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246 अगर किसी इंसान को शक हो कि उसके चेहरे की खाल बालों के नीचे से दिखाई देती है या नही, तो एहतियाते वाजिब की बिना पर बालों को भी धोये और खाल तक भी पानी पहुँचाये।

247 नाक के अन्दरूनी हिस्से और आँखों व होटों के उन हिस्सो को धोना वाजिब नही है, जो बंद करने पर दिखाई न देते हों। लेकिन जिन हिस्सों का धोना ज़रूरी है, उनका कुछ फ़ालतू हिस्सा भी धो लेना चाहिए, ताकि वाजिब हिस्सों के मुकम्मल धुलने का यक़ीन हो जाये।

248 एहतियाते वाजिब की बिना पर चेहरे और हाथों को ऊपर से नीचे की तरफ़ धोना चाहिए। अगर उन्हें नीचे से ऊपर की तरफ़ धोया जाये तो वुज़ू बातिल है।

249 अगर हथेली को पानी से तर करके चेहरे व हाथों पर फेरा जाये और हथेली में इतनी तरी हो कि उसे फेरने से पूरे चेहरे और हाथों पर थोड़ा पानी जारी हो जाये तो काफ़ी है।

250 चेहरे को धोने के बाद पहले दाहिना हाथ को और बाद में बाँया हाथ को कोहनी से उंगलियों के सिरों तक धोना चाहिए।

251 कोहनी को पूरी तरह धोने का यक़ीन करने के लिए, कोहनी से ऊपर का भी कुछ हिस्सा धो लेना चाहिए।

252 जिस इंसान ने चेहरा धोने से पहले अपने हाथों को कलाईयों तक धोया हो, उसे चाहिए कि चेहरा धोने के बाद हाथों को कोहनियों से उंगलियों के सिरों तक धोये। अगर वह हाथों को सिर्फ़ कलाईयों तक धोएगा तो उसका वुज़ू बातिल होगा।

253 वुज़ू में चेहरे व हाथों को एक बार धोना बाजिब दूसरी बार धोना जायज़ और तीसरी बार या इससे ज़्यादा धोना हराम है। अगर वुज़ू की नियत से एक चुल्लू पानी किसी हिस्से पर डाला जाये और उससे वह पूरा हिस्सा धुल जाये, तो एक बार धोना शुमार होगा। चाहे उसने एक बार धोने का क़स्द किया हो या न किया हो।

254 दोनों हाथ धोने के बाद, सिर के सामने वाले हिस्से का मसाह पानी की उसी तरी से करना चाहिए जो हाथ में बाक़ी रह जाती है। यह ज़रूरी नही है कि मसह दाहिने हाथ से या ऊपर से नीचे की तरफ़ ही किया जाये।

255 सिर के चार हिस्सों में से माथे से मिला हुआ हिस्सा, वह मक़ाम है, जिस पर मसाह किया जाता है। इस हिस्से में जहाँ पर भी और जितना जगह पर भी मसाह किया जाये काफ़ी है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि लम्बाई में एक उंगली के बराबर और चौड़ाई में मिली हुई तीन उंगलियों के बराबर जगह पर मसाह किया जाये।

256 यह ज़रूरी नही है कि सिर का मसाह सिर की खाल पर ही किया जाये, बल्कि सिर के सामने के हिस्से के बालों पर भी मसाह करना सही है। लेकिन अगर किसी के सिर के बाल इतने लम्बे हों कि कंघा करेने पर चेहरे पर आ गिरते हों या सिर के किसी दूसरे हिस्से तक जा पहुँच जाते हों, तो ज़रूरी है कि वह बालों की जड़ों पर या माँग निकाल कर सिर की खाल पर मसह करे। अगर चेहरे पर आ गिरने वाले या सिर के दूसरे हिस्से तक पहुँचने वाले बालों को आगे की तरफ़ जमा करके उन पर मसाह करे या सिर के दूसरे हिस्सों के बालों पर जो आगे की तरफ़ आ गये हों, मसाह करे तो ऐसा मसाह बातिल है।

257 सिर के मसेह के बाद, वुज़ू के पानी की उसी तरी से, जो हाथों में बाक़ी हो पैर के पंजे की किसी एक उंगली से लेकर पैर के उभार वाले हिस्से तक मसाह करना चाहिए।

