पिछला पन्ना विषय सूची अगला पन्ना

(217) काफ़िर का बच्चा तबीयत के ज़रिये दो सूरतों में पाक हो जाता है।

(1) अगर काफ़िर मर्द मुसलमान हो जाये तो उसका बच्चा तहारत में उसके ताबे है। और इसी तरह अगर बच्चे की माँ या दादी या दादा मुसलमान हो जायें तब भी यही हुक्म है। लेकिन इस सूरत में बच्चे की तहारत का हुक्म इस शर्त के साथ है कि बच्चा उस नये मुसलिम के साथ और उसके ज़ेरे किफ़ालत हो, और उस बच्चे का कोई सबसे नज़दीक का काफ़िर रिशतादार, उस बच्चे के साथ न हो।

(2) वह काफ़िर बच्चा जिसे किसी मुसलमान ने क़ैद कर लिया और उस बच्चे के बाप या बुज़ुर्ग (दादा या नाना वग़ैरा) में से कोई एक भी उसके साथ न हो। इन दोनों सूरतों में बच्चे के तबइयत की बिना पर पाक होने की शर्त यह है कि वह मुमय्यज़ होने की सूरत में अपने आपको काफ़िर ज़ाहिर न करे।

(218) वह तख़ता या सिल जिस पर मय्यित को ग़ुस्ल दिया जाये और वह कपड़ा जिससे मय्यित की शर्मगाह को ढका जाये और ग़स्साल (ग़ुस्ल देने वाला) के हाथ ग़ुस्ल मुकम्मल होने के बाद पाक हो जाते हैं।

(219) अगर कोई इंसान किसी चीज़ को पोनी से पाक करे तो उस चीज़ के पाक होने पर उस इंसान का वह हाथ भी पाक हो जाता है जिससे उस चीज़ को पाक किया है।

(220) अगर लिबास या उस जैसी किसी दूसरी चीज़ को क़लील पानी से धोया जाये और उसका पानी निकालने के लिए उसे इतना निचोड़ा दिया जाये जितना आम तौर पर निचोड़ा जाता है, तो जो पानी उसमें बाक़ी रह जाये, वह पाक है।

(221) अगर नजिस बर्तन को क़लील पानी से पाक किया जाये, तो जो पानी बर्तन को पाक करने के लिए उस पर डाला जाता है, उसके बह जाने के बाद जो मामूली सा पानी उसमें बाक़ी रह जाता है वह पाक है।

9- ऐने निजासत का दूर हो जाना

(222) अगर किसी हैवान का बदन ऐने निजसात मसलन ख़ून या नजिस शुदा चीज़ मसलन नजिस पानी से भीग जाये तो उस निजासत के दूर हो जाने के बाद हैवान का बदन पाक हो जाता है। यही सूरत इंसानी बदन के अन्दरूनी हिस्सों की भी है मिसाल के तौर पर अगर मुँह ,नाक और कान के अन्दरूनी हिस्से में बाहर से कोई निजासत लग जाये तो वह नजिस हो जायेंगे, लेकिन जैसे ही वह निजासत दूर हो जायेगी, वह खुद ब ख़ुद पाक हो जायेंगे। लेकिन दाख़ली निजासत की वजह से अन्दरूनी हिस्से नजिस नहीं होते जैसे अगर मसूड़ों से खून निकले तो वह मुँह के अन्दरूनी हिस्से को नजिस नही करता। इसी तरह अगर कोई बाहरी चीज़ बदन के दाखली हिस्से में किसी नजिस चीज़ से मिल जाये तो वह नजिस नही होती, इस बिना पर अगर मसनूई दाँत पर क़ुदरती दाँतों के मसूड़ों से निकला हुआ ख़ून लग जाये तो उन दाँतों को पाक करना लाज़िम नहीं है। लेकिन अगर उन मसनूई दाँतों को नजिस ग़िज़ा लग जाये तो उनका पाक करना लाज़िम है।

(223) अगर दाँतों की दरारों में ग़िज़ा लगी रह जाये और फ़िर मुँह के अन्दर खून निकल आये तो वह ग़िज़ा ख़ून से मिलने से नजिस नहीं होगी।

