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342 ग़ुस्ले जबीरा वुज़ू -ए- जबीरा की तरह है। लेकिन एहतियाते वाजिब यह है कि इस सूरत में ग़ुस्ले तरतीबी करे ग़ुस्ले इरतेमासी न करे।
343 जिस इंसान के लिए तयम्मुम करना ज़रूरी हो, अगर उसके तयम्मुम के किसी हिस्से पर ज़ख़्म या फोड़ा हो या हड्डी टूटी हुई हो, तो उसे वुज़ू-ए-जबीरा की तरह तयम्मुम -ए- जबीरा करना चाहिए।
344 जिस इंसान के लिए वुज़ू -ए- जबीरा या गुस्ल -ए- जबीरा कर के नमाज़ पढ़ना ज़रूरी हो, अगर वह जानता हो कि नमाज़ के आख़िरी वक़्त तक उसकी मजबूरी ख़त्म नही होगी, तो वह अव्वले वक़्त नमाज़ पढ़ सकता है। लेकिन अगर उसे उम्मीद हो कि आख़िरे वक़्त तक उसकी मजबूरी ख़त्म हो जायेगी, तो एहतियाते वाजिब यह है कि वह इन्तेज़ार करे और अगर उसकी मजबूरी ख़त्म न हो, तो आख़िरे वक़्त में वुज़ू -ए- जबीरा या ग़ुस्ले जबीरा कर के नमाज़ पढ़े।
345 अगर कोई इंसान यह न जानता हो कि उसे तयम्मुम करना चाहिए या वुज़ू -ए- जबीरा, तो एहतियाते वाजिब यह है कि वह दोनों को अंजाम दे।
346 जिस इंसान ने, अपनी नमाज़ें वुज़ू -ए- जबीरा कर के पढ़ी हों, वह सही हैं और उज़्र (मजबूरी) के ख़त्म होने के बाद ज़रूरी नही है कि वह दोबारा वुज़ू करे। लेकिन अगर कोई इंसान यह न जानता हो कि उसे वुज़ू करना चाहिए या तयम्मुम और वह दोनों को अंजाम दे, तो उसे बाद वाली नमाज़ों के लिए वुज़ू करना चाहिए।
2. ग़ुस्ले हैज़ (यह वह ग़ुस्ल है, जो स्त्री मासिक धर्म समाप्त होने के बाद करती है।)
3. ग़ुस्ले निफ़ास (यह वह ग़ुस्ल है, जो स्त्री बच्चा पैदा होने के बाद करती है।)
4. ग़ुस्ले इस्तेहाज़ा (यह वह ग़ुस्ल है, जो स्त्री हैज़ व निफ़ास के अतिरिक्त अन्यखून आने पर करती है।)
5. ग़ुस्ले मसे मय्यित (यह वह ग़ुस्ल है, जो किसी मुर्दा इंसान को छूने के बाद किया जाता है।)
6. ग़ुस्ले मय्यित (यह वह ग़ुस्ल है, जो मुर्दा इंसान को दिया जाता है।)
7. मन्नत व क़सम आदि के कारण वाजिब होने वाला ग़ुस्ल।
एक- जनाबत (संभोग) से
दूसरे- मनी(मनी) निकल जाने से, चाहे वह सोते हुए निकले या जागते हुए, कम निकले या ज़्यादा, मस्ती के साथ निकले या बिना मस्ती के, चाहे इंसान उसे अपने इख़्तियार से निकाले या वह खुद निकल जाये।
348 अगर किसी इंसान के पेशाब के मक़ाम से कोई तरी निकले और मालूम न हो कि यह तरी मनी (मनी) है या पेशाब या कोई और चीज़, तो अगर वह तरी मस्ती के साथ व उछल कर निकली हो और उसके निकलने के बाद बदन सुस्त हो गया हो, तो वह तरी मनी के हुक्म में है। लेकिन अगर इन तीनों निशानियाँ या इनमें से कुछ मौजूद न हो, तो वह तरी मनी के हुक्म में नही है। लेकिन अगर इंसान बीमार हो, तो ज़रूरी नही है कि वह तरी उछल कर निकले, बल्कि अगर मस्ती के साथ बाहर निकले, तो वह मनी के हुक्म में होगी और उसके निकलने के बाद बदन का सुस्त होना भी ज़रूरी नही है।
349 इंसान के लिए मुस्तहब है कि मनी निकलने के बाद पेशाब करे और अगर पेशाब न करे व ग़ुस्ल करने के बाद उसके पेशाब के रास्ते से कोई ऐसी तरी निकले जिसके बारे में न जानता हो कि यह मनी है या कोई और चीज़, तो वह तरी मनी के हुक्म में होगी।
