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बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

तक़लीद के अहकाम

  1. इंसान को चाहिए कि उसूले दीन पर अपने यक़ीन व अक़ीदे को मोहकम बनाये, यह यक़ीन दलीलों के ज़रिये या वालदैन व दीनी मुबल्लिग़ो के बयान से जिस तरह भी हासिल हो सही है, चाहे वह इसके लिए दलीलें न दे सकता हो।
  2. फ़ुरू-ए-दीन पर अमल करने के लिए अगर इंसान ख़ुद मुजतहिद है तो अपने इजतेहाद के मुताबिक़ अमल करे और अगर मुजतहिद नही है तो किसी मुजतहिद की तक़लीद करे या अगर एहतियात पर अमल करना जानता हो तो एहतियात पर अमल करे, इस तरह कि उसे यक़ीन हो जाये कि उसने अपनी शरई ज़िम्मेदारियों को पूरा कर दिया है। मसलन अगर किसी काम को कुछ मुजतहिद हज़रात हराम मानते हों और कुछ हराम न मानते हों, तो उस काम को न करे और अगर कुछ मुजतहेदीन किसी काम को वाजिब और कुछ मुस्तहब मानते हों तो उस काम को ज़रूर करे। इसी तरह एहतियात करने की कैफ़ियत में भी एहतियात करे यानी अगर एहतियात कई तरीक़ों से मुमकिन हो, तो उसे चाहिए कि उनमें से उस तरीक़े को अपनायें जो एहतियात के मुताबिक़ हो।
  3. अगर कोई इंसान ख़ुद मुजतहिद न हो और अपने आमाल को बग़ैर तक़लीद के अंजाम देता हो और तक़लीद न करता हो तो उसके आमाल बातिल हैं। उसे चाहिए कि मसला न. 13 के मुताबिक़ अमल करे।
  4. अहकाम में तक़लीद का मतलब यह है कि इंसान अपने आमाल को मुजतहिद के हुक्म के मुताबिक़ अंजाम दे, और ऐसे मुजतहिद की तक़लीद करे जो मर्द, बालिग़, आक़िल, शिया बारह ईमामी, हलाल ज़ादा, ज़िन्दा व आदिल हो। आदिल से मुराद यह है कि वह वाजिबात को अंजाम देने और गुनाहाने कबीरा से बचने की कुव्वत रखता हो। और एहतियाते वाजिब यह है कि मरज-ए-तक़लीद में दुनिया का लालच न पाया जाता हो यह भी ज़रूरी है कि वह दूसरे मुजतहिदों से आलम हो और आलम का मतलब यह है कि वह अल्लाह के हुक्म को समझने में अपने ज़माने के तमाम मुजतहिदों हो से ज़्यादा क़ुदरत रख़ता हो।
  5. अदालत को जानने का एक तरीक़ा उसके ज़ाहिरी किरदार को देखना है। यानी उसके साथ राबता रखा जाये और मुख़तलिफ़ हालतों में उसे देखा जाये कि वह शरई अहकाम की रिआयत करता है या नही, या उसके पड़ौसी व मुहल्ले वाले उसके सही होने की तस्दीक़ करें। 
  6. अगर दो मुजतहिद इल्म में बराबर हों तो एहतियाते वाजिब यह है कि उसकी तक़लीद करे जो तक़वे में ज़्यादा हो।
  7. किसी मुजतहिद के आलम होने को तीन तरीक़ों से पहचाना जा सकता है।

1)       इंसान को ख़ुद यक़ीन व इतमिनान हासिल हो जाये। मसलन इंसान ख़ुद आलिम हो और मुजतहिदे आलम की शनाख़्त कर सकता हो।

2)       दो आदिल आलिम किसी के आलम होने की तस्दीक़ करें इस शर्त के साथ कि दूसरे दो आदिल आलिम उनकी मुख़ालेफ़त न करें।

3)       किसी इंसान का मुजतहिद व आलम होना इतना मशहूर हो कि इस शोहरत की बिना पर इंसान को उसके आलम होने का यक़ीन व इतमिनान हो जाये।

