नमाज़ के दौरान पता चले कि उसकी शर्मगाह खुली हुई है तो उसे अपनी शर्मगाह को छुपा कर नमाज़ को तमाम करना चाहिए। जबकि एहतियाते वाजिब यह है कि उस नमाज़ को दोबारा पढ़े। लेकिन अगर उसे नमाज़ के बाद पता चले कि नमाज़ के दौरान उसकी शर्मगाह खुली हुई थी तो उसकी नमाज़ सही है।

798.   अगर किसी इंसान का लिबास ऐसा हो कि ख़ड़े होने की हालत में उसकी शर्मगाह को ढाँप लेता हो लेकिन दूसरी हालत में मसलन रूकू और सजदे की हालत में शर्मगाह को न ढाँप पाता हो तो अगर शर्मगाह के खुले होने की हालत में वह उसे किसी दूसरी तरह ढाँप ले तो उसकी नमाज़ सही है, लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि उस लिबास के साथ नमाज़ न पढे।

799.   इंसान नमाज़ में अपने आपको फूँस और पत्तों से ढाँप सकता है लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि इन चीज़ों से अपने आपको उस वक़्त ढाँपे जब कोई और चीज़ उसके पास न हो।

800.   अगर इंसान के पास  अपनी शर्मगाह को छुपाने के लिए गारे  के अलावा कोई दूसरी चीज़ न हो तो वह नंगा नमाज़ पढ़ सकता है, क्योंकि गारा सातिर[1] नही है।  

801.   अगर किसी इंसान के पास ऐसी कोई चीज़ न हो, जिससे वह नमाज़ में अपने आपको ढाँप सके, तो अगर उसे ऐसी किसी चीज़ के मिलने का एहतेमाल हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़ पढ़ने में जल्दी न करे और उस चीज़ के मिलने का इन्तेज़ार करे और अगर ऐसी कोई चीज़ न मिल सके तो आख़िरी वक़्त में अपने वज़ीफ़े के मुताबिक़ नमाज़ पढ़े।

802.   अगर कोई नमाज़ पढ़ना चाहता हो और उसके पास अपने आपको ढाँपने के लिए पत्ते  व  घास, फूँस भी न हो और उसे यह उम्मीद भी न हो कि आख़िर वक़्त तक कोई ऐसी चीज़ मिल सकेगी  तो अगर उसे कोई देख रहा हो तो बैठ कर नमाज़ पढ़े और अपनी शर्मगाह को अपनी रानों से छुपाये और  अगर कोई उसे न देख रहा हो तो वह ख़ड़ा होकर नमाज़ पढ़े और अपनी अगली शर्मगाह को अपने हाथ से छुपाये और रुकू व सजदों को इशारों से अंजाम दे और सजदों के लिए सर को थोड़ा आगे की तरफ़ झुकाये।


[1]  सातिर, उस चीज़ को कहते हैं जो किसी चीज़ को छुपा ले।