350 अगर कोई इंसान जिमाअ(संभोग) करे और उसका लिंग ख़तने की जगह तक (यानी सुपारी तक) या उससे ज़्यादा अन्दर चला जाये, तो जिसके साथ जिमाअ किया जाये चाहे वह औरत हो या मर्द, जिमाअ पीछे के रास्ते से किया जाये या आगे के रास्ते से, वह बालिग़ हों या नाबालिग़, मनी निकले या न निकले, वह दोनो जुनुब हो जायेंगे।
351 अगर किसी को शक हो कि उसका लिंग सुपारी तक अन्दर गया है या नही, तो उस पर ग़ुस्ल वाजिब नही है।
352 अगर कोई इंसान किसी जानवर के साथ संभोग करे (खुदा न करे कि ऐसा हो) और उसकी मनी निकल जाये, तो ग़ुस्ल कर लेना ही काफ़ी है। और अगर मनी न निकले और वह संभोग से पहले वुज़ू से हो, तब भी ग़ुस्ल करना ही काफ़ी है। लेकिन अगर वुज़ू से न हो, तो एहतियाते वाजिब यह है कि ग़ुस्ल और वुज़ू दोनों अंजाम दे।
353 अगर मनी अपनी जगह से हिल जाये, मगर बाहर न निकले या इंसान को शक हो कि मनी निकली है या नही, तो उस पर ग़ुस्ल वाजिब नही है।
354 अगर कोई इंसान ग़ुस्ल न कर सकता हो और उसके लिए तयम्मुम करना मुमकिन हो, तो वह नमाज़ का वक़्त दाख़िल होने के बाद अपनी बीवी से बिला वजह जिमाअ नही कर सकता। लेकिनअगर लज़्ज़त हासिल करने या अपने नफ़्स से किसी ख़तरे को दूर करने के लिए ऐसा करे तो कोई हरज नही है।
355 अगर कोई इंसान अपने कपड़ों पर मनी लगी देखे और यह भी जानता हो कि यह उसकी अपनी मनी है और उसने इसके निकलने के बाद ग़ुस्ल भी न किया हो, तो उसे चाहिए कि ग़ुस्ल करे और जिन नमाज़ों के बारे में उसे यक़ीन हो कि उसने इन्हें इसी हालत में पढ़ा है, उनकी कज़ा करे। लेकिन जिन नमाज़ों के बारे में एहतेमाल हो कि मनी निकलने के बाद पढ़ी थीं, उनकी कज़ा लाज़िम नही है।।
1. क़ुरआने करीम के अलफ़ाज और अल्लाह के नाम को छूना। एहतियाते वाजिब की बिना पर पैग़म्बरों और आइम्मा-ए- मासूमीन अलैहिमु अस्सालाम के नाम भी इसी हुक्म में आते हैं।
2. मस्जिदुल हराम व मस्जिदुन नबी में जाना, चाहे एक दरवाज़े से दाख़िल हो कर दूसरे दरवाज़े से बाहर निकलना ही क्योँ न हो।
3. आम मस्जिदों में रुकना, लेकिन एक दरवाज़े से दाख़िल हो कर दूसरे दरवाज़े से निकलने और मस्जिद के अन्दर से कोई चीज़ उठाने के लिए, उसमें दाख़िल होने में कोई हरज नही है। एहतियाते वाजिब यह है कि आइम्मा-ए- मासूमीन अलैहिमु अस्सलाम के हरम में भी न रुका जाये और बेहतर यह है कि इमामों के हरम में मस्जिदुल हराम और मस्जिदे नबी के हुक्म की रिआयत की जाये।
4. मस्जिद में कोई चीज़ रखने के लिए दाख़िल होना।
5. कुरआने करीम के वाजिब सजदे वाले सूरों को पढ़ना और वह चार सूरेह हैं- (क) सूर-ए-अलिफ़ लाम तनज़ील (ख) सूर-ए- हाम मीम सजदह (ग) सूर-ए-वन नज्म (घ) सूर-ए-अलक़, इन सूरों में से एक हर्फ़ पढ़ना भी हराम है।
1. खाना
2. पीना, लेकिन अगर वुज़ू कर लिया जाये, तो खाना पीना मकरूह नही है।
3. कुरआने करीम के उन सूरों की सात से ज़्यादा आयतें पढ़ना, जिनमें वाजिब सजदा नही है।
4. कुरआने करीम की जिल्द, हाशिये या अलफ़ाज़ के बीच की ख़ाली जगह को छूना।
5. कुरआने करीम को अपने साथ रखना।
6. सोना- लेकिन अगर वुज़ू कर लिया जाये या पानी न होने की सूरत में ग़ुस्ल के बदले तयम्मुमकर लिया जाये, तो सोना मकरूह नही है।