258 पैर का मसह चौड़ाई में जितनी मिक़दार पर भी किया जाये काफ़ी है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि हाथ की पूरी हथेली को पैर के पंजे के पूरे ऊपरी हिस्से पर फेरा जाये।

259 एहतियात वाजिब यह है कि पैर का मसाह करते वक़्त हाथेली को पैर की उंगलियों के सिरों पर रखे और फिर पैर के उभार की तरफ़ खीँचे। पूरे पैर पर हाथ रख कर थोड़ासा खीँचना सही नही है।

260 सिर और पैर का मसाह करते वक़्त उन पर हाथों का फेरना ज़रूरी है। अगर हाथ के बजाये सिर या पैर को हरकत दी जाये तो मसाह बातिल है। लेकिन अगर हाथ फेरते वक़्त सिर या पैर थोड़ा हिल जाये तो कोई हरज नही है।

261 मसेह की जगह का खुश्क होना ज़रूरी है। अगर मसेह की जगह इतनी तर हो कि हथेली की तरी उस पर असर न करे तो मसाह बातिल है। लेकिन अगर तरी इतनी कम हो कि मसह करने के बाद जो तरी उस पर दिखाई दे, उसे मसेह की तरी कहा जाये, तो कोई हरज नही है।

262 अगर मसाह करने के लिए हथेली पर तरी बाक़ी न रहे, तो हाथ को दूसरे पानी से तर नही किया जा सकता। बल्कि इस सूरत में वुज़ू के दूसरे हिस्सों से तरी ले कर उससे मसाह करना चाहिए।

263 अगर हथेली में सिर्फ़ इतनी तरी हो कि उससे फ़क़त सिर का मसह किया जा सके, तो सिर का मसाह उसी तरी से करना चाहिए और पैरों के मसेह के लिए वुज़ू के दूसरे हिस्सों से तरी ले लेनी चाहिए।  

264 मोज़े और जूते पर मसाह बातिल है लेकिन अगर सख़्त सर्दी या चोर व दरिन्दों के खौफ़ से जूते या मोज़े न उतारे जा सकते हों, तो उन पर मसह करने में कोई हरज नही है। अगर जूते का ऊपरी हिस्सा नजिस हो, तो उस पर कोई पाक चीज़ रख कर उस पर मसह करना चाहिए।

265 अगर पैर का ऊपरी हिस्सा नजिस हो और मसह करने के लिए उसे पाक भी न किया जा सकता हो, तो इस सूरत में तयम्मुम करना चाहिए।

इरतेमासी वुज़ू

266 इरतेमासी वुज़ू यह है कि इंसान अपने चेहरे व हाथों को वुज़ू की नियत से, ऊपर से नीचे की तरफ़ धोने की रिआयत के साथ, पानी में डुबो दे। या उनको पानी में डुबा कर वुज़ू की नियत से बाहर निकाले। अगर चेहरे और हाथो को पानी में डुबाते वक़्त वुज़ू की नियत करे और उनको बाहर निकलने के बाद उनसे पानी के टपकने के बंद होने तक वुज़ू की नियत से रहे तो वुज़ू सही है।

267 इरतेमासी वुज़ू करते वक़्त भी चेहरे व हाथों को ऊपर से नीचे की तरफ़ धोना चाहिए। लिहाज़ा जब कोई इंसान वुज़ू की नियत से चेहरे और हाथों को पानी में डुबाये, तो ज़रूरी है कि चेहरे को पेशानी की तरफ़ से और हाथों को कोहनियों की तरफ़ से डुबाये। अगर चेहरे व हाथों को बाहर निकालते वक़्त वुज़ू की नियत करे, तो चेहरे को पेशानी की तरफ़ से और हाथों को कोहनियों की तरफ़ से पानी से बाहर निकाले।

268 अगर कोई इंसान वुज़ू में कुछ हिस्सों को इरतेमासी तरीक़े से और कुछ को ग़ैरे इरतेमासी तरीक़े से धोये तो इसमें कोई हरज नही है।

वह दुआएं जिनका वुज़ू के वक़्त पढ़ना मुस्तहब है।

269 वुज़ू करने वाले इंसान की नज़र जब पानी पर पड़े तो यह दुआ पढ़े- बिस्मिल्लाहि व बिल्लाहि व अलहम्दु लिल्लाहि अल्लज़ी जअला अल- माआ तहूरन व लम यजअलहु नजसन।

