803. नमाज़ पढ़ने वाले के लिबास की छः शर्तें हैं।
1. पाक हो।
2. एहतियाते वाजिब की बिना पर मुबाह हो।
3. मुर्दार के अज्ज़ा से न बना हो।
4. हराम गोश्त जानवर के अज्ज़ा से न बना हो।
5. अगर नमाज़ पढ़ने वाला मर्द हो तो उसका लिबास ख़ालिस रेशम का न हो।
6. अगर नमाज़ पढ़ने वाला मर्द हो तो उसका लिबास सोने के तारों का न हो।
इन शर्तों की तफ़्सील आने वाले मसलों में ब्यान की जायेगी।
804. नमाज़ पढ़ने वाले के लिबास का पाक होना ज़रूरी है। अगर कोई इंसान इख़्तियार की हालत में नजिस बदन या नजिस लिबास के साथ नमाज़ पढ़े तो उसकी नमाज़ बातिल है।
805. अगर कोई इंसान यह न जानता हो कि नजिस लिबास व बदन के साथ नमाज़ पढ़ना बातिल है, और नजिस बदन या लिबास के साथ नमाज़ पढ़े तो उसकी नमाज़ बातिल है।
806. अगर कोई इंसान मसला न जानने की बिना पर किसी चीज़ की निजासत के बारे में न जानता हो, मसलन न जानता हो कि निजासत खाने वाले ऊँट या मुशरिक का पसीना नजिस है, और वह उस पसीने के साथ नमाज़ पढ़ले तो उसकी नमाज़ बातिल है।
807. अगर कोई इंसान अपने बदन या लिबास के नजिस होने के बारे में न जानता हो और वह उसी हालत में नमाज़ पढ़ले और नमाज़ के बाद पता चले कि उसका बदन या लिबास नजिस था तो उसकी नमाज़ सही है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि अगर नमाज़ का वक़्त बाक़ी हो तो उस नमाज़ को दोबारा पढ़े।
808. अगर कोई इंसान यह भूल जाये कि उसका बदन या लिबास नजिस है और नमाज़ पढ़ते वक़्त या नमाज़ के बाद याद आये तो उस नमाज़ को दोबारा पढ़ना चाहिए और अगर उसका वक़्त गुज़र चुका हो तो उसकी क़ज़ा करे।
809. अगर कोई इंसान नमाज़ पढ़ रहा हो और नमाज़ के लिए वक़्त काफ़ी हो और नमाज़ के दौरान उसका बदन या लिबास नजिस हो जाये या नजिस लिबास में नमाज़ का कुछ हिस्सा पढ़ने से पहले ही उसे मालूम हो जाये कि उसका लिबास या बदन नजिस है और उसे यह शक हो कि नमाज़ शुरू करने के बाद नजिस हुआ है या पहले से नजिस था तो इस सूरत में अगर बदन या लिबास पाक करने या लिबास बदलने या लिबास उतार देने से नमाज़ न टूटे तो नमाज़ के दौरान ही बदन या लिबास पाक करे या लिबास तबदील करे या अगर उसकी शर्म गाह किसी और चीज़ से छुपी हुई हो तो लिबास उतार दे औरनमाज़ को तमाम करे। लेकिन अगर बदन या लिबास पाक करने या लिबास बदलने से नमाज़ टूटती हो या लिबास उतारने की सूरत में नंगा होना ज़रूरी हो तो उसे चाहिए कि नमाज़ तोड़ दे और पाक लिबास के साथ दोबारा नमाज़ पढ़े।
810. अगर कोई इंसान तंग वक़्त में नमाज़ पढ़ रहा हो और नमाज़ के दौरान उसका बदन या लिबास नजिस हो जाये या नजिस लिबास में नमाज़ का कुछ हिस्सा पढ़ने से पहले ही उसे मालूम हो जाये कि उसका लिबास या बदन नजिस है और उसे यह शक हो कि नमाज़ शुरू करने के बाद नजिस हुआ है या पहले से नजिस था तो इस सूरत में अगर लिबास पाक करने या तबदील करने या उतारने से नमाज़ न टूटती हो और वह लिबास उतार सकता हो तो ज़रूरी है कि लिबास को पाक करे या लिबास बदले या अगर किसी और चीज़ ने उसकी शर्म गाह को छुपा रखा हो तो लिबास उतार दे और नमाज़ ख़त्म करे, लेकिन अगर किसी और चीज़ ने उसकी शर्मगाह को न छुपा रखा हो और वह लिबास पाक या तबदील न कर सकता हो तो उसे लिबास उतार कर उस तरीक़े से नमाज़ पढ़नी चाहिए जो नंगे लोगों के लिए बयान किया गया है। लेकिन अगर लिबास पाक करने या बदलने से नमाज़ टूटती हो या सर्दी की वजह से वह अपने कपड़े न उतार सकता हो तो उसे उसी हालत में नमाज़ तमाम करनी चाहिए उसकी नमाज़ सही है।