  1. अगर आलम की शनाख़्त करना मुश्किल हो तो ऐसे शख़्स की तक़लीद करनी चाहिए जिसके आलम होने का गुमान हो। बल्कि अगर किसी के आलम होने के बारे में , थोड़ा भी एहतेमाल पाया जाता हो, तो उसी की तक़लीद करना ज़रूरी है , और अगर उसे यक़ीन हो कि दो मुजतहिद इल्म में बराबर हैं या इनमें से एक के आलम होने के बारे में एहतेमाल हो और दूसरे क े बारे में यह एहतेमाल न पाया जाता हो, तो जिसक े आलम होने का एहतेमाल हो उसी की तक़लीद करे। अगर उ सकी नज़र में  कुछ मुजतहिद इल्म में बराबर हों लेकिन वह अन्य मुजतहिदों से अफ़ज़ल हों , तो इनमें से ही किसी एक की तक़लीद करे।

9         मुजतहिद का फ़तवा जानने के तीन तरीक़े हैं।

1)       इंसान उस फ़तवे को ख़ुद मुजतहिद की ज़बान से सुने ।

2)       दो आदिल इंसानों की ज़बान से सुने, अगर एक आदिल की ज़बान से सुन ा है तो उस पर एतेमाद नही किया जा सकता। लेकिन अगर एक आदिल के कहने पर यक़ीन या इतमिनान हासिल हो जाये , तो उस पर एतेमाद किया जा सकता है।

3)       क़ाबिले इतमीनान तौज़ीहुल मसाइल में देखे।

10     त क़लीद फ़क़त वाजिब और हराम कामो में ज़रूरी है, मुस्तहब कामों में तक़लीद वाजिब नही है , उस मुस्तहब को छोड़ कर जिसके वाजिब होने का एहतेमाल पाया जाता हो ।

11     जब तक इंसान को मुजतहिद के फ़तवे के बदलने का यक़ीन न हो उस वक़्त तक वह पुराने फ़तवे पर अमल कर सकता है, बल्कि  अगर फ़तवे के बदले जा ने का गुमान भी हो तो उसके बारे में छान बीन करना ज़रूरी नही है।

12     इंसान, जिस मुजतहिद की तक़लीद कर रहा हो अगर वह मर जाये , तो मरने के बाद भी उसकी तक़लीद पर बाक़ी रहना जायज़ है, इस शर्त के साथ कि मरने वाला मुजतहिद और मौजूदा मुजतहिद, इल्मी एतेबार से दोनों बराबर हों, लेकिन अगर इनमें से एक इल्म में ज़्यादा हो तो उसकी तक़लीद वाजिब है। मुर्दा मुजतहिद की तक़लीद पर बाक़ी रहने की सूरत में जिन मसाइल पर अमल किया है और जिन पर अमल नही किया है इसमें कोई फ़र्क़ नही है ।

13     एक मुजतहिद की तक़लीद छोड़ कर दूसरे मुजतहिद की तक़लीद करना जायज़ है। जिस मुजतहिद की तक़लीद कर रहे हैं, अगर दूसरा मुजतहिद इल्म में उससे ज़्यादा हो तो इस हालत में तक़लीद बदलना वाजिब है।

14     अगर मुजतहिद का फ़तवा बदल जाये , तो नये फ़तवे पर अमल करना चाहिए पुराने फ़तवे पर अमल करना जायज़ नही है। लेकिन अगर पहला फ़तवा एहतियात के मुताबिक़ हो, तो एहतियात के तौर पर उस पर अमल करने में कोई हरज नही है।