7. मेंहदी या इससे मिलती जुलती किसी चीज़ से ख़िज़ाब करना।
8. बदन पर तेल की मालिश करना।
9. एहतेलाम(स्वप्न दोष) हो जाने के बाद जिमाअ (संभोग) करना।
359 ज़रूरी नही है कि इंसान ग़ुस्ल के वक़्त नियत करे कि वाजिब यामुस्तहब ग़ुस्ल कर रहा हूँ, बल्कि अगर अल्लाह की कुरबत के इरादे से यानी अल्लाह के हुक्म पर अमल पर करने के इरादे से ग़ुस्ल करे तो काफ़ी है।
360 ग़ुस्ले चाहे वाजिब हो या मुस्तहब दो तरीक़ों से किया जा सकता है हैं।
(अ) तरतीबी
(आ) इरतेमासी।
362 आधी नाफ़ और आधी शर्म गाह को दाहिना हिस्सा धोते वक़्त और आधी बाक़ी को बाँया हिस्सा धोते वक़्त धोना चाहिए। बल्कि बेहतर यह है कि दाहिने और बाँये दोनों हिस्सों को धोते वक़्त नाफ़ व शर्म गाह को पूरा पूरा धोया जाये।
363 इंसान को यह यक़ीन करने के लिए कि उसने सर व गर्द और बदन के दाहिने व बायेँ हिस्से को पूरा धो लिया है, उसे चाहिए कि हर हिस्से को धोते वक़्त उसके बाद वाले हिस्से को भी थोड़ा धो ले। बल्कि एहतियाते मुस्तहब यह है कि दाहिना हिस्सा धोते वक़्त गर्दन को दाहिनी तरफ़ से और बाँया हिस्सा धोते वक़्त गर्दन को बायीं तरफ़ से धोया जाये।
364 अगर किसी इंसान को ग़ुस्ल करने के बाद पता चले कि बदन कुछ हिस्सा बग़ैर धुले रह गया है, लेकिन उसे यह मालूम न हो कि कौनसा हिस्सा रह गया है, तो उसे दोबारा ग़ुस्ल करना चाहिए।
365 अगर किसी इंसान को ग़ुस्ल के बाद मालूम हो कि बदन की कुछ जगह बग़ैर धुले रह गयी है, तो अगर वह जगह बायीं तरफ़ की है तो सिर्फ़ उस जगह का धोना काफ़ी है। लेकिन अगर वह जगह दाहिनी तरफ़ रह गयी है, तो उस जगह को धोने के बाद, बायीं तरफ़ को दोबारा धोना चाहिए।
366 अगर किसी इंसान को ग़ुस्ल पूरा होने से पहले शक हो कि बायीं तरफ़ का कुछ हिस्सा बग़ैर धुले रह गया है, तो उस हिस्से को धो लेना ही काफ़ी है। लेकिन अगर उसे बायाँ हिस्सा धोते वक़्त दाहिने हिस्से या उसकी किसी जगह के बारे में शक हो या दाहिना हिस्सा धोते वक़्त सर या गर्दन या उनके किसी हिस्से के बारे में शक हो, तो उस शक की परवा नही करनी चाहिए।
368 ग़ुस्ले इरतेमासी में अगर पूरा बदन पानी में हो और इंसान ग़ुस्ल की नियत करके बदन को पानी में हिलाये तो उसका ग़ुस्ल सही है। लेकिन एहतियाते मुस्तहब यह है कि बदन का ज़्यादा हिस्सा पानी से बाहर हो और नियत करके पानी में दाख़िल हुआ जाये।
369 अगर ग़ुस्ले इरतेमासी करने के बाद पता चले कि बदन के किसी हिस्से तक पानी नही पहुँच पाया है, तो चाहे उस हिस्से के बारे में इल्म हो या न हो, दोबारा ग़ुस्ल करना चाहिए।
370 अगर किसी इंसान के पास ग़ुस्ले तरतीबी के लिए वक़्त न हो और ग़ुस्ले इरतेमासी कर सकता हो, तो उसे ग़ुस्ले इरतेमासी ही करना चाहिए।
371 रोज़े और हज व उमरे का एहराम बाँधे होने की हालत में, इंसान ग़ुस्ले इरतेमासी नही कर सकता, लेकिन अगर वह भूले से ग़ुस्ले इरतेमासी कर ले, तो उसका ग़ुस्ल सही है।
373 हराम तरीक़े से जुनुब होने वाले का पसीना नजिस नही है, अगर वह गर्म पानी से भी ग़ुस्ल करे तो सही है।
374 ग़ुस्ल में अगर जिस्म का बाