1233.जिस पर नमाज़े एहतियात वाजिब हो उसे चाहिए कि नमाज़ के सलाम के बाद फ़ौरन नमाज़े एहतियात की नीयत करके तकबीर कहे और हम्द पढ़ कर रुकुउ में जाये व दो सजदे करे, अगर उस पर एक रकअत नमाज़े एहतियात वाजिब है तो दोनो सजदों के बाद तशह्हुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ को ख़त्म करे और अगर दो रकअत वाजिब है तो दोनो सजदों के बाद पहली रकअत की तरह एक रकअत नमाज़ और पढ़े व तशह्हुद और सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे।
1234.नमाज़ एहतियात में सूरः और क़ुनूत नही है और इस नमाज़ को आहिस्ता पढ़ना चाहिए और इसकी नीयत को भी ज़बान पर नही लाना चाहिए यहाँ तक कि एहतियात वाजिब की बिना पर बिस्मिल्लाह को भी आहिस्ता पढ़े।
1235.अगर नमाज़े एहतियात पढ़ने से पहले याद आ जाये कि मैने जो नमाज़ पढ़ी है वह सही है तो फिर नमाज़े एहतियात पढ़ने की ज़रूरत नही है और अगर नमाज़े एहतियात पढ़ते वक़्त याद आये तो उसे पूरा करना ज़रूरी नही है।
1236.अगर नमाज़े एहतियात शुरु करने से पहले याद आ जाये कि नमाज़ की रकअतें कम थीं तो अगर कोई ऐसा काम नही किया हो जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है तो जो चीज़ नही पढ़ी है उसे पढ़ कर पूरा करे और ग़लतजदह पर सलाम पढ़ने की वजह से दो सजद ए सह्व करे, लेकिन अगर कोई ऐसा काम कर चुका हो जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है तो नमाज़ को दोबारा पढ़े।
1237.अगर नमाज़े एहतियात पढ़ने के बाद मालूम हो कि नमाज़ की कमी बिल्कुल नमाज़े एहतियात के बराबर थी (जैसे तीन और चार में शक की वजह से एक रकअत नमाज़े एहतियात पढ़ी हो और नमाज़े एहतियात के बाद याद आ जाये कि मेरी असली नमाज़ तीन रकअत थी) तो उसकी नमाज़ सही है।
1238.अगर नमाज़े एहतियात पढ़ने के बाद मालूम हो कि नमाज़ की कमी नमाज़े एहतियात से कम थी, जैसे दो और चार के शक में दो रकअत नमाज़े एहतियात पढ़े, बाद में याद आये कि नमाज़ तीन रकअत पढ़ी थी तो उसे चाहिए कि नमाज़ को दोबारा पढ़े।
1239.अगर नमाज़े एहतियात पढ़ने के बाद मालूम हो कि नमाज़ की कमी नमाज़े एहतियात से ज़्यादा थी, मसलन तीन और चार के बीच शक की हालत में एक रकअतनमाज़े एहतियात पढ़ी और बाद में याद आया कि अस्ल नमाज़ दो रकअत पढ़ी थी तो अगर नमाज़े एहतियात के बाद कोई ऐसा काम किया हो जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है (जैसे क़िबले की तरफ पीठ करना) तो अस्ल नमाज़ को दोबारा पढ़े और अगर कोई ऐसा काम न किया हो तो अस्ल नमाज़ में जो कमी रह गई थी उसे पूरा करे और एहतियात यह है कि अस्ल नमाज़ को दोबारा भी पढ़े।
1240.अगर दो तीन और चार रकअत के बीच शक करे और दो रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर पढ़ने के बाद याद आ जाये कि अस्ल नमाज़ दो रकअत पढ़ी थी तो ज़रूरी नही है कि दो रकअत नमाज़े एहतियात बैठ कर पढ़े।
1241.अगर तीन और चार के बीच शक करे और नमाज़े एहतियात पढ़ते वक़्त याद आये कि अस्ल नमाज़ तीन रकअत पढ़ी थी तो नमाज़े एहतियात तमाम करे चाहे बैठ कर दो रकअत ही क्यों न पढ़ रहा हो, इस सूरत में एहतियातयह है कि अस्ल नमाज़को दोबारा पढ़े।
1242.अगर दो तीन और चार में शक करे और दो रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर पढ़ते वक़्त दूसरी रकअत के रुकू में जाने से पहले याद आये कि नमाज़ तीन रकअत पढ़ी थी तो बैठ जाये और नमाज़े एहतियात को एक रकअत पर ख़त्म कर दे और एहतियात यह है कि अस्ल नमाज़ को दोबारा भी पढ़े।
1243.अगर नमाज़े एहतियात की हालत में मालूम हो कि नमाज़ की कमी, नमाज़े एहतियात से कम या ज़्यादा थी तो अगर नमाज़े एहतियात को उस नमाज़े की कमी के मुताबिक़ पूरा न कर सके तो नमाज़े एहतियात को छोड़ दे और अस्ल नमाज़ को दोबारा पढ़े। जैसे अगर दो औरचार रकअत में शक की वजह से दो रकअत नमाज़े एहतियात खड़े होकर पढ़ रहा हो और दूसरी रकअतके रुकूउ में जाने के बाद याद आये कि अस्ल नमाज़तीन रक्त पढ़ी थी तो अस्ल नमाज़ को दोबारा पढ़े।
1244. अगर कोई शक करे कि जो नमाज़े एहतियात उस पर वाजिब हुई थी उसे पढ़ा या नही, तो अगर नमाज़ का वक़्त गुज़र चुका हो तो शक की पर्वा न करे और अगर वक़्त बाक़ी हो और वह किसी दूसरे काम में न लगा हो और अपनी जगह से न उठा हो और कोई ऐसा काम भी नही किया जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है तो नमाज़े एहतियात पढ़े। लेकिन अगर वह किसी दूसरे काम में मशगूल हो गया हो या कोई ऐसा काम किया हो जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है या नमाज़ और शक के बीच काफ़ी वक़्त गुज़र चुका हो तो एहतियात यह है कि नमाज़े एहतियात पढ़ने के बाद अस्ल नमाज़ को भी दोबारा पढ़े।
1245.अगर नमाज़े एहतियात में किसी रुक्न को ज़्यादा करे या एक रकअत की जगह दो रकअत पढ़ ले तो नमाज़े एहतियात बातिल हो जायेगी और बईद नही है कि ऐसी हालत में फ़क़त अस्ल नमाज़ को दोबारा पढ़ना पड़े।
1246.अगर नमाज़े एहतियात पढ़ते हुए उसके किसी अमल में शक करे तो अगर उसका मौक़ा न गुज़रा हो तो उसे अंजामदे और अगर उसका मौक़ा गुज़र चुका हो तो शक की परवा न करे, जैसे अगर शक करे कि हम्द पढ़ी है या नही तो अगर रूकू में न गया हो तो हम्द पढ़े और अगर रुकू में हो तो अपने शक की पर्वा न करे।
1247. अगर नमाज़े एहतियात की रकअतों की तादाद में शक हो जाये तो ज़्यादा पर बिना रख कर नमाज़ को तमाम करे नमाज़ सही है। लेकिन अगर ज़्यादा पर बिना रखना नमाज़ के बातिल होने का सबब हो तो कम पर बिना रख कर नमाज़ को तमाम करे और अस्ल नमाज़ को भी दोबारा पढ़े।
1248. अगर नमाज़े एहतियात में भूले से कोई ऐसी चीज़ कम या ज़्यादा हो जाये जो रुक्न न हो तो उसके लिये सजद ए सह्व नही है।
1249.अगर नमाज़े एहतियात के सलाम के बाद शक करे कि उसके किसी हिस्से या शर्त को पूरा किया है या नही तो अपने शक की पर्वा न करे।
1250.अगर नमाज़े एहतियात में तशह्हुद या सजदे को भूल जाये तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि सलाम के बाद उसे क़ज़ा पढ़े।
1251. अगर किसी इंसान पर, नमाज़े एहतियात, एक सजदे या तशह्हुद की क़ज़ा या दो सजद ए सह्व वाजिब हो तो उसे सबसे पहले नमाज़े एहतियात पढ़नी चाहिए।
1252.नमाज़ की रकतों के बारे में गुमान यक़ीन के हुक्म में है, जैसे अगर चार रकअती नमाज़ में गुमान करे कि चार रकअत पढ़ी हैं तो उसे नमाज़े एहतियात पढ़ने की ज़रूरत नही है, इसी तरह रकअत के अलावा दूसरी चीज़ों के बारे में भी गुमान का एतेबार है लेकिन एहतियात पर अमल करना बेहतर है।