जब कलाईयों तक अपने हाथों को धोये तो यह दुआ पढ़े- अल्लाहुम्मा इजअलनी मिन अत- तव्वाबीना व इजअलनी मिन अल-मुतातह्हेरीना।

कुल्ली करते वक़्त यह दुआ पढ़े- अल्लाहुम्मा लक़्क़िनी हुज्जती यौमा अलक़ाका व अतलिक़ लिसानी बिज़िकरिका।

नाक में पानी डालते वक़्त यह दुआ पढ़े- अल्लाहुम्मा ला तुहर्रिम अलैया रिहल जन्नति व इजअलनी मिन मन यशुम्मु रीहहा व रव-हहा व ती-बहा।

चेहरा धोते वक़्त यह दुआ पढ़े- अल्लाहुम्मा बय्यिज़ वजही यौमा तस्वद्दुल वुजूहु व ला तुसव्विदु वजही यौमा तबयज़्ज़ुल वुजूहु।

दाहिना हाथ धोते वक़्त यह दुआ पढ़ें- अल्लाहुम्मा आतिनि किताबि बि-यमीनी व अल-ख़ुलदा फ़ी अल- जिनानि बि-यसारी व हासिबनी हिसाबन यसीरन।

बायाँ हाथ धोते वक़्त यह दुआ पढ़ें- अल्लाहुम्मा ला तुतिनि किताबि बिशिमाली व ला मिन वरा-ए- ज़हरी व ला तजअलहा मग़लूलतन इला उनुक़ी व आउज़ुबिका मिन मुक़त्तआति अन्निरानि।

सिर का मसह करते वक़्त यह दुआ पढ़े- अल्लाहुम्मा ग़श्शिनी बिरहमतिका व बराकातिका व अफ़विक।

पैरों का मसाह करते वक़्त यह दुआ पढ़ें- अल्लाहुम्मा सब्बितनी अला सिराति यौमा तज़िल्लु फ़ीहि अल-अक़दामु व इजअल सअयी फ़ी मा युरज़ीका अन्नी या ज़ल जलालि व अल इकरामि।

वुज़ू सही होने की शर्तें

वुज़ू के सही होने की कुछ शर्तें हैं।

पहली शर्त- वुज़ू का पानी पाक हो।

दूसरी शर्त- पानी मुतलक़ (ख़ालिस) हो।

270 नजिस या मुज़ाफ़ पानी से वुज़ू करना बातिल है। चाहे वुज़ू करने वाला इंसान उसके नजिस या मुज़ाफ़ होने के बारे में न जानता हो या भूल गया हो कि यह पानी नजिस या मुज़ाफ़ है। लिहाज़ा अगर वह ऐसे पानी से वुज़ू करके नमाज़ पढ़ चुका हो, तो सही वुज़ू करके दोबारा नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है।

271अगर इंसान के पास वुज़ू के लिए, मिट्टी मिले हुए मुज़ाफ़ पानी के अलावा दूसरा पानी न हो और नमाज़ का वक़्त कम रह गया हो, तो उसे तयम्मुम करना चाहिए। लेकिन अगर वक़्त काफ़ी हो, तो उसके लिए ज़रूरी है कि पानी के साफ़ होने का इंतेज़ार करे और उससे वुज़ू करके नमाज़ पढ़े।

तीसरी शर्त –वुज़ू का पानी मुबाह हो।

272 ग़स्बी या ऐसे पानी से वुज़ू करना, जिसके बारे में वह न जानता हो कि उसका मालिक इसके इस्तेमाल पर राज़ी है या नही, हराम व बातिल है। लेकिन अगर पहले राज़ी हो और इंसान न जानता हो कि वह अब भी राज़ी है या नही, तो वुज़ू सही है। अगर चेहरे या हाथों से वुज़ू का पानी ग़स्बी ज़मीन पर टपक रहा हो, तो उसका वुज़ू सही है।  

273 किसी मदरसे की ऐसी हौज़ से वुज़ू करने में कोई हरज नही है, जिसके बारे में इंसान न जानता हो कि यह तमाम लोगों के लिए वक़्फ़ है या सिर्फ़ मदरसे के तलबा के लिए। जबकि लोग आम तौर पर उस हौज़ से वुज़ू करते हों और उनका वुज़ू करना उमूमी इजाज़त को ज़ाहिर करता।

