नमाज़ के शक 23 क़िस्म के हैं, उनमें से आठ शक ऐसे हैं जो नमाज़ को बातिल कर देते हैं। छः शक ऐसे हैं जिनकी पर्वा नही करनी चाहिए और नौ शक सही हैं।
1183. वह आठ शक जो नमाज़ को बातिल कर देते हैं निम्न लिखित हैं:
1- दो रकअती नमाज़ों की रकअतों की तादाद (संख्या) के बारे में शक जैसे सुबह की नमाज़ या क़स्र नमाज़ की रकअतों के बारे में शक हो, लेकिन अगर दो रकअती मुस्तहब नमाज़ या नमाज़े एहतियात की रकअतों में शक हो तो नमाज़ बातिल नही होती।
2- तीन रकअती नमाज़ की रकअतों की तादाद के बारे में शक, जैसे मग़िरब की नमाज़ की रकअतों में शक।
3- चार रकअती नमाज़ में शक हो कि एक रकअत पढ़ी है या ज़्यादा।
4- चार रकअती नमाज़ में दूसरे सजदे का ज़िक्र ख़त्म होने से पहले शक हो कि दो रकअतें पढ़ी हैं या ज़्यादा। (उसकी तफ़सील मालूम करने के लिए सही शुकूक की चौथी सूरत को पढ़ें)
5- दो और पाँच रकअत के बीच शक या दो और पाँच से ज़्यादा रकअत में शक हो।
6- तीन व छ: रकअतों के बीच शक या तीन व छः से ज़्यादा रकअतों में शक हो।
7- यही न मालूम हो कि कितनी रकअतें पढ़ी हैं।
8- चार और छः रकअतों के बीच शक या चार और छः से ज़्यादा रकअतों के बीच शक चाहे दूसरा सजदा पूरा होने से पहले हो या बाद में, लेकिन अगर दूसरे सजदे के बाद चार और छः रकअतों के दरमियान या चार और छः से ज़्यादा में शक पेश आये तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि उन्हें चार रकअत मानते हुए नमाज़ को तमाम करे और बाद में दो सजदे सह्व करे और उसके बाद नमाज़ को दोबारा भी पढ़े।
1184. अगर नमाज़ में कोई शक पेश आये तो अपने शक को दूर करने के लिए थोड़ी देर सोचना चाहिए, बस अगर शक दूर हो जाये व किसी एक तरफ़ यक़ीन या गुमान हो जाये तो उसी को मानते हुए अपनी नमाज़ को तमाम करे, नमाज़ सही है। अगर थोड़ी देर सोचने के बाद भी कुछ याद न आये और शक की हालत में बाक़ी रहे तो फिर शक के हुक्म पर ्मल करे और अगर शक नमाज़ को बातिल करने वाला हो तो नमाज़ को तोड़ दे क्योंकि ऐसी सूरत में नमाज़ को तोड़ना हराम नही है।
1185. जिन शकों की पर्वा नही करनी चाहिए वह निम्न लिखित हैं:
1- जिस चीज़ के पढ़ने का मौक़ा गुज़र गया हो, जैसे रुकूउ में पहुचने के बाद शक हो कि हम्द पढ़ी या नही।
2- सलाम के बाद किसी चीज़ के बारे में शक हो।
3- नमाज़ का वक़्त गुज़र जाने के बाद शक।
4- कसीरूश शक यानी बहुत ज़्यादा शक करने वाले का शक।
5- इमाम और मामूम का शक।
6- मुसतहब्बी नमाज़ों में शक।
1186. अगर नमाज़ में शक करे कि वाजिब कामों में से किसी काम को किया है या नही, जैसे शक करे कि सूरः ए हम्द पढ़ी है या नही तो अगर उसके बाद वाले काम में मशग़ूल नही हुआ तो जिस काम के बारे में शक हुआ है, उसे करे, लेकिन अगर उसके बाद वाले काम में मशग़ूल हो चुका है तो शक की पर्वा न करे।
1187. अगर हम्द या सूरः पढ़ते हुए किसी आयत पर पहुँच कर शक हो कि इससे पहली आयत पढ़ी है या नही या किसी आयत के आखिर में पहुँचने के बाद शक हो कि इसके शुरू का हिस्सा पढ़ा है या नही तो उस शक की पर्वा नही करनी चाहिए।