1253.रोज़ाना की पाँच वक़्तों की वाजिब नमाज़ों के लिये शक, गुमान और सह्व, का जो हुक्म है, वही दूसरी वाजिब नमाज़ों के लिए भी हैं जैसे अगर कोई नमाज़े आयात में शक करे कि एक रकअत पढ़ी या दो रकअत ? तो चूँकि उसका शक दो रकअती नमाज़ में है, इसलिये नमाज़ बातिल हो जायेगी।
1254.इंसान को नमाज़ के सलाम के बाद पाँच चीज़ों के लिये दो सजद ए सह्व , बाद में बयान होने वाले तरीक़े के अनुसार करने चाहिए।
1- अगर नमाज़ की हालत में भूले से बात करे।
2- अगर एक सजदा करना भूल गया हो ।
3- चार रकअती नमाज़ में दूसरे सजदे के बाद शक हो कि चार रकअत पढ़ी है या पाँच।
4- अगर भूल से उस जगह सलाम पढ़ लिया हो, जहाँ नही पढ़ना चाहिए था, जैसे पहली रकअत में।
5- तशह्हुद पढ़ना भूलगया हो।
1255.अगर इंसान नमाज़पढ़ते हुए भूले से या यह ख़्याल करते हुए कि नमाज़ ख़त्म हो गयी है बात करे तो उसे नमाज़ के बाद दो सजद ए सह्व करने चाहिए।
1256.ख़ाँसने और आह भरने की वजह से मुँह से जो हर्फ़ निकलते हैं, उनके लिये सजद ए सह्व वाजिब नही है, लेकिन अगर भूले से आख़ या आह कहे तो सजद ए सह्व करना पड़ेगा।
1257.अगर किसी चीज़ को ग़लत पढ़ा हो तो उसे दोबारा सही पढ़ने की वजह से सजद ए सह्व वाजिब नही होता।
1258.अगर नमाज़ में थोड़ी देर तक इस तरह बात करे कि सबको एक बार बात करना समझा जाये तो सबके लिये दो सजद ए सह्व काफ़ी होगें।
1259.अगर भूले से तस्बीहाते अरबआ न पढ़े या तीन बार से कम या ज़्यादा पढ़े तो एहतियाते मुस्तहब यह है कि नमाज़ के बाद दो सजद ए सह्व करे।
1260.जिस जगह, नमाज़ का सलाम नही पढ़ना चाहिये, अगर वहाँ भूलकर सलाम पढ़ले यानी कहे अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्लाहिस्सालेहीन या यह कहे अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बराकातुहु तो नमाज़ के बाद दो सजद ए सह्व करने चाहिए। और अगर भूले से इन दो सलामों का कुछ हिस्सा पढ़ले या भूले से कहे अस्सलामु अलैका अय्युहन नबियु व रहमतुल्लाहि व बराकातुहु तो एहतियात यह है कि दो सजदे सह्व करे।
1261.जिस जगह पर सलाम नही पढ़ना चाहिए, अगर वहाँ पर भूले से तीनों सलाम पढ़ले तो उनके लिए दो सजद ए सह्व काफ़ी हैं।
1262.अगर एक सजदा या तशह्हुद भूल जाये और बाद वाली रकअत के रूकू से पहले याद आये तो पलट कर उन्हें अंजाम दे और इस काम के लिए जो चीज़ ज़्यादा हो उसके लिए सजद ए सह्व वाजिब नहीं है।
1263.अगर रूकू में या उसके बाद याद आये कि एक सजदा या तशह्हुद इससे पहली रकअत में भूल गया था तो नमाज़ के सलाम के बाद सजदे या तशह्हुद की क़ज़ा करे और बाद में दो सजद ए सह्व बजा लाये।
1264.अगर वाजिब सजद ए सह्व को नमाज़ के सलाम के बाद जान बूझ कर न करे तो गुनाहगार है और सजदा जल्द से जल्द करना वाजिब है और अगर भूल की वजह से न कर पाया हो तो जब भी याद आये फ़ौरन करे, नमाज़ को दोबारा पढ़ना वाजिब नही है।
1265.अगर किसी को शक हो कि सजद ए सह्व वाजिब हुआ है या नही तो उस परसजद ए सह्व करना वाजिब नही है।
1266.अगर किसी को शक हो कि उस पर दो सजद ए सहल वाजिब हुए हैं या चार तो सिर्फ़ दो सजद ए सह्व करने काफ़ी है।
1267.अगर मालूम हो कि दो सजद ए सह्व में से एक सजदा नही किया है तो दो सजदे सह्व करने चाहिए और अगर मालूम हो कि भूले से तीन सजद ए सह्व कर लिये हैं तो दोबारा दो सजद ए सह्व करने चाहिए।
1268.सजद ए सह्व का तरीक़ा यह है कि नमाज़ के सलाम के बाद फ़ौरन सजद ए सह्व की नीयत करे और अपने माथे को किसी ऐसी चीज़ पर रखे जिसपर सजदा करना सही हो और कहे बिस्मिल्लाहि व बिल्लाहि व सल्लल्लाहु अला मुहम्मदिन व आलिहि, या कहे बिस्मिल्लाहि व बिल्लाहि अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व आलि मुहम्मद लेकिन एहतियात की बिना पर बेहतर है कि यह कहे बिस्मिल्लाहि व बिल्लाहि अस्सलामु अलैका अय्युहन नबियो व रहमतुल्लाहि व बराकातुहु। यह कहने के बाद सजदे से सर उठाकर बैठ जाये और दोबारा सजदे में जाकर यही जिक्र पढ़े और सजदे से सर उठा कर बैठ जाये और तशह्हुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ तमाम करे।
1269. अगर इंसान नमाज़ में तशह्हुद या सजदा भूल जाये और नमाज़ के बाद उनकी क़ज़ा करना चाहे तो उसके लिए नमाज़ की तमाम शर्तों (जैसे तहारत, क़िबला व...) का होना ज़रूरी हैं।
1270.अगर कई सजदे या तशह्हुद भूल जाये जैसे पहली रकअत में एक सजदा और दूसरी रकअत में भी एक सजदा तो नमाज़ के बाद दोनो सजदों की क़ज़ा करे, यह मुऐयन करना ज़रूरी नही है कि पहले सजदे की क़ज़ा अदा कर रहा है या दूसरे की, बाद में उनके लिए सजद ए सह्व भी करे।
1271.अगर एक सजदा व तशह्हुद भूल जाये तो एहतियाते वाजिब यह है कि जिसको पहले भूला हो उसकी क़ज़ा पहले करे और अगर यह याद न हो कि पहले सजदा भूला या तशह्हुद तो एहतियात यह है कि पहले एक सजदा करे उसके बाद एक तशह्हुद और फिर एक सजदा ताकि यक़ीन हो जाये कि जिस तरतीब से भूला था उसी तरतीब से क़ज़ा अंजाम दी है।
1272.अगर यह ख़्याल करते हुए कि पहले सजदा भूला था, उसकी क़ज़ा पहले करे और तशह्हुद पढ़ने के बाद याद आये कि पहले तशह्हुद भूला था तो एहतियाते वाजिब यह है कि दोबारा सजदे की क़ज़ा करे और इसी तरह अगर यह ख़्याल करते हुए कि तशह्हुद पहले भूला था उसकी कज़ा पहले करले और सजदे के बाद याद आये कि पहले सजदा भूला था तो एहतियाते वाजिब यह है कि तशह्हुद को दोबारा पढ़े।
1273.अगर नमाज़ के सलाम के बाद तशह्हुद या सजदे की कज़ा अदा करने से पहले कोई ऐसा काम करे कि अगर उसे जान बूझ कर या भूले से नमाज़ में किया जाये तो नमाज़ बातिल हो जाये, मसलन क़िबले की तरफ़ पीठ करले तो इस हालत में तशह्हुद व सजदे की क़ज़ा करे और एहतियाते वाजिब यह है कि अस्ल नमाज़ को दोबारा पढ़े।
1274.अगर नमाज़ के सलाम के बाद कोई ऐसा करले जिससे नमाज़ बातिल हो जाती हो और उसके बाद याद आये कि आख़िरी रकअत का एक सजदा भूल गया था तो भूले हुए सजदे की क़ज़ा करे और बाद में दो सजदे सह्व करे, और अगर कोई ऐसा करने से पहले याद आ जाये जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है तो उस सजदे और उसके बाद की नमाज़ को पूरा करे और नमाज़ के बाद ग़लत जगह पर सलाम पढ़ने की वजह से दो सजद ए सह्व करे और अगर आखिरी रकअत का तशह्हुद भूल गया हो तो उसका भी यही सजदे वाला हुक्म है।
1275.अगर नमाज़ के बीच या नमाज़ के सलाम और क़ज़ा सजदे या तशह्हुद के बीच कोई ऐसा काम करे जिससे सजद ए सह्व वाजिब हो जाता हो, (जैसे भूले से बात करले) तो एहतियाते वाजिब यह है कि पहले भूले हुए सजदे या तशह्हुद की क़ज़ा करे और बाद में सजद ए सह्व।