811. अगर कोई इंसान तंग वक़्त में नमाज़ पढ़ रहा हो और नमाज़ के दौरान उसका बदन नजिस हो जाये या नजिस बदन के साथ नमाज़ का कुछ हिस्सा पढ़ने से पहले ही उसे मालूम हो जाये कि उसका बदन नजिस है और उसे शक हो कि यह अभी नजिस हुआ है या पहले से नजिस था तो अगर सूरत यह हो कि बदन पाक करने से नमाज़ न टूटती हो तो बदन को पाक करे और अगर नमाज़ टूटती हो तो उसी हालत में नमाज़ को तमाम करे, उसकी नमाज़ सही है।
812. अगर किसी इंसान को अपने बदन या लिबास के नजिस होने में शक हो तो अगर वह उसी हालत में नमाज़ पढ़ले और नमाज़ के बाद पता चले कि उसका बदन या लिबास नजिस था तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि अगर नमाज़ का वक़्त बाक़ी हो तो नमाज़ दोबारा पढ़े और अगर वक़्त ख़त्म हो चुका हो तो उसकी क़ज़ा करे।
813. अगर कोई इंसान अपना लिबास धोये और उसे यक़ीन हो जाये कि लिबास पाक हो गया है और वह उसे पहन कर नमाज़ पढ़ले और नमाज़ के बाद पता चले कि लिबास पाक नही हुआ था तो एहतियाते वाजिब यह है कि अगर नमाज़ का वक़्त बाक़ी हो तो दोबारा पढ़े और अगर वक़्त तमाम हो चुका हो तो उसकी क़ज़ा करे।
814. अगर कोई इंसान अपने बदन या लिबास पर खून देखे और उसे यक़ीन हो कि यह नजिस खूनों में से नही है, मसलन उसे यक़ीन हो कि यह मच्छर का ख़ून है, और वह उसी हालत में नमाज़ पढ़ले और नमाज़ के बाद पता चले कि वह ख़ून नजिस है तो उसकी नमाज़ सही है।
815. अगर किसी इंसान को यक़ीन हो कि उसके बदन या लिबास पर जो ख़ून लगा है वह ऐसा ख़ून है जिसके साथ नमाज़ पढ़ना सही है, मसलन उसे यक़ीन हो कि यह ज़ख़्म या फोड़े का ख़ून है और वह उसी हालत में नमाज़ पढ़ले और नमाज़ के बाद पता चले कि वह ऐसा ख़ून है जिसके साथ नमाज़ बातिल है तो उसकी नमाज़ सही है।
816. अगर कोई इंसान किसी चीज़ के नजिस होने के बारे में भूल जाये और गीला बदन या लिबास उस चीज़ से छू जाये और इसी भूल की हालत में वह उसके साथ नमाज़ पढ़ले और नमाज़ के बाद उसे याद आये तो उसकी नमाज़ सही है। लेकिन अगर उसका गीला बदन उस चीज़ को छू जाये जिसकी निजासत के बारे में वह भूल गया था और अपने आपको पाक किये बग़ैर क़लील पानी से ग़ुस्ल करके नमाज़ पढ़े तो उसका ग़ुस्ल और नमाज़ दोनों बातिल हैं। लेकिन अगर जारी या कुर पानी में गुस्ल करे तो क्योंकि पहली बार में ही नजिस जगह पाक हो जाती है लिहाज़ा उसका ग़ुस्ल और नमाज़ सही है। लेकिन अगर वुज़ू के हिस्सों में से कोई हिस्सा उस चीज़ से छू जाये जिसकी निजासत के बारे में वह भूल गया था तो और वह उस हिस्से को पाक किये बग़ैर वुज़ू करके नमाज़ पढ़ले तो उसका वुज़ू और नमाज़ दोनों बातिल हैं। लेकिन अगर वह कुर या जारी पानी में वुज़ू करे या नजिस हिस्से को तीन बार धोये तो इस तरह वह कामिल तौर पर पाक हो जाता है लिहाज़ा उसका वुज़ू और नमाज़ दोनों सही हैं।