1188. अगर रुकूउ या सजदा करने के बाद शक हो कि उनके वाजिबात को अदा किया है या नही, जैसे ज़िक्र पढ़ा है या नही, रकूउ या सजदे की हालत में बदन साकिन (स्थिर) था या नही, तो ऐसे शक की पर्वा नही करनी चाहिए।
1189. अगर सजदे में जाते हुए शक करे कि रुकूउ किया है या नही या क़िशक करे कि रुकूउ के बाद खड़ा हुआ या नही तो शक की पर्वा न करे।
1190. अगर खड़े होते वक़्त शक हो कि तशह्हुद पढ़ा है या नही तो शक की पर्वा न करे, लेकिन ्गर खड़े होते हुए शक करे कि सजदा किया है या नही तो कर सजदा करे।
1191. जो इंसान बैठ या लेट कर नमाज़ पढ़ रहा हो अगर हम्द या तस्बीहात पढ़ते वक्त सजदे या तशह्हुद के बारे में शक करे तो उसे अपने शक पर्वा नही करनी चाहिए, लेकिन अगर हम्द या तस्बीहात शुरु करने से पहले सजदे या तशह्हुद के बारे में शक हो तो उसे अंजाम दे।
1192. अगर नमाज़ के किसी रुक्न के बारे में शक हो कि उसे अंजाम दिया है या नही तो अगर उसके बाद वाले काम में मशग़ूल नही हुआ है तो उसको अंजाम दे,जैसे तशह्हुद पढ़ने से पहले शक करे कि दो सजदे किये हैं या नही तो सजदे करे, और अगर सजदे करने के बाद उसे याद आये कि वह पहले सजदे कर चुका था तो चुँकि एक रुक्न ज़्यादा हो गया है इस लिए नमाज़ बातिल है।
1193. अगर नमाज़ के किसी रुक्न के बारें में, उसके बाद वाले काम में मशग़ूल होने के बाद शक करे जैसे तशह्हुद पढ़ते हुए शक करे कि दो सजदे किये हैं या नही तो अपने शक की पर्वा न करे और अगर बाद में याद आ जाये कि उस रुक्न को अदा नही किया है तो अगर बाद वाले रुक्न में दाख़िल नही हुआ है तो उसको अदा करे और अगर बाद वाले रुक्न में मशग़ूल हो चुका है तो उसकी नमाज़ बातिल है। जैसे अगर बाद वाली रकअत के रुकूउ से पहले उसे याद आ जाये कि दो सजदे नही किये हैं तो सजदे करने ज़रूरी हैं और अगर रुकूउ में या उसके बाद याद आये तो उसकी नमाज़ बातिल है।
1194. अगर नमाज़ के किसी ऐसे काम के बारे में शक करे जो रुक्न न हो तो अगर उसके बाद वाले काम में मशग़ूल न हुआ हो तो उसे अदा करे, जैसे अगर सूरः पढ़ने से पहले शक करे कि हम्द पढ़ी है या नही तो हम्द पढ़े और अगर उसे पढ़ने के बाद आये कि उसे पहले पढ़ तुका था तो चूँकि रुक्न ज़्यादा नही हुआ है इस लिए नमाज़ सही है।
1195. अगर नमाज़ के किसी ऐसे काम के बारे में शक करे जो रुक्न न हो और उसके बाद वाले काम में मशग़ूल हो गया हो तो अपने शक की पर्वा न करे, जैसे अगर सूरः पढ़ते वक़्त शक करे कि हम्द पढ़ी है या नही तो अपने शक की पर्वा न करे और अगर बाद में याद आये कि उसे नही पढ़ा था तो अगर बाद वाले रुक्न में मशग़ूल न हुआ हो तो उसे पढ़े और अगर बाद वाले रुक्न को शुरु कर चुका हो तो उसे पढ़े बग़ैर ही उसकी नमाज़ सही है। मसलन अगर क़ुनूत में याद आये कि सूरः ए हम्द नही पढ़ी तो उसे पढ़ना चाहिए और अगर रुकूउ में याद आये तो हम्द पढ़ने की ज़रूरत नही है और उसकी नमाज़ सही है, लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि हम्द न पढ़ने की वजह से दो सजद ए सह्व करे और अगर छोड़ा गया काम वाजिब हो जैसे तशह्हुद तो उसकी क़ज़ा वाजिब है और उसके बाद दो सजद ए सह्व भी करे।