1276.अगर किसी को यह याद न रहे कि सजदा भूला है या तशह्हुद तो दोनो की क़ज़ा करे और जिसे चाहे पहले अदा करले कोई हरज नही है।
1277. अगर शक हो कि सजदा या तशह्हुद भूला है या नही तो क़ज़ा वाजिब नही है।
1278. अगर यह तो मालूम हो कि सजदा या तशह्हुद भूला था, लेकिन यह शक करे कि बाद वाली रकअत के रूकू से पहले उसको अंजाम दिया था या नही तो एहतियाते वाजिब यह है कि उसकी क़ज़ा करे।
1279.अगर कोई शक करे कि नमाज़ के बाद भले हुए सजदे या तशह्हुद की क़ज़ा की है या नही तो अगर नमाज़ का वक़्त बाक़ी हो तो सजदे या तशह्हुद की क़ज़ा करे और अगर नमाज़ का वक़्त गुज़र चुका हो तो भी एहतियाते वाजिब यही है कि उस सजदे या तशह्हुद की क़ज़ा की जाये।
1280.अगर नमाज़ के वाजिबात में से जान बूझ कर किसी चीज़ को कम या ज़्यादा कर दिया जाये, चाहे वह एक हर्फ़ ही हो, तो नमाज़ बातिल है।
1281.अगर मसला न जानने की वजह से नमाज़ के अजज़ा में से किसी चीज़ को कम या ज़्यादा कर दे तो नमाज़ बातिल है चाहे वह ज़ुज़ रुक्न हो या रुक्न न हो।
1282. अगर नमाज़ पढ़ते वक़्त मालूम हो कि ग़ुस्ल या वुज़ू बातिल था या वुज़ू या ग़ुस्ल के बग़ैर नमाज़ शुरु कर दी है तो नमाज़ तोड़ दे और वुज़ू या ग़ुस्ल करके दोबारा नमाज़ पढ़े। अगर नमाज़ पढ़ने के बाद यह बात मालूम हो तो भी वुज़ू या ग़ुस्ल करके दोबारा नमाज़ पढ़े और अगर वक़्त गुज़र चुका हो तो उसकी क़ज़ा करे।
1283. अगर रूकू में पहुँचने के बाद याद आये कि इससे पहली रकअत के दो सजदे भूल गया था तो उसकी नमाज़ बातिल है और अगर रूकू में जाने से पहले याद आजाये तो पलट कर दो सजदे करे और खड़े होकर हम्द व सूरः या तसबीहत पढ़े और नमाज़ को पूरा करे।
1284.अगर, अस्सलामु अलैना या अस्सलामु अलैकुम कहने से पहले याद आये कि आख़िरी रकअत के दो सजदे नही किये हैं तो दो सजदे करे और उसके बाद तशह्हुद व सलाम पढ़े।
1285.अगर नमाज़ के सलाम से पहले याद आये कि नमाज़ की आख़िरी रकअत या उससे ज़्यादा नही पढ़ी तो जितनी रकअत भूला हो उन्हें पढ़े।
1286.अगर नमाज़ के सलाम के बाद याद आये कि नमाज़ की आखिरी रकअत या उससे ज़्यादा नही पढ़ी तो अगर सलाम के बाद कोई ऐसा काम कर लिया हो जिससे नमाज़ बातिल हो जाती है, (जैसे क़िबला की तरफ़ पीठ करना) तो उसकी नमाज़ बातिल है और अगर कोई ऐसा काम नही किया है तो जो भूला हो उसे फ़ौरन पढ़ले।
1287.अगर नमाज़ के सलाम के बाद कोई ऐसा काम करे, कि अगर उसे नमाज़ की हालत में जान बूझ कर या भूले से करता तो नमाज़ बातिल हो जाती, (जैसे क़िबले की तरफ़ पीठ करना) और बाद में याद आये कि आख़िरी दो सजदे नही किये हैं तो उसकी नमाज़ बातिल है। लेकिन अगर कोई ऐसा काम न किया हो तो दो सजदे करके दोबारा तशह्हुद व सलाम पढ़ कर नमाज़ को तमाम करे और ग़लत जगह पर सलाम पढ़ने की वजह से दो सजद ए सह्व करे और एहतियाते मुस्तहब यह है कि नमाज़ को दोबारा भी पढ़े।
1288. अगर नमाज़ी को मालूम हो जाये कि नमाज़ वक़्त से पहले पढ़ी है या क़िबले की तरफ़ पीठ करके पढ़ी है या क़िबले से दाहिनी या बायीं तरफ़ पढ़ी है तो उसको दोबारा पढ़े और अगर वक़्त गुज़र चुका हो तो उसकी क़ज़ा करे।