274 अगर कोई इंसान एक मस्जिद में नमाज़ न पढ़ना चाहता हो और यह भी न जानता हो कि इस मस्जिद का हौज़ तमाम लोगों के लिए वक़्फ़ है या सिर्फ़ उन लोगों के लिए जो इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ते हैं, तो उसके लिए इस हौज़ के पानी से वुज़ू करना सही नही है। लेकिन अगर आम तौर पर वह लोग भी इस हौज़ के पानी से वुज़ू करते हों, जो इस मस्जिद में नमाज़ न पढ़ते हों और उनका वुज़ू करना उमूमी इजाज़त को ज़ाहिर करता हो, तो वह इंसान भी उस हौज़ से वुज़ू कर सकता है।

275 मुसाफ़िर खानों वग़ैरह की हौज़ से उन लोगों का वुज़ू करना, जो उनमें न रहते हों, उस सूरत में सही है, जबकि आम तौर पर ऐसे लोग भी उस हौज़ से वुज़ू करते हों, जो वहाँ न रहते हों और उनके वुज़ू करने से उमूमी इजाज़त ज़ाहिर होती हो।

276 बड़ी नहरों के पानी से वुज़ू करने में कोई हरज नही है। चाहे इंसान न जानता हो कि उनका मालिक राज़ी है या नही। लेकिन अगर उन नहरों का मालिक उनमें वुज़ू करने से मना करे, तो एहतियाते वाजिब यह है कि उनके पानी से वुज़ू न किया जाये।

277 अगर कोई इंसान पानी के ग़स्बी होने के बारे में न जानता हो या भूल गया हो और उससे वुज़ू करले, तो उसका वुज़ू सही है।

चौथी शर्त –वुज़ू का बरतन मुबाह हो।

पाँचवीँ शर्त –वुज़ू का बरतन सोने व चाँदी से न बना हो।

278 अगर वुज़ू का पानी ग़स्बी बरतन में हो और उस इंसान के पास उसके अलावा और कोई पानी न हो, तो उसे तयम्मुम करना चाहिए।  अगर वह उस बर्तन के पानी से वुज़ू करेगा तो वुज़ू बातिल होगा। अगर दूसरा मुबाह पानी मौजूद हो और वह उस ग़स्बी बर्तन में इरतेमासी वुज़ू करे या उस बर्तन से अपने चेहरे या हाथों पर पानी डाले, तो उसका वुज़ू बातिल है। लेकिन अगर वह उस बर्तन से चुल्लू भर - भर कर पानी निकाले और उससे वुज़ू करे तो वुज़ू सही है। लेकिन ग़स्बी बर्तन इस्तेमाल करने की वजह से वह एक हराम काम का मुरतकिब होगा। एहतियाते वाजिब की बिना पर सोने चाँदी के बर्तनों से वुज़ू करने का हुक्म भी ग़स्बी बर्तन के हुक्म में ही है।  

279 अगर किसी हौज़ में एक ईंट या पत्थर ग़स्बी लगा हो, तो उससे वुज़ू करना सही है।

280 अगर आइम्मा -ए- ताहेरीन या उनकी औलाद के मक़बरो के सहन में जो पहले क़ब्रिस्तान था, कोई नहर या हौज़ खोद दी जाये और यह इल्म न हो कि सहन की ज़मीन कब्रिस्तान के लिए वक़्फ़ हो चुकी है या नही, तो इस हौज़ या नहर के पानी से वुज़ू करने में कोई हरज नही है।

छटी शर्त- आज़ा-ए- वुज़ू धोने और मसह करने के वक़्त पाक हों।

281 अगर वुज़ू पूरा होने से पहले, कोई ऐसा हिस्सा नजिस हो जाये, जिसे धोया या मसह किया जा चुका हो तो वुज़ू सही है।

282 अगर वुज़ू के हिस्सों के अलावा बदन के दूसरे हिस्से नजिस हों, तो वुज़ू सही है। लेकिन अगर पेशाब व पख़ाने की जगह नजिस हो, तो बेहतर है कि उन्हें पाक कर के वुज़ू किया जाये।

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