15     अगर एक बालिग़ व आक़िल इंसान ने एक मुद्दत तक किसी की तक़लीद किये बग़ैर अपनी इबादत अंजाम दी हो, लेकिन वह यह न जानता हो कि उसने बग़ैर तक़लीद के कितनी मुद्दत तक इबादत की है , तो इस सूरत में अगर उस इंसान ने अपने आमाल को उस मुजतहिद के फ़तवे के मुताबिक़ अंजाम दिया हो जिसकी तक़लीद करना उसकी ज़िम्मेदारी थी, तो उसकी इबादत सही है और अगर उसके मुताबिक़ अंजाम न दिया हो , तो अगर वह मुजतहिद, जिसकी तक़लीद करना उसकी ज़िम्मेदारी थी, ऐसी इबादत की कज़ा वाजिब मानता हो, तो उस इंसान पर वाजिब है कि अपनी इबादत की कज़ा इतनी मिक़दार में अदा करे कि उसको इसके पूरा होने का यक़ीन हो जाये।

16     तक ़ लीद के मसले में  हर बालिग़ व आक़िल इंसान पर वाजिब है कि, आलम मुजतहिद की तक़लीद करे।

17     अगर एक मुजतहिद इबादात के अहकाम में ज़्यादा इल्म रखता हो और दूसरा मामलात के अहकाम में, तो इंसान को चाहिए कि तक़लीद को दो हिस्सों में तक़सीम कर दे , इबादत में पहले मुजतहिद की और मामलात में दूसरे मुजतहिद की तक़लीद करे।

18     इंसान को चाहिए कि जितना वक़्त आलम की छान बीन में लगे, उस मुद्दत में एहतियात पर अमल करे।

19     अगर किसी मसले में आलम मुजतहिद का फ़तवा मौजूद हो तो उसका मुक़ल्लिद किसी दूसरे मुजतहिद के फ़तवे पर अमल नही कर सकता। लेकिन अगर किसी मसले पर इस आलम मुजतहिद ने फ़तवा न दे कर एहतियात को वाजिब क़रार दिया हो , तो इस हालत में मुक़ल्लिद को इख़्तियार है कि चाहे उ स एहतियात पर अमल करे या उस मसले में किसी ऐसे मुजतहिद के फ़तवे पर अमल करे ज िसका इल्मी मक़ाम आलम के बाद हो।

तहारत के अहकाम

पानी के अहकाम

20     पीनी दो तरह का होता है (अ) मुतलक़ पानी (आ) मुज़ाफ़ पानी

मुज़ाफ़ उस पानी को कहते हैं, जिसे किसी दूसरी चीज़ से निचौड़ा गया हो या ख़ालिस पानी में कोई दूसरी चीज़ मिला दी गई हो। इस बुनियाद पर तरबूज़ का पानी, गुलाब का पानी या वह पानी जिस में मिट्टी इतनी ज़्यादा मिल गई हो कि उसे ख़ालिस पानी न कहा जा सकता हो, मुज़ाफ़ पानी है।

मुतलक़ पानी वह पानी है, जिसमें न तो कोई दूसरी चीज़ मिली हो और न ही उसे किसी चीज़ से निचौड़ा गया हो। मुतलक़ पानी की पाँच किस्में हैं। 1- कुर पानी 2- क़लील पानी 3-जारी पानी 4- बारिश का पानी 5-कुएं का पानी।

कुर पानी

21   अगर कोई हौज़ या बरतन जिसकी लम्बाई चौड़ाई व गहराई हर एक साढ़े तीन बालिश्त हो और वह पानी से पूरा भरा हो, तो उसमें मौजूद पानी कुर कहलायेगा।

22     अगर कुर पानी में कोई ऐने निजासत जैसे ख़ून,पेशाब आदि गिर जाये और उसकी वजह से पानी का रंग, बू या मज़ा बदल जाये तो वह पानी नजिस हो जायेगा और अगर पानी का रंग, बू या मज़ा न बदले तो वह पानी पाक रहेगा।

23   अगर कुर पानी का रंग, बू या मज़ा निजासत के अलावा और किसी वजह से बदल जाये तो वह पानी नजिस नही होगा।

24   अगर कुर से ज़्यादा पानी में कोई ऐने निजासत, मसलन ख़ून गिर जाये और वह उस पानी के एक हिस्से के रंग, बू या मज़े को बदल दे और बाक़ी हिस्सा सही रहे तो अगर बचा हुआ हिस्सा कुर के बराबर है तो जितने हिस्से का रंग, बू या मज़ा बदला है सिर्फ़ वही नजिस होगा और बाक़ी हिस्सा पाक रहेगा। लेकिन अगर बचा हुआ हिस्सा कुर से कम है तो वह सब पानी नजिस होगा।