(224) होँटों और आँख की पलकों के वह हिस्से जो बंद करते वक़्त एक दूसरे से मिल जाते हैं वह अन्दरूनी हिस्से के हुक्म में आते हैं। अगर उस अन्दरूनी हिस्से में बाहर से कोई निजासत लग जाये तो उस अन्दरूनी हिस्से को पाक करना ज़रूरी नहीं है। लेकिन बदन के वह हिस्से जिनके बारे में इंसान को यह शक हो कि यह अन्दरूनी हिस्सा है या बाहरी, तो अगर उनमें बाहर से कोई निजासत लग जाये तो उन्हें पाक करना चाहिए।

(225) अगर कपड़े, ख़ुश्क क़ालीन, दरी या ऐसी ही किसी चीज़ को नजिस मिट्टी लग जाये और कपड़े वग़ैरा को यूँ झाड़ा दिया जाये कि उससे नजिस मिट्टी अलग हो जाये, तो अगर बाद में कोई चीज़ कपड़े वग़ैरा को छू जाये, तो वह चीज़ नजिस नहीं होगी।

10- निजासात खाने वाले हैवान का इस्तबरा

(226) जिस हैवान को इंसानी निजासत खाने की आदत पड़ गई हो, उसका पेशाब पाख़ाना नजिस है और अगर उसे पाक करना मक़सूद हो तो उसका इस्तबरा करना ज़रुरी है। यानी एक अर्से तक उसे निजासत न खाने दें और पाक ग़िज़ा दें हत्ता कि इतनी मुद्दत गुज़र जाये की फिर उसे निजासत खाने वाला न कहा जा सके और एहतियाते मुसहब की बिना पर निजासत खाने वाले ऊँट को चालीस दिन तक, गाय को बीस दिन तक, भेड़ को दस दिन तक, मुर्गी को सात या पाँच दिन तक और पालतू मुर्ग़ी को तीन दिन तक निजासत खाने से रोके रखा जाये। अगरचे यह मुद्दत गुज़रने से पहले ही उन्हें निजासत खाने वाले हैवान न कहा जा सके (तब भी उस मुद्दत तक उन्हें निजासत खाने से रोके रखा जाये।

11- मुसलमान का ग़ायब हो जाना

(227) अगर बालिग़ और पाक व ना पाक की समझ रखने वाले मुसलमान का बदन या दूसरी चीज़े ,मसलन बर्तन और दरी वग़ैरा जो उसके इस्तेमाल में हों, नजिस हो जायें और फिर वह वहाँ से चला जाये तो अगर कोई इंसान यह समझे कि उसने यह चीज़ें पाक की हैं तो वह पाक होगीं लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि उनको पाक न समझे मगर नीचे लिखीं कुछ शर्तों के साथ वह पाक है।

(1) जिस चीज़ ने उस मुसलमान के लिबास को नजिस किया हो वह उसे नजिस समझता हो। लिहाज़ा अगर मिसाल के तौर पर उसका लिबास तर हो और काफ़िर के बदन से छू गया हो और वह उसे नजिस समझता हो तो उसके चले जाने के बाद उसके लिबास को पाक नहीं समझना चाहिए।

(2) उसे इल्म न हो कि उसका बदन या लिबास नजिस चीज़ से लग गया है।

(3) कोई इंसान, उसे उस चीज़ को ऐसे काम में इस्तेमाल करते हुए देखे जिसमें उसका पाक होना ज़रूरी हो, मसलन उसे उस लिबास के साथ नमाज़ पढ़ते हुए देखे।

(4) इस बात का एहतेमाल हो कि वह मुसलमान उस चीज़ के साथ जो काम कर रहा है उसके बारे में उसे इल्म है कि इस काम के लिए उस चीज़ का पाक होना ज़रूरी है। मिसाल के तौर पर अगर वह मुसलमान यह नहीं जानता कि नामाज़ पढ़ने वाले का लिबास पाक होना चाहिए और नजिस लिबास के साथ ही नमाज़ पढ़ा रहा हो तो ज़रूरी है कि इंसान उस लिबास को पाक न समझे।

