हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के वालिद(पिता) हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम तथा आपकी वालिदा(माता) हज़रत फ़ातिमा ज़हरा अलैहस्सलाम थीं। आप अपने वालिदा(माता) वालिद(पिता) की प्रथम संतान थे।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का जन्म सन् तीन ( 3) हिजरी में रमज़ान मास की चौदहवीं ( 14) तारीख को मदीना नामक शहर में हुआ था। जलालुद्दीन नामक इतिहासकार अपनी किताब तारीख़ुल खुलफ़ा में लिखता है कि आपकी सूरत हज़रत पैगम्बर (स.) से बहुत अधिक मिलती थी।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का पालन पोषन आपके माता पिता व आपके नाना हज़रत पैगम्बर ( स 0) की देख रेख में हुआ। तथा इन तीनो महान् व्यक्तियों ने मिल कर हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम में मानवता के समस्त गुणों को विकसित किया।
शिया सम्प्रदाय की विचारधारा के अनुसार इमाम जन्म से ही इमाम होता है। परन्तु वह अपने से पहले वाले इमाम के स्वर्गवास के बाद ही इमामत के पद को ग्रहन करता है। अतः हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने भी अपने वालिद(पिता) हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इमामत के पद को सँभाला।
जब आपने इमामत के पवित्र पद को ग्रहन किया तो चारो और अराजकता फैली हुई थी। व इसका कारण आपके वालिद(पिता) की आकस्मिक शहादत थी। अतः माविया ने जो कि शाम नामक प्रान्त का गवर्नर था इस स्थिति से लाभ उठाकर विद्रोह कर दिया।
इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सहयोगियों ने आप के साथ विश्वासघात किया उन्होने धन , दौलत , पद व सुविधाओं के लालच में माविया से साँठ गाँठ करली। इस स्थिति में इमाम हसन अलैहिस्सलाम के सम्मुख दो मार्ग थे एक तो यह कि शत्रु के साथ युद्ध करते हुए अपनी सेना के साथ शहीद हो जायें। या दूसरे यह कि वह अपने सच्चे मित्रों व सेना को क़त्ल होने से बचा लें व शत्रु से संधि कर लें । इस अवस्था में इमाम ने अपनी स्थित का सही अंकन किया सरदारों के विश्वासघात व सेन्य शक्ति के अभाव में माविया से संधि करना ही उचित समझा।
1- माविया को इस शर्त पर सत्ता हस्तान्त्रित की जाती है कि वह अल्लाह की किताब (कुऑन ) पैगम्बर व उनके नेक उत्तराधिकारियों की सीरत (शैली) के अनुसार कार्य करेगा।
2- माविया के बाद सत्ता इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ओर हस्तान्त्रित होगी व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के न होने की अवस्था में सत्ता इमाम हुसैन को सौंपी जायेगी। माविया को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने बाद किसी अन्य को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करे।
3- नमाज़े जुमा में इमाम अली पर होने वाला सब (अप शब्द कहना) समाप्त किया जाये। तथा हज़रत अली (अ.) को अच्छाई के साथ याद किया जाये।
4- कूफ़े के धन कोष में मौजूद धन राशी पर माविया का कोई अधिकार न होगा। तथा वह प्रति वर्ष बीस लाख दिरहम इमाम हसन अलैहिस्सलाम को भेजेगा। व शासकीय अता (धन प्रदानता) में बनी हाशिम को बनी उमैया पर वरीयता देगा। जमल व सिफ़्फ़ीन के युद्धो में भाग लेने वाले हज़रत इमाम अली के सैनिको के बच्चों के मध्य दस लाख दिरहमों का विभाजन किया जाये तथा यह धन राशी ईरान के दाराबगर्द नामक प्रदेश की आय से जुटाई जाये।
5- अल्लाह की पृथ्वी पर मानवता को सुरक्षा प्रदान की जाये चाहे वह शाम में रहते हों या यमन मे हिजाज़ में रहते हों या इराक़ में काले हों या गोरे। माविया को चाहिए कि वह किसी भी व्यक्ति को उस के पिछले व्यवहार के कारण सज़ा न दे। इराक़ वासियों से शत्रुता पूर्ण व्यवहार न करे। हज़रत अली के समस्त सहयोगियों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाये। इमाम हसन अलैहिस्सलाम , इमाम हुसैन व पैगम्बर के परिवार के किसी भी सदस्य की खुले आम या छुप कर बुराई न की जाये।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के संधि प्रस्ताव ने माविया के चेहरे पर पड़ी नक़ाब को उलट दिया तथा लोगों को उसके असली चेहरे से परिचित कराया कि माविया का वास्तविक चरित्र क्या है।
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की शहादत सन् 50 हिजरी मे सफ़र मास की 28 तरीख को हुई । माविया के षड़यन्त्र स्वरूप आपकी जोदा नामक पत्नि ने आपके पीने के पानी मे ज़हर मिला दिया था, यही ज़हर आपकी शहादत का कारण बना।
तबक़ाते इब्ने सअद में उल्लेख मिलता है कि इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के अन्तिम समय में कहा कि मुझे मेरे नाना के बराबर में दफ्न करना ।
अबुल फरज इसफ़हानी अपनी किताब मक़ातेलुत तालेबीन में उल्लेख करते हैं कि जब इमाम हसन अलैहिस्सलाम को दफ़्न करने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.) को रोज़े पर ले गये तो आयशा (हज़रत पैगम्बर इस्लाम (स.) की एक पत्नि जो पहले ख़लीफ़ा की पुत्री थी) ने इसका विरोध किया तथा बनी उमैया व बनी मरवान आयशा की सहायता के लिए आ गये व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के दफ़्न में बाधक बने।
अन्ततः इमाम हसन अलैहिस्सलाम के ताबूत (अर्थी) को जन्नातुल बक़ी नामक कब्रिस्तान में लाया गया व आपको आपकी दादी हज़रत फ़ातिमा बिन्ते असद के बराबर में दफ़्न कर दिया गया।