1196. अगर शक हो कि नमाज़ का सलाम पढ़ा है या नही, या शक हो कि सही पढ़ा है या नही, तो अगर नमाज़ की ताक़ीबात या दूसरी नमाज़ में पढ़ने में मशग़ूल हो गया हो या कोई ऐसा काम करने लगा हो जिससे नमाज़ की हालत से निकल गया हो तो अपने शक की पर्वा न करे और अगर उन बातों से पहले शक करे तो सलाम पढ़ना ज़रुरी है और अगर इनसूरतों से पहले सलाम के सही पढ़ने में शक करे तो एहतियाते वाजिब यह है कि सलाम को दोबारा पढ़े।
1197. अगर नमाज़ के सलाम के बाद शक हो कि नमाज़ सही पढ़ी या नही जैसे शक करे कि रुकूउ किया है या नही, या चार रकअती नमाज़ के सलाम के बाद शक करे कि चार रकअत पढ़ी हैं या पाँच तो वह अपने शक की पर्वा न करे। लेकिन अगर उसके शक के दोनो पहलू ऐसे हों जिनसे नमाज़ बातिल होती हो तो नमाज़ बातिल है, जैसे चार रकअती नमाज़ के सलाम के बाद शक करे कि तीन रकअत पढ़ी हैं या पाँच तो उसकी नमाज़ बातिल है।
1198. अगर नमाज़ का वक़्त गुज़र जाने के बाद शक हो कि नमाज़ पढ़ी थी या नही या अगर गुमान भी हो कि नही पढ़ी तो अपने शक की पर्वा न करे, लेकिन अगर नमाज़ का वक़्त बाक़ी हो और शक करे कि नमाज़ पढ़ी या नही या न पढ़ने का गुमान भी हो तो नमाज़ पढ़नी चाहिए, बल्कि अगर पढ़ लेने का गुमान हो तब भी पढ़नी चाहिए।
1199. अगर नमाज़ का वक़्त गुज़र जाने के बाद शक करे कि नमाज़ सही पढ़ी है या नही तो शक की पर्वा न करे।
1200. अगर ज़ोहर व अस्र की नमाज़ का वक़्त गुज़र जाने के बाद मालूम हो कि सिर्फ़ चार रकअत नमाज़ पढ़ी है, लेकिन यह मालूम न हो कि ज़ोहर की नीयत से पढ़ी थी या अस्र की नीयत से, तो चार रकअत नमाज़ मा फ़िज़ ज़िम्मह (यानी वह नमाज़ जो उस पर वाजिब है) की नीयत से पढ़े।
1201. अगर मग़रिब व इशा का वक़्त गुज़र जाने के बाद पता चले कि दोनो में से कोई एक ही नमाज़ पढ़ी है, लेकिन मालूम न हो कि मग़रिब की पढ़ी थी या इशा की, तो मग़रिब और इशा दोनो नमाज़ों को कज़ा पढ़े।
1202. कसीरुश शक को समझने का पैमाना उर्फ़ है, अगर किसी को एक नमाज़ में तीन मर्तबा शक हो या तीन नमाज़ो में लगातार शक हो तो वह कसीरुश शक है जैसे अगर किसी को सुबह, ज़ोहर और अस्र की नमाज़ो में शक हो तो वह कसीरुश शक कहलायेगा। अगर ज़्यादा शक ग़ुस्से, डर और ज़हनी परेशानी की वजह से न हो तो उस शक की पर्वा नही करनी चाहिए।
1203. कसीरुश शक इंसान अगर किसी चीज़ के अंजाम देने के बारे में शक करे तो उसे यह मानना चाहिए कि उसने उस काम को अंजाम दे दिया है और अपनी नमाज़ को पूरा करे। मसलन अगर शक करे कि सजदा किया है या नही तो उसे यह मानना चाहिए कि सजदा कर लिया है। या अगर यह शक करे कि दो रकअत पढ़ी हैं या तीन तो मानना चाहिए कि तीन पढ़ी हैं। अगर किसी ऐसी चीज़ के बारे में शक हो जिससे नमाज़ बातिल हो जाती हो तो उसे मानना चाहिए कि उसने उस काम को अंजाम नही दिया है। जैसे अगर सुबह की नमाज़ में शक हो कि दो रकअत पढ़ी है या तीन तो यह मानकर कि दो रकअत पढ़ी हैं, नमाज़ को ख़त्म कर दे।