817. जिस इंसान के पास सिर्फ़ एक लिबास हो अगर उसका बदन व लिबास दोनों नजिस हो जायें और उसके पास उनमें से सिर्फ़ एक ही को पाक करने के लिए पानी हो तो कपड़े उतार कर बदन को पाक करे और नंगे लोगों के अहकाम के मुताबिक़ नमाज़ पढ़े। अगर सर्दी या किसी दूसरी मजबूरी की वजह से कपड़े न उतार सकता हो और लिबास व जिस्म दोनों की निजासत बराबर हों मसलन दोनों पेशाब या ख़ून से नजिस हुए हों या बदन की निजासत लिबास से ज़्यादा शदीद हो मसलन बदन पेशाब से नजिस हुआ हो जिसे क़लील पानी से दो मर्तबा धोना ज़रूरी हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि बदन को पाक किया जाये। लेकिन अगर लिबास की निजासत ज़्यादा हो तो इंसान को इख़्तियार है कि बदन और लिबास दोनों में से जिसे चाहे पाक करे।
818. जिस इंसान के पास नजिस लिबास के अलावा, दूसरा कोई लिबास न हो और नमाज़ का वक़्त तंग हो या उसे एहतेमाल हो कि पाक लिबास नही मिल सकेगा तो उसे नंगे लोगों की तरह नमाज़ पढ़नी चाहिए लेकिन अगर वह सर्दी या किसी दूसरी मजबूरी की वजह से लिबास न उतार सकता हो तो उसे उसी नजिस लिबास में नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए उसकी नमाज़ सही है।
819. जिस इंसान के पास दो लिबास हों और उनमें से एक नजिस हो, लेकिन वह यह न जानता हो कि इनमें से कौन सा नजिस है और वह उन्हें पाक भी न कर सकता हो तो अगर उसके पास वक़्त हो तो दोनो के साथ नमाज़ पढ़े (यानी एक बार एक लिबास पहन कर और दूसरी बार दूसरा लिबास पहन कर वही नमाज़ पढ़े) मसलन अगर वह ज़ोह्र और अस्र की नमाज़ पढ़ना चाहे तो ज़रूरी है कि हर एक लिबास से एक नमाज़े ज़ोह्र और एक नमाज़े अस्र पढे। लेकिन अगर वक़्त तंग हो तो एहतियाते वाजिब की बिना पर नंगे लोगों के अहकाम के मुताबिक़ नमाज़ पढ़े और एहतियाते वाजिब यह भी है कि बाद में पाक लिबास पहन कर उसकी क़ज़ा भी करे।
820. एहतियाते वाजिब की बिना पर नमाज़ पढ़ने वाले का लिबास मुबाह होना चाहिए। जो इंसान जानता हो कि ग़स्बी लिबास पहनना हराम है, अगर वह जान बूझ कर ग़स्बी लिबास में या उस लिबास में जिसमें धागा, बटन या कोई दूसरी चीज़ ग़स्बी लगी हो नमाज़ पढ़े तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसकी नमाज़ बातिल है। उस नमाज़ को मुबाह लिबास पहन कर दोबारा पढ़ना चाहिए। यही हुक्म उन लोगों के लिए भी है जो अपनी कोताही की बिना पर न जानते हों कि ग़स्बी लिबास पहनना हराम है।
821. जो इंसान यह तो जानता हो कि ग़स्बी लिबास पहनना हराम है, लेकिन यह न जानता हो कि ग़स्बी लिबास में नमाज़ पढ़ने से नमाज़ बातिल हो जाती है, तो अगर वह ग़स्बी लिबास में नमाज़ पढ़े तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसकी नमाज़ बातिल है। उसे चाहिए कि मुबाह लिबास पहन कर उस नमाज़ को दोबारा पढ़े।
822. अगर कोई इंसान यह न जानता हो कि उसका लिबास ग़स्बी है या उसके ग़स्बी होने को भूल जाये और उस लिबास में नमाज़ पढ़े तो उसकी नमाज़ सही है। लेकिन अगर उस इंसान ने उस लिबास को ख़ुद ग़स्ब किया हो और फिर भूल गया हो तो एहतियाते लाज़िम की बिना पर उसकी नमाज़ बातिल है। उसे वह नमाज़ मुबाह लिबास में दोबारा पढ़नी चाहिए।
823. अगर ग़स्ब की हुई चीज़ नमाज़ी के साथ हो तो नमाज़ बातिल नही होती चाहे वह चीज़ छोटी हो या बड़ी (जैसे तस्बीह,रुमाल....)
824. अगर कोई अपनी जान बचाने के लिए ग़स्बी लिबास में नमाज़ पढ़े या किसी ग़स्बी लिबास की हिफ़ाज़त के लिए उसे पहन कर नमाज़ पढ़े मसलन इस लिए कि कहीँ उस लिबास को चोर न ले जाये, तो उसकी नमाज़ सही है।
825. अगर किसी इंसान को मालूम न हो या भूल जाये कि उसका लिबास ग़स्बी है और नमाज़ के दौरान उसे पता चले या याद आये कि यह लिबास ग़स्बी है तो अगर उसकी शर्मगाह किसी दूसरी चीज़ से ढकी हुई हो और वह फ़ौरन या नमाज़ का तसलसुल तोड़े बग़ैर ग़स्बी लिबास उतार सकता हो तो ज़रूरी है कि फौरन उस लिबास को उतार दे और नमाज़ को तमाम करे उसकी नमाज़ सही है। लेकिन अगर उसकी शर्मगाह किसी दूसरी चीज़ से ढकी हुई न हो या वह ग़स्बी लिबास को फ़ौरन न उतार सकता हो या लिबास उतारने से नमाज़ का तसल्सुल टूटता हो तो अगर उसके पास एक रकअत पढ़ने के बराबर भी वक़्त हो तो ज़रूरी है कि नमाज़ को तोड़ दे और मुबाह लिबास पहन कर नमाज़ पढ़े। लेकिन अगर इतना वक़्त भी न हो तो ज़रूरी है कि नमाज़ की हालत में ही लिबास उतार दे और "बरैहना लोगों की नमाज़ के हुक्म के मुताबिक़" नमाज़ को तमाम करे।
826. अगर कोई इंसान उस रक़्म से लिबास ख़रीदे जिसका ख़ुम्स या ज़कात अदा न किया गया हो तो वह लिबास ग़स्बी लिबास के हुक्म में है और उस लिबास में नमाज़ बातिल है। इसी तरह अगर कोई इंसान किसी लिबास को उधार ख़रीदे और उसकी न इयत यह हो कि इसकी क़ीमत हराम माल से या उस माल से देगा जिसका ख़ुम्स व ज़कात न निकला हो तो उस लिबास में उसकी नमाज़ बातिल है।
827. नमाज़ पढ़ने वाले का लिबास ख़ून जहिन्दादार[1], मुर्दा जानवर के अज्ज़ा से न बना हो, बल्कि अगर लिबास ग़ैरे ख़ूने जहिन्दादार[2] मुर्दा जानवर, मसलन मछली और साँप के अजज़ा से भी तैयार किया जाये, तो एहतियाते मुस्तहब की बिना पर उसे पहन कर भी नमाज़ न पढ़ी जाये।
828. अगर मुर्दार की कोई ऐसी चीज़ जिसमें रूह होती है, मसलन गोश्त और खाल, नमाज़ पढ़ने वाले के साथ हो तो उसकी नमाज़ बातिल है, चाहे वह उसका लिबास भी न हो।
829. अगर हलाल गोश्त मुर्दार की कोई ऐसी चीज़ जिसमें रूह नही होती, मसलन बाल और रुवा, नमाज़ पढ़ने वाले के साथ हो या उसका लिबास उन चीज़ों से बना हो तो उसकी नमाज़ सही है।
830. अगर ग़स्बी लिबास और मुर्दार के अजज़ा से बने लिबास के अलावा कोई दूसरा लिबास न हो और वह उस लिबास को पहनने पर मजबूर न हो तो उसे नंगे लोगों के अहकाम के मुताबिक़ नमाज़ पढ़नी चाहिए।
831. नमाज़ पढ़ने वाले का लिबास हराम गोश्त जानवर के अजज़ा का बना हुआ नही होना चाहिए, अगर उसका एक बाल भी नमाज़ गुज़ार के साथ हो तो नमाज़ बातिल है।
832. अगर हराम गोश्त जानवर के मुँह या नाक का पानी या कोई दूसरी रतूबत नमाज़ पढ़ने वाले के बदन या लिबास पर लगी हो और वह तर हो तो नमाज़ बातिल है। लेकिन अगर वह ख़ुश्क हो कर लिबास या बदन से साफ़ हो चुकी हो तो नमाज़ सही है।
833. अगर किसी का बाल या पसीना या थूक नमाज़ पढ़ने वाले के बदन या लिबास पर लगा हो तो कोई हरज नही है। इसी तरह अगर मर्वारीद, मोम या शहद उसके बदन या लिबास पर लगा हो तो यही हुक्म है।
834. अगर किसी को शक हो कि लिबास हलाल गोश्त जानवर से तैयार किया गया है या हराम गोश्त जानवर से तो चाहे वह उसी शहर में तैयार किया गया हो या दूसरी जगह से मंगाया गया हो उसे पहन कर नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है।
835. अगर यह एहतेमाल हो कि सीप के बटन या उससे मिलती चीज़े, किसी हैवान के अजज़ा हैं तो उनके साथ नमाज़ पढ़ने में को हरज नही है और अगर यह जानता हो कि बटन सीप के हैं लेकिन एहतेमाल हो कि सीप में गोश्त नही होता तो इस सूरत में भी उनके साथ नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है।