(5) वह मुसलमान नजिस और पाक चीज़ में फ़र्क़ करता हो। अगर वह मुसलमान नजिस और पाक में लापरवाही करता हो तो ज़रूरी है कि इंसान उस चीज़ को पाक न समझे।

(228) अगर किसी इंसान को यक़ीन या इत्मिनान हो कि जो चीज़ पहले नजिस थी अब पाक हो गयी है या दो आदिल इंसान उसके पाक होने के बारे में गवाही दें और उनकी गवाही उस चीज़ की पाकी का जवाज़ बने तो वह चीज़ पाक है। इसी तरह अगर कोई इंसान जिसके पास कोई नजिस चीज़ हो, वह कहे कि वह चीज़ पाक हो गयी है और वह ग़लत बयान न हो या किसी मुसलमान ने एक नजिस चीज़ को पाक किया हो, चाहे यह मालूम न हो कि उसने उसे ठीक पाक किया है या नहीं, तो वह चीज़ पाक है।

(229) अगर किसी ने एक इंसान का लिबास पाक करने की ज़िम्मेदारी ली हो और वह कहे कि मैंने उसे पाक कर दिया है और उस इंसान को उसके यह कहने से तसल्ली हो जाये तो वह लिबास पाक है।

(230) अगर किसी इंसान की यह हालत हो जाये कि उसे किसी नजिस चीज़ के पाक होने का यक़ीन ही न हो पाता हो तो अगर वह उस चीज़ को इस तरह धो ले जिस तरह दूसरे इंसान किसी नजिस चीज़ को आम तौर पर धोते हैं तो काफ़ी है।

12- मामूल के मुताबिक़ (ज़बीहे के) ख़ून का बह जाना

(231) जैसा कि मसला (98) में बताया गया है कि किसी जानवर को शरई तरीक़े से ज़िबह करने के बाद जब उसके बदन से मामूल के मुताबिक़ (ज़रूरी मिक़दार में) ख़ून निकल जाये, तो जो ख़ून उसके बदन में बाक़ी रह जाता है वह पाक है।

(223) ऊपर मसला नम्बर 231 में बयान किया गया हुक्म एहतियात की बिना पर उस जानवर से मख़सूस है जिसका गोश्त हलाल है। जिस जानवर का गोश्त हराम हो उस पर यह हुक्म जारी नहीं हो सकता। बल्कि एहतियाते मुस्तहब यह है कि यह हुक्म, हलाल गोश्त जानवर के बदन के उन हिस्सों पर भी जारी नहीं हो सकता जो हराम हैं।

बर्तनों के अहकाम

(233) जो बर्तन कुत्ते, सुअर या मुर्दार के चमड़े से बनाये गये हों उनमें किसी चीज़ का खाना पीना जबकि तरी उसकी निजासत का सबब बनी हो, हराम है। उस बर्तन को वुज़ू और ग़ुस्ल और ऐसे किसी भी दूसरे काम में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए जिसे पाक चीज़ से अंजाम देना ज़रूरी हो और एहतियाते मुस्तहब यह है कि कुत्ते, सुअर और मुर्दार के चमड़े को बर्तनों के अलावा दूसरी चीज़ों में न भी हो इस्तेमाल न किया जाये।

(234) सोने और चाँदी के बरतनों में खाना पीना और एहतियाते वाजिब की बिना पर उनको दूसरे कामों में भी इस्तेमाल करना हराम है। लेकिन उनसे कमरा वग़ैरा सजाने या उन्हें अपने पास रखने में कोई हरज नहीं है, जबकि बेहतर यह है कि इससे भी परहेज़ किया जाये। सजावट या अपने पास रखने के लिए सोने और चाँदी के बर्तन बनाने और उन्हे ख़रीदने व बेचने का भी यही हुक्म है।

(235) अगर इस्तेकान (शीशे का छोटा सा गिलास जिसमें क़हवा पीते हैं) का होलडर सोने या चाँदी से बना हुआ हो, तो अगर उसे बर्तन कहा जाये तो वह सोने, चाँदी के बर्तन के हुक्म में है और अगर बर्तन न कहा जाये तो उसके इस्तेमाल में कोई हरज नहीं है।

(236) जिन बर्तनों पर सोने या चाँदी की पालिश हो, उनके के इस्तेमाल में कोई हरज नहीं है।

(237) अगर जस्त को चाँदी या सोने में मख़लूत करके बर्तन बनाए जाये और जस्त इतनी ज़्यादा मिक़दार में हो कि उस बर्तन को सोने या चाँदी का बर्तन न कहा जाये तो उसके इस्तेमाल में कोई हरज नहीं हैं।

(238) अगर ग़िज़ा सोने या चाँदी के बर्तन में रखी हो और कोई इंसान उसे दूसरे बर्तन में निकाल ले, तो अगर दूसरा बर्तन आम तौर पर पहले बर्तन में खाने का ज़रिया शुमार न हो तो ऐसा करने में कोई हरज नहीं है।

(239) हुक़्क़े के चिलम का सुराख़ वाल ढकना, तलवार या छुरी, चाक़ू का म्यान और क़ुरान मजीद रखने का डब्बा अगर सोने या चाँदी से बने हों तो कोई हरज नहीं है। जबकि एहतियाते मुस्तहब यह है कि सोने चाँदी के बने हुए इत्र दान, सुर्मे दानी और अफ़ीम दीनी को इस्तेमाल न किया जाये।

(240) मजबूरी की हालत में सोने चाँदी के बरतों में, इतना खाने पाने में कोई हरज नहीं जिससे भूक मिट जाये लेकिन उससे ज़्यादा खाना पीना जायज़ नहीं है।

(241) जिसके बर्तन के बारे में यह मालूम न हो कि यह सोने, चाँदी से बना हुआ है या किसी और चीज़ से, तो उसको इस्तेमाल करने में कोई हरज नहीं है।

वुज़ू

241 वुज़ू में चेहरे व दोनों हाथो का धोना और सर के अगले हिस्से और पैरों के ऊपरी हिस्से का मसा करना वाजिब है ।

242 चेहरे को लम्बाई में सिर के बाल उगने की जगह से ठोडी के आखिरी हिस्से तक और चौड़ाई में जितना हिस्सा बीच की उंगली और अंगूठे के बीच आजाये, धोना ज़रूरी है। अगर इस मिक़दार में से ज़रा भी हिस्सा बग़ैर धुले रह जाये तो वुज़ू बातिल है। वाजिब मिक़दार के मुकम्मल तौर पर धुलने का यक़ीन करने के लिए थोड़ा अतराफ़ का हिस्सा भी धो लेना चाहिए है।

243 अगर किसी इंसान के हाथ या चेहरा आम लोगों से मुख़तलिफ़ (भिन्न) हो, तो उसे यह देखना चाहिए कि आम लोग वुज़ू में अपने चेहरे व हाथों को कहाँ तक धोते हैं और उसे भी उन्हीँ की तरह धोना चाहिए। लेकिन अगर किसी का चेहरा और हाथ आम अन्दाज़े से छोटे या बड़े हों लेकिन आपस में उनका अंदाज़ा सही हो, तो वह मसला न. 242 पर ही अमल करेगा। इसके इलावा अगर किसी इंसान के माथे पर बाल उगे हों या सिर के सामने के हिस्से पर बाल न हों, तो उसे चाहिए कि अपने माथे को आम लोगों की तरह धोये।

244 अगर किसी इंसान को इस बात का एहतेमाल हो कि भवों, आँखों के कोनो और होंटो पर मैल या कोई दूसरी ऐसी चीज़ है, जो इन तक पानी के पहुँचने में माने (बाधक) है और उसका यह एहतेमाल लोगों की नज़र में सही हो, तो उसे वुज़ू से पहले तहक़ीक़ करनी चाहिए और अगर कोई ऐसी चीज़ मौजूद हो, तो उसे साफ़ कर देना चाहिए।

245 अगर दाढ़ी के बालों के नीचे से चेहरे की खाल दिखाई देती हो, तो खाल तक पानी पहुँचाना ज़रूरी है। लेकिन अगर बालों के नीचे से खाल न दिखाई देती हो, तो बालों को धो लेना ही काफ़ी है, खाल तक पानी पहुँचाना ज़रूरी नही है।

पिछला पन्ना विषय सूची अगला पन्ना