1204. अगर किसी को नमाज़ की किसी एक चीज़ के बारे में ज़्यादा शक होता हो तो अगर उसे किसी दूसरी चीज़ के बारे में शक हो जाये तो उस शक के हुक्म के मुताबिक़ अमल करे। जैसे अगर किसी को सजदा करने या न करने के बारे में में ज़्यादा शक होता हो तो अगर कभी उसे रुकूउ के बारे में शक हो जाये तो ज़रूरी है कि रुकूउ के शक के हुक्म पर अमल करे, यानी अगर अभी खड़ा हो तो रुकूउ करे और अगर सजदे में चला गया हो तो शक की पर्वा न करे।
1205. अगर किसी को किसी मख़सूस नमाज़ (जैसे ज़ोहर की नमाज़) में ज़्यादा शक होता हो तो अगर उसे किसी दूसरी नमाज़ (मसलन अस्र की नमाज़) में शक हो जाये तो उस शक के हुक्म पर अमल करे।
1206. अगर किसी को किसी ख़ास जगह पर नमाज़ पढ़ने की हालत में ज़्यादा शक होता है तो अगर उसे किसी दूसरी जगह पर नमाज़ पढ़ते हुए शक हो तो उस शक के हुक्म पर अमल करे।
1207. अगर कोई अपने कसीरुश शक होने के बारे में शक करे यानी उसे मालूम न हो कि पिछला तीन नमाज़ों में शक किया है( ताकि कसीरुश शक माना जाये) या दो नमाज़ों में (ताकि कसीरुश शक न माना जाये) तो उसे शक के हुक्म पर ्मल करना चाहिए। कसीरुश शक को जब तक ्पनी आम हालत पर पलटने का यक़ीन न हो जाये, शक की पर्वा न करे।
1208. जिस इंसान को ज़्यादा शक होता हो अगर वह किसी रुक्न के बारे में शक करे, और उसकी पर्वा न करता हुआ आगे बढ़ जाये और बाद में याद आये कि उसने उसे अदा नही किया था तो अगर वह बाद वाले रुक्न में दाख़िल नही हुआ तो उसे अदा करे और ्गर बाद वाले रुक्न में दाख़िल हो चुका है तो उसकी नमाज़ बातिल है। जैसे अगर शक करे कि रुकूउ किया है या नही और उसकी पर्वा न करे और सजदे में जाने से पहले याद आ जाये कि रुकूउ नही किया था तो रुकूउ करना चाहिए लेकिन अगर सजदे में याद आये कि रुकूउ नही किया था तो नमाज़ बातिल है।
1209. जिस इंसान को ज़्यादा शक होता हो अगर वह किसी ऐसी चीज़ के बारे में शक करे जो रुक्न न हो और उसकी पर्वा न करते हुए आगे बढ़ जाये और बाद में याद आये कि उसे अंजाम नही दिया था तो अगर उसे अदा करने के मौक़े से आगे न बढ़ा हो तो उसे अदा करे और अगर उसे अदा करने की मंज़िल से आगे बढ़ गया हो यानी बाद वाले रुक्न में मशग़ूल हो गया हो तो उसकी नमाज़ सही है, जैसे शक करे कि सूरः ए हम्द पढ़ी है या नही और उस की पर्वा न करते हुए आगे बढ़ जाये और क़ुनूत में याद आये कि सूरः ए हम्द नही पढ़ा तो उसे पढ़े और अगर रुकूउ में याद आये तो उसकी नमाज़ उसे पढ़े बग़ैर ही सही है।
1210. अगर इमामे जमाअत नमाज़ की रकअतों का तादाद में शक करे जैसे शक करे कि तीन रकअत पढ़ी हैं या चार और मामूम को यक़ीन या गुमान हो कि चार रकअत पढ़ी है और वह किसी तरह इमाम को समझा दे कि चार रकअत पढ़ी है तो इमाम को चाहिये कि वहीँ नमाज़ को ख़त्म कर दे और इसके बाद नमाज़े एहतियात पढ़ने की भी ज़रूरत नही है, इसी तरह अगर इमाम को रकअत की तादाद के बारे में यक़ीन या गुमान हो कि कितनी रकअत पढ़ी है और मामूम को रकअत की तादाद के बारे में शक हो तो मामूम को अपने शक की पर्वा नही करनी चाहिए।
1211. अगर कोई किसी मुस्तहब नमाज़ की रकअतों में शक करे तो अगर ज़्यादा की तरफ़ शक से नमाज़ बातिल होती हो तो कम पर बिना रखे, जैसे अगर सुबह की मुस्तहब नमाज़ में शक करे कि दो रकअत पढ़ी है या तीन तो दो पर बिना रखे लेकिन अगर ज़्यादा पर शक नमाज़ को बातिल न करता हो तो इख़्तियार है चाहे जिस तरफ़ अमल करे जैसे अगर किसी को सुबह की मुस्तहब नमाज़ में शक हो कि दो रकअत पढ़ी है या एक रकअत तो उसे इख़्तियार है कि चाहे उसे पहली रकअत माने या दूसरी।
1212. अगर नाफ़ेला नमाज़ में किसी रुक्न को कम कर दिया जाये तो एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़ बातिल हो जायेगी, लेकिन नाफ़ेला नमाज़, रुक्न की ज़्यादती से बातिल नही होती। इस लिए अगर नाफ़ेला नमाज़ में कोई चीज़ छुट जाये और उसके बाद वाले रुक्न में मशग़ूल होने के बाद याद आये तो उस छुटी हुई चीज़ को पढ़ने के बाद उस बाद वाले रुक्न को दोबारा अंजाम दे। जैसे अगर रुकूउ की हालत में याद आये कि सूरः नही पढ़ा तो खड़े होकर सूरः पढ़े और फिर दोबारा रुकूउ में जाये।
1213. अगर नाफ़ेला नमाज़ के किसी अमल में शक करे, चाहे वह रुक्न हो या ग़ैरे रुक्न, तो अगर उसका महल नही गुज़रा है तो उसे पूरा करे और अगर उसका महल गुज़र चुका है तो शक की पर्वा न करे।
1214. अगर किसी दो रकअती मुस्तहब नमाज़ में तीन या तीन से ज़्यादा रकअत का गुमान हो या दो व उससे कम का गुमान हो तो उसी गुमान पर अमल करना चाहिए। लेकिन अगर उस गुमान से नमाज़ बातिल होती हो तो इस सूरत में गुमान शक के हुक्म है जैसे अगर उसका गुमान एक रकअत पर हो तो एक रकअत और पढ़ कर नमाज़ तमाम करे।
1215. अगर नाफ़ेला नमाज़ में कोई ऐसा काम करे जिससे सजद ए सह्व वाजिब हो जाता हो या एक सजदे या तशह्हुद को भूल जाये तो नमाज़ के बाद सजद ए सह्व करना या सजदे व तशह्हुद की कज़ा अंजाम देना ज़रूरी नही है।
1216. अगर किसी मुस्तहब नमाज़ के बारे में शक करे कि पढ़ी है या नही तो अगर नमाज़े जाफ़रे तैयार की तरह, उसके लिए कोई वक़्त मुऐयन न हो तो यह माने कि नही पढ़ी है। इसी तरह अगर किसी मुस्तहब नमाज़ का वक़्त मुऐयन हो (जैसे नवाफ़िले यौमिया) तो अगर उसके पढ़ने के बारे में वक़्त गुज़रने से पहले शक हो तो उस नमाज़ को पढ़े और अगर वक़्त गुज़र चुका हो तो शक की पर्वा न करे।
1217. नौ सूरतें ऐसी हैं कि अगर चार रकअती नमाज़ों की रकअतों में शक हो तो पहले थोड़ी देर फिक्र करे अगर किसी एक तरफ़ यक़ीन या गुमान हो जाये तो उसी पर बिना रखते हुए आगे बढ़े और नमाज़ को पूरा करे वरना उन अहकाम पर अमल करे जो इस बारे में बयान किये जायेगें। वह नौ सूरतें निम्न लिखित हैं।
1- दूसरे सजदे से सर उठाने के बाद शक हो कि यह दूसरी रकअत है या तीसरी तो तीसरी मान कर एक रकअत और पढ़े व नमाज़ तमाम करे और नमाज़ के बाद एक रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर या दो रकअत बैठ कर पढ़े। ( इस नमाज़ को पढ़ने का तरीक़ा आगे बयान किया जायेगा)
2- दूसरे सजदे से सर उठाने के बाद शक हो कि दूसरी रकअत है या चौथी तो चार मान कर नमाज़ तमाम करे और नमाज़ के बाद दो रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर पढ़े।
3- दूसरे सजदे से सर उठाने के बाद शक हो कि यह दूसरी रकअत है या तीसरी या चौथी है तो चौथी मान कर नमाज़ तमाम करे और नमाज़ के बाद दो रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर और उसके बाद दो रकअत नमाज़े एहतियात बैठ कर पढ़े। लेकिन अगर पहले सजदे के बाद या दूसरे सजदे से सर उठाने से पहले इन तीनों शको में से कोई एक शक पेश आये तो वह नमाज़ दोबारा पढ़े।