836. समूर (mink fur) की खाल से बना लिबास पहन कर नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है, लेकिन एहतियाते वाजिब की बिना पर गिलहरी की पोस्तीन पहन कर नमाज़ नही पढ़नी चाहिए।
837. अगर कोई इंसान ऐसे लिबाल में नमाज़ पढ़े, जिसके बारे में न जानता हो कि यह हराम गोश्त जानवर से तैयार हुआ है या नही तो उसकी नमाज़ सही है। लेकिन अगर भूल गया हो तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उस नमाज़ को दोबारा पढ़े।
838. जो मसनूई चमड़ा पलास्टिक वगैरह से तैयार किया जाता है उसका लिबास पहन कर नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है। इसी तरह अगर इंसान शक करे कि यह नक़ली चमड़ा या असली चमड़ा या शक करे कि हराम गोशत हैवान का है या हलाल गोशत हैवान का या शक करे कि मुर्दा जानवर का है या ज़बीहे का तो उसे पहन कर नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है।
839. अगर किसी इंसान के पास हराम गोश्त जानवर के अजज़ा से बने लिबास के अलावा कोई दूसरा लिबास न हो और वह उस लिबास को पहनने पर मजबूर हो तो वह उसी लिबास में नमाज़ पढ़ सकता है। लेकिन अगर उसे पहनने पर मजबूर न हो तो नंगे लोगों के अहकाम के मुताबिक़ नमाज़ पढ़े और एहतियाते वाजिब की बिना पर एक नमाज़ उस लिबास में भी पढ़े।
840. सोने के तारो से बना हुआ लिबास पहनना मर्दों के लिए हराम है और अगर उसे पहन कर नमाज़ पढ़ी जाये तो बातिल है। लेकिन औरतों के लिए नमाज़ में या नमाज़ के अलावा उसके पहनने में कोई हरज नही।
841. सोने से सजना सवंरना, मसलन सोने की ज़जीर गले में पहनना, सोने का अंगूठी हाथ में पहनना, सोने की घड़ी कलाई पर बाँधना, मर्दों के लिए हराम है और इन चीज़ों के साथ नमाज़ पढ़ी जाये तो वह बातिल है। इसी तरह सोने का चश्मा लगाने से भी बचना चाहिए। लेकिन औरतों के लिए नमाज़ में और नमाज़ के अलावा इन चीज़ों के इस्तेमाल में कोई हरज नही है।
842. अगर कोई इंसान न जानने या भूल की बिना पर सोने की किसी चीज़ के साथ नमाज़ पढ़े तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसकी नमाज़ बातिल है।
843. मर्द के लिए सोने से सजना सवरना या सोने के तारों से बना कपड़ा पहनना हराम है चाहे वह ज़ाहिर हो या न हो, और उसके साथ नमाज़ बातिल है। लिहाज़ा अगर मर्द के लिबास के नीचे सोने के तारों से बना कपड़ा हो या गले में सोने की ज़ंजीर पड़ी हो तो चाहे वह ज़ाहिर न हो उसकी नमाज़ बातिल है।
844. नमाज़ पढ़ने वाले मर्द का लिबास, ख़ालिस रेशम का नही होना चाहिए। इसी तरह एहतियाते वाजिब की बिना पर टोपी और इसी तरह वह दूसरी चीज़ें जो तन्हा इंसान की दोनों शर्मगाहों को न छुपा सकती हों अगर ख़ालिस रेशम की हों तो नमाज़ बातिल है। मर्द के लिए नमाज़ के अलवा भी उनका पहनना हराम है।
845. अगर लिबास का तमाम अस्तर या उसका कुछ हिस्सा ख़ालिस रेशम का हो तो मर्द के लिए उसका पहनना हराम और उसके साथ नमाज़ पढ़ना बातिल है।
846. अगर सोने की अंगूठी या जंजीर इंसान की जेब में हो तो इसमें कोई हरज नही है और इउससे नमाज़भी बातिल नही होती।
847. अगर किसी लिबास के बारे में पता न हो कि ख़ालिस रेशम का है या किसी और चीज़ का तो उसको पहनने में कोई हरज नही है और उसके साथ नमाज़ पढ़ना भी सही है।
848. अगर रेशमीन रूमाल या उसी जैसी कोई दूसरी चीज़ मर्द की जेब में हो तो कोई हरज नही है और उससे नमाज़ भी बातिल नही होती।
849. औरत के लिए नमाज़ में या उसके अलावा रेशमीन लिबास पहनने में कोई हरज नही है।
850. मजबूरी की हालत में ग़स्बी, ख़ालिस रेशमी, ज़रदोज़ी और मुर्दार के अजज़ा से बना लिबास पहनने में कोई हरज नही है। जो इंसान लिबास पहनने पर मजबूर हो और उसके पास इसके अलावा और कोई लिबास न हो और आख़िरी वक़्त तक उसकी मजबूरी दूर न हुई हो तो वह उस लिबास में नमाज़ पढ़ सकता है।
851. अगर नमाज़ी का लिबास ख़ालिस रेशम और दूसरी चीज़ से मिल कर न बना हो तो उसे पहन कर नमाज़ पढ़ना सही है इस शर्त के साथ कि रेशम के अलावा जो दूसरी चीज़ लिबास में मिली हो उसमें नमाज़ सही हो। लेकिन अगर रेशम में मिली दूसरी चीज़ इतनी कम हो कि न के बराबर हो तो फिर उसे पहन कर नमाज़ पढ़ना मर्द के लिए जायज़ नही है।
852. अगर किसी मर्द के पास ख़ालिस रेशमी या ज़रदोज़ी के लिबास के अलावा दूसरा कोई लिबास न हो और वह उस लिबास को पहनने पर मजबूर न हो तो उसे उन अहकाम के मुताबिक़ नमाज़ पढ़नी चाहिए जो बरहैना लोगों के लिए बताये गये हैं।
853. अगर किसी के पास ऐसी कोई चीज़ न हो जिससे वह अपनी शर्मगाहों को नमाज़ में ढाँप सके तो वाजिब है कि ऐसी चीज़ किराये पर ले या ख़रीदे। लेकिन अगर इस काम के लिए उसे अपनी हैसियत से ज़्यादा ख़र्च करना पड़ता हो, या सूरत यह हो कि लिबास पर माल ख़र्च करना उसके लिए नुख़्सान दे हो तो उसे उन अहकाम के मुताबिक़ नमाज़ पढ़नी चाहिए जो बरैहना लोगों के लिए बताये गये हैं।
854. जिस इंसान के पास लिबास न हो अगर उसे कोई दूसरा इंसान लिबास बख़्श दे या उधार दे दे, तो अगर लिबास क़बूल करना उस पर बहुत ज़्यादा गराँ न गुज़रता हो तो ज़रूरी है कि उसे क़बूल करे, बल्कि अगर उधार लेना या बख़्शिश के तौर पर तलब करना उसके लिए बहुत ज़्यादा सख़्त न हो तो जिसके पास लिबास हो, उससे उधार माँगे या बख़्शिश के तौर पर तलब करे।
855. एहतियाते वाजिब की बिना पर इंससान को वह शोहरत वाला लिबास पहनने से बचना चाहिए जिसका रंग सिलाई या कपड़ा उस जैसे इंसान के लिए आम न हो लेकिन अगर वह उसे पहन कर नमाज़ पढ़े तो कोई हरज नही है।
856. शोहरत के लिबास से मुराद वह लिबास है जिसका आम तौर पर रिवाज न हो और इस वजह से उसकी तरफ़ उंगलियाँ उठती हों या रंग, सिलाई व कपड़े के एतेबार से उस इंसान के शायाने शान न हो।
857. एहतियाते वाजिब यह है कि मर्द ज़नाना लिबास और औरत मर्दाना लिबास न पहने यानी मर्द ऐसा लिबास न पहने कि कहा जाये कि इसने ज़नाना लिबास पहन रखा है और औरतें ऐसा लिबास न पहने कि कहा जाये कि इसने मर्दाना लिबास पहन रखा है। इस बिना पर मर्द के लिए सिर्फ़ ज़नाने चप्पल पहनना और औरत के लिए मर्दाने चप्पल पहनने में कोई हरज नही है। लेकिन अगर वह लिबास पहन कर नमाज़ पढ़ी जाये तो कोई हरज नही है।
858. अगर किसी के पास अपनी शर्मगाह को छुपाने के लिए कोई चीज़ न हो तो अगर उसे नमाज़ के आखिरी वक़्त किसी ऐसी चीज़ के मिलने की उम्मीद हो तो एहतियाते वाजिब की बिना पर नमाज़ को अव्वले वक़्त न पढ़ कर आख़िरी वक़्त में शर्मगाह को छुपा कर पढ़े।
859. जिस इंसान को लेटकर नमाज़ पढ़नी चाहिए अगर वह नंगा हो और उसका लिहाफ़ या गद्दा नजिस हो या रेशमी या हराम गोश्त जानवर के अजज़ा का बना हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़ पढ़ते वक़्त अपने आपको उससे न छुपाये।
860. तीन सूरतें ऐसी हैं कि अगर उनमें नमाज़ पढ़ने वाले का बदन या लिबास नजिस हो तो उसकी नमाज़ सही है। इनकी तफ़्सील इस तरह है-
1- अगर किसी के बदन पर ज़ख़्म, जराहत या फोड़ा हो और उसका ख़ून उसके लिबास या बदन पर ख़ून लग गया हो।