25   अगर फ़व्वारे का पानी कुर से मिला हुआ हो और वह क़तरा क़तरा होने से पहले नजिस पानी से मुत्तसिल हो जाये और एहतियाते वाजिब की बिना पर उस पानी में घुल मिल जाये तो वह नजिस पानी पाक हो जायेगा। लेकिन अगर फ़व्वारे का पानी क़तरा क़तरा होकर नजिस पानी पर पड़े, तो वह उसे पाक नही करेगा।

26   अगर किसी नजिस चीज़ को ऐसे नल के नीचे धोया जाये जो कुर से मुत्तसिल (मिला हुआ) हो, तो जो पानी पाक करते वक़्त इस चीज़ से टपके वह पाक है, लेकिन अगर इस चीज़ से टपकने वाले पानी में निजासत का रंग, बू या ज़ायक़ा मौजूद हो तो फिर उस चीज़ से टपकने वाला पानी नजिस है।

27   अगर कुर पानी का एक हिस्सा बर्फ़ बन जाये और बाक़ी हिस्सा कुर से कम रह जाये और उसमें कोई निजासत गिर जाये तो वह तमाम पानी नजिस हो जायेगा और जैसे जैसे बर्फ़ पिघलती जायेगी वह भी नजिस होती जायेगी।

28   अगर पानी एक कुर या उससे ज़्यादा हो और बाद में उसके बारे में शक किया जाये कि यह कुर से कम हुआ है या नही, तो वह कुर के हुक्म में ही रहेगा, यानी निजासत को पाक करेगा और अगर कोई निजासत उसमें गिर जाये तो नजिस नही होगा। इसी तरह अगर पानी कुर से कम हो और बाद में उसके बारे में शक किया जाये कि यह कुर हुआ है, या नही तो वह कुर के हुक्म में नही है।

29   पानी का कुर होना दो तरीक़ों से साबित हो सकता है।

1)      इंसान को ख़ुद उसके कुर होने का यक़ीन या इतमिनान हो जाये।

2)      दो आदिल इंसान गवाही दें कि यह पानी कुर है।

क़लील पानी

30   बारिश के पानी, जारी पानी, कुएँ के पानी व कुर पानी के अलावा जो पानी है वह क़लील पानी कहलाता है।

31   अगर क़लील पानी में कोई निजासत गिर जाये या क़लील पानी किसी निजासत पर डाला जाये तो वह नजिस हो जायेगा। लेकिन अगर क़लील पानी को किसी नजिस चीज़ पर, ऊपर से नीचे की तरफ़ डाला जाये तो जितना पानी उस नजिस चीज़ पर पड़ेगा सिर्फ़ वही नजिस होगा और ऊपर का हिस्सा पाक रहेगा। लेकिन अगर क़लील पानी फ़व्वारे की तरह परेशर के साथ नीचे से ऊपर की तरफ़ जा रहा हो और ऊपर पहुँच कर किसी निजासत से मिल रहा हो तो नीचे का हिस्सा पाक है। लेकिन अगर वह नजिस चीज़ नीचे के हिस्से से मिल जाये तो ऊपर का पानी नजिस होगा।

32    अगर किसी नजिस चीज़ पर क़लील पानी डाला जाये, तो उस चीज़ से टपकने वाला पानी नजिस है। इसी तरह अगर किसी चीज़ से ऐने निजासत को दूर करने के बाद उसे क़लील पानी से पाक किया जाये तो उससे टपकने वाले पानी से भी परहेज़ करना चाहिए। वह पानी जिससे पेशाब व पाख़ाने के मक़ाम को धोया जाता है पाँच शर्तों के साथ पाक है।

1)       निजासत का रंग, बू या ज़ायक़ा उस पानी में न मिला हो।

2)       बाहर से कोई निजासत उस पानी में न मिली हो।

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