4- दूसरे सजदे से सर उठाने के बाद शक हो कि यह चौथी रकअत है या पाँचवीं तो चौथी मान कर नमाज़ ख़त्म कर दे और नमाज़ के बाद दो सजद ए सहव बजा लाये।
5- अगर नमाज़ में किसी भी हालत में तीन व चार के बीच शक हो जाये तो चार मान कर नमाज़ ख़त्म कर दे और नमाज़ के बाद एक रकअत नमाज़े एहतियात खढ़े होकर या दो रकअत बैठ कर पढ़े।
6- अगर क़ियाम की हालत में शक हो कि यह चौथी रकअत है या पाँचवी तो फ़ौरन बैठ जाये और तशह्हुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ को पूरा करे, उसके बाद एक रकअत नमाज़ एहतियात खड़े होकर या दो रकअत बैठ कर पढ़े।
7- अगर क़ियाम की हालत में शक हो कि यह तीसरी रकअत है या पाँचवी तो बैठ जाये और तशह्हुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम कर दे उसके बाद दो रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर पढ़े।
8- अगर क़ियाम की हालत में शक हो कि यह तीसरी रकअत है या चौथी या पाँचवी तो बैठ कर तशह्हुद व सलाम पढ़े व नमाज़ तमाम करने के बाद दो रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर और दो रकअत नमाज़े एहतियात बैठ कर पढ़े।
9- अगर क़ियाम की हालत में शक हो कि पाँचवी रकअत है या छठी तो फ़ौरन बैठ जाये और तशह्हुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ ख़त्म करे और दो सजद ए सहव बजा लाये।
1218. अगर किसी को सही शकों में से कोई शक हो तो वह नमाज़ को नही तोड़ सकता और अगर नमाज़ तोड़ दे तो गुनाहगार होगा, लिहाज़ा अगर कोई ऐसा काम किये बग़ैर जो नमाज़ को बातिल कर देता हो (जैसे क़िबले की तरफ़ से मुँह फेर लेना) नये सिर से नमाज़ शुरु कर दे तो दूसरी नमाज़ भी बातिल होगी लेकिन अगर कोई ऐसा काम करने के बाद, जो नमाज़ को बातिल कर देता हो, दूसरी नमाज़ में मशग़ूल हो तो उसकी दूसरी नमाज़ सही होगी।
1219. अगर कोई ऐसा शक सामने आये जिससे नमाज़े एहतियात वाजिब हो जाती है, तो अगर कोई इंसान उस नमाज़ को तमाम करके नमाज़ एहतियात पढ़े बग़ैर, उसी नमाज़ को नये सिरे से पढ़े तो वह गुनाहगार होगा। अब अगर उसने दूसरी नमाज़, कोई ऐसा काम किये बग़ैर जिससे नमाज़ बातिल होती है, शुरू की तो उसकी दूसरी नमाज़ भी बातिल होगी लेकिन अगर कोई ऐसा काम अँजाम देने के बाद, जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है, दूसरी नमाज़ शुरू की है तो उसकी दूसरी नमाज़ सही है।
1220. अगर किसी को सही शकों में से कोई एक शक हो तो जैसाकि बताया जाचुका है कि फ़ौरन ग़ौर व फ़िक्र करे लेकिन अगर वह इससे भी किसी नतीजे पर न पहुँचे यानी उसका शक दूर न हो तो थोड़ी देर और फ़िक्र करने में भी कोई हरज नही है जैसे अगर सजदे में शक करे तो सजदे के बाद तक ग़ौर व फ़िक्र कर सकता है।
1221.अगर शुरु में किसी एक तरफ़ गुमान ज़्यादा हो और बाद में दोनो तरफ़ बराबर हो जाये तो शक के हुक्म पर अमल करे और उसके बर अक्स (विपरीत) अगर पहले शक की सूरत पैदा हो और बाद में किसी एक तरफ़ का गुमान हो जाये तो गुमान के मुताबिक़ अमल करे।