2- उसके बदन या लिबास पर एक दिरहम ( यह तक़रीबन हिन्दुस्तानी पचास पैसे को छोटे वाले सिक्के के बराबर होता है) की मिक़दार से कम ख़ून लगा हो। और यह उन ख़ूनों में से न हो जो मसला न. 861 में बयान किये जायेंगे।
3- वह नजिस बदन या लिबास के साथ नमाज़ पढ़ने पर मजबूर हो।
इनके अलावा दो सूरतें ऐसी हैं कि अगर नमाज़ पढ़ने वाले का सिर्फ़ लिबास नजिस हो तो उसकी नमाज़ सही है।
1- उसका कोई छोटा लिबास, मसलन मोज़ा या दस्ताना नजिस हो।
2- बच्चा पालने वाली औरत का लिबास नजिस हो।
इन पांचों सूरतों के मुफ़स्सल अहकाम आगे आने वाले मसअलों में बयान किये जायेगें।
861. अगर नमाज़ पढ़ने वाले के बदन या लिबास पर ज़ख्म या जराहत या फोड़े का ख़ून लगा हो तो अगर लिबास या बदन को पाक करना या लिबास बदलना अक्सर लोगों के लिए या उसके लिए मुशकिल हो तो वह उस ख़ून के साथ, ज़ख्म या जराहत या फोड़े के ठीक होने तक नमाज़ पढ़ सकता है। इसी तरह अगर उसके बदन या लिबास पर ऐसी पीप हो जो ख़ून के साथ निकली हो या ऐसी दवा जो ज़ख़्म पर लगाई गयी हो और नजिस हो गयी हो तो उसके लिए भी यही हुक्म है।
862. अगर नमाज़ पढ़ने वाले के बदन या लिबास पर ऐसी ख़राश या ज़ख़्म का ख़ून लगा हो जो जल्दी ठीक हो जाता हो, तो अगर ख़ून दिरहम के बराबर या उससे ज़्यादा मिक़दार में हो और उसका धोना आसान हो तो उसके साथ उसकी नमाज़ बातिल है।
863. अगर बदन या लिबास की ऐसी जगह, जो ज़ख्म से फ़ासिले पर हो, ज़ख़्म की रतूबत से नजिस हो जाये तो उसके साथ नमाज़ पढ़ना जाइज़ नही है। लेकिन अगर लिबास या बदन की वह जगह जो आम तौर पर ज़ख़्म की रुतूबत से गीली हो जाती है, उस ज़ख़्म की रूतूबत से नजिस हो जाये तो उसके साथ नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है।
864. नाक व मुँह से निकलने वाला ख़ून, बदन के ज़ख़्म के हुक्म में नही है लिहाज़ अगर वह ख़ून दिरहम से ज़्यादा मिक़दार में बदन या लिबास पर लग जाये तो उसके साथ नमाज़ नही पढ़ सकते। लेकिन बवासीर का ख़ून, बदन के ज़ख़्म के ख़ून के हुक्म में है और उसके साथ नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है।
865. अगर कोई ऐसा इंसान जिसके बदन पर ज़ख़्म हो अपने बदन या लिबास पर ख़ून देखे और यह न जानता हो कि यह ख़ून ज़ख़्म का है या कोई दूसरा ख़ून तो उस ख़ून के साथ नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है।
866. अगर किसी इंसान के बदन पर चंद ज़ख़्म हों और वह एक दूसरे के इतने नज़दीक हों कि एक ज़ख़्म शुमार होते हों तो जब तक वह सब ठीक न हो जायें, उनके ख़ून के साथ नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है। लेकिन अगर वह एक दूसरे से इतने दूर हों कि उनमें से हर ज़ख़्म अलग शुमार होता हो तो जो ज़ख़्म ठीक हो जाये, नमाज़ के लिए अपने बदन और लिबास को उस ज़ख़्म के ख़ून से पाक करे।
867. अगर नमाज़ पढ़ने वाले के बदन या लिबास पर सुईँ की नोक के बराबर भी हैज़ का ख़ून लगा हो तो उसकी नमाज़ बातिल है और एहतियाते वाजिब यह है कि निफ़ास और इस्तेहाज़ः का ख़ून भी उसके बदन पर न लगा हो और बेहतर यह है कि हराम गोश्त जानवर के ख़ून से भी परहेज़ किया जाये। लेकिन अगर कोई दूसरा ख़ून लगा हो, मसलन किसी इंसान या हलाल गोश्त जानवर के ख़ून की छींटें बदन के कई हिस्सों पर लगी हो और वह सब मिला कर एक दिरहम से कम हों तो उसके साथ नमाज़ पढ़ने में कोई हरज नही है।