1222. अगर किसी को यही मालूम न हो कि जो हालत पैदा हुई है वह शक की है या गुमान की तो उसे शक के हुक्म पर अमल करना चाहिए।
1223.अगर किसी को नमाज़ के बाद मालूम हो कि नमाज़ पढ़ते वक़्त तरदीद (समंजस्य) की हालत में था, जैसे दो रकअत पढ़ी हैं या तीन और तीन मानते हुए आगे बढ़ गया हो लेकिन यह न जानता हो कि यह तीन रकअत जो मानी है, इसका फैसला तीन रकअत पढ़ने के गुमान की वजह से था या नज़र में दोनों तरफ़ बराबर होने के आधार पर तो एहतियाते वाजिब यह है कि नमाज़े एहतियात पढ़े।
1224.अगर तशह्हुद पढ़ते हुए या खड़े होने के बाद शक हो कि दोनो सजदे किये या नही और उसी वक़्त कोई ऐसा शक भी हो जाये जो दोनो सजदों के तमाम करने के बाद होता तो नमाज़ सही रहती (जैसे दूसरी व तीसरी रकअत के बीच शक) तो उस शक के हुक्म पर अमल करे।
1225.अगर तशह्हुद पढ़ने से पहले या जिस रकअत में तशह्हुद न हो उसमें सजदों के बाद खड़े होने से पहले शक हो कि दोनो सजदे किये हैं या नही और उसी वक़्त कोई ऐसा शक भी हो जाये कि अगर वह दोनो सजदों के पूरा होने के बाद होता तो नमाज़ सही होती, तो उसकी नमाज़ बातिल है।
1226. अगर क़ियाम की हालत में तीन और चार के बीच या तीन, चार और पाँच रकअतों के बीच शक हो और उसी वक़्त याद आये कि इससे पहली रकअत के दो सजदे नही किये हैं तो उसकी नमाज़ बातिल है।
1227. अगर नमाज़ी का पहला शक दूर हो जाये और उसकी जगह दूसरा शक पैदा हो जाये तो दूसरे शक के मुताबिक़ अमल करे जैसे अगर पहले शक हो कि दो रकअत पढ़ी हैं या तीन उसके बाद शक करे कि तीन रकअत पढ़ी है या चार तो दूसरे शक के हुक्म पर अमल करे।
1228. अगर नमाज़ के बाद शक करे कि नमाज़ में दो व चार के बीच शक हुआ था या तीन व चार के बीच तो एहतियाते वाजिब यह है कि उन दोनो के हुक्म पर अमल करे और नमाज़ को दोबारा पढ़े।
1229. अगर नमाज़ के बाद पता चले कि नमाज़ में शक हुआ था लेकिन यह पता न हो कि वह बातिल शकों में से था या सही शकों में से और अगर सही शकों में से था तो उसकी कौन सी क़िस्म से था, तो एहतियाते वाजिब यह है कि उसे सही शक मान कर जिस क़िस्म का एहतेमाल हो उसके हुक्म पर अमल करे और नमाज़ को दोबारा पढ़े।
1230. अगर बैठ कर नमाज़ पढ़ने वाले को कोई ऐसा शक हो जाये जिसके लिए एक रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर या दो रकअत बैठ कर पढ़नी ज़रूरी है तो उसे एक रकअत नमाज़ बैठ कर ही पढ़ लेनी चाहिए और अगर कोई ऐसा शक हो जिसके लिए दो रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर पढ़नी ज़रूरी हो तो उसे, वह दो रकअत नमाज़ बैठकर ही पढ़ लेनी चाहिए।
1231. अगर खड़े होकर नमाज़ पढ़ने वाला नमाज़े एहतियात पढ़ते वक़्त खड़ा न रह सकता हो, यानी बैठ कर नमाज़ पढ़ने पर मजबूर हो जाये तो इससे पहले वाले मसले में बयान किये गये तरीक़े के अनुसार उसे जितनी रकअत नमाज़ खड़े होकर पढ़नी हो, उसे बैठ कर पढ़े।
1232. जो इंसान बैठ कर नमाज़ पढ़ रहा हो अगर नमाज़े एहतियात के वक़्त उसमें खड़े होने की ताक़त आ जाये तो उसे खड़े होकर नमाज़ पढ़ने वाले के तरीक़े पर अमल करना चाहिए।