868. जो ख़ून बग़ैर अस्तर के कपड़े पर गिरे और दूसरी तरफ़ पहुँच जाए, वह एक ख़ून शुमार होता है। लेकिन अगर कपड़े की दूसरी तरफ़ अलग से कोई ख़ून लग जाये तो उनमें से हर एक को अलैहदा ख़ून शुमार किया जायेगा। बस वह ख़ून जो कपड़े की दोनों तरफ़ लगा है, अगर कुल मिला कर एक दिरहम से कम हो तो उसके साथ नमाज़ सही है और अगर उससे ज़्यादा हो तो नमाज़ बातिल है।
869. अगर अस्तर वाले कपड़े पर ख़ून गिरे और उसके अस्तर तक पहुँच जाये या अस्तर पर गिरे और कपड़े तक पहुँच जाये तो ज़रूरी है कि हर ख़ून को अलग शुमार किया जाये। बस अगर कपड़े और अस्तर का ख़ून मिल कर एक दिरहम से कम हो तो उसके साथ नमाज़ सही है और अगर ज़्यादा हो तो नमाज़ बातिल है।
870. अगर बदन या लिबास पर एक दिरहम से कम ख़ून लगा हो और कोई रतूबत उस ख़ून से मिलने पर वह एक दिरहम के बराबर या उससे ज़्यादा हो जाये और अतराफ़ को गीला कर दे तो उसके साथ नमाज़ बातिल है। बल्कि अगर वह ख़ून और रतूबत एक दिरहम के बराबर न भी हों ौर अतराफ़ को भी गीला न करे तब भी उसके साथ नमाज़ पढ़ने में इश्काल है। लेकिन अगर ख़ून रतूबत में मिल कर ख़त्म हो जाये तो नमाज़ सही है।
871. अगर बदन या लिबास पर ख़ून न हो, लेकिन ख़ून से लगने की वजह से नजिस हो जायें, तो अगर नजिस होने वाला हिस्सा, एक दिरहम से भी कम हो तब भी उसके साथ नमाज़ नही पढ़ी जा सकती।
872. अगर बदन या लिबास पर मौजूद ख़ून एक दिरहम से कम हो और उससे कोई दूसरी निजासत आ मिले, मसलन पेशाब का एक क़तरा उस पर गिर जाए तो उसके साथ नमाज़ पढ़ना जाइज़ नही है।
873. अगर नमाज़ पढ़ने वाले का कोई ऐसा छोटा लिबास जिससे शर्मगाह को न ढाँपा जा सकता हो, मसलन दस्ताना या मोज़ा, नजिस हो और वह मुर्दार या हराम गोश्त जानवर के अज्ज़ा से न बना हो तो उसके साथ नमाज़ सही है। इसी तरह अगर नजिस अंगूठी या चश्मे के साथ नमाज़ पढ़ी जाये तो कोई हरज नही।
874. एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़ पढ़ने वाले के साथ कोई ऐसी नजिस चीज़ नही होनी चाहिए जो शर्मगाह को छुपा सके, लेकिन अगर नजिस चीज़ ैसी हो जो शर्मगाह को न छुपा सकती हो मसलन, छोटा रुमाल, चाबी, चाक़ू या करंसी वग़ैरह तो नमाज़ में कोई हरज नही है।
875. अगर कोई औरत किसी बच्चे को पाल रही हो और एहतियाते वाजिब की बिना पर वह बच्चा लड़का हो और उस औरत के पास सिर्फ़ एक ही लिबास हो और वह दूसरा लिबास न खरीद सकती हो और न किराये पर ले सकती हो और न ही किसी से उधार ले सकती हो तो अगर वह दिन रात में उसे एक मर्तबा धो ले तो अगले दिन तक वह उस लिबास के साथ नमाज़ पढ़ सकती है चाहे वह उस लड़के के पेशाब से फिर नजिस हो गया हो। लेकिन एहतियाते वाजिब यह है कि वह दिन रात में उस पहली नमाज़ के लिए लिबास पाक करे जिससे पहले वह नजिस हुआ है। अगर उसके पास कई लिबास हों लेकिन वह उन सबको पहनने पर मजबूर हो तो अगर वह ऊपर बयान किये गये तरीक़े के मुताबिक़ उन सबको दिन रात में एक मर्तबा धोले तो काफ़ी है। लेकिन अगर वह दूसरा लिबास खरीद सकती हो या किराये पर ले सकती हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि पाक लिबासमें नमाज़ पढ़े।
876. नमाज़ी के लिए कुछ चीज़ें मुस्तहब है, जैसे- अमामा लगाना और उसका तहतुल हनक लटकाना, अबा ओढ़ना ख़सूसन पेश नमाज़ के लिए, सफ़ेद लिबास पहनना, साफ़ लिबास पहनना, ख़ूशबू लगाना और अक़ीक़ की अंगूठी पहनना।
877. नमाज़ी के लिए कुछ चीज़ें मकरूह हैं, जैसे- स्याह, मैला और तंग लिबास पहनना, शराबी या उस इंसान का लिबास पहनना जो निजासत से परहेज़ न करता हो और ऐसा लिबास पहनना जिस पर चेहरे की तस्वीर बनी हो। इसके अलावा लिबास के बटनों का ख़ुला होना और ऐसी अंगूठी पहनना जिस पर चेहरे की तस्वीर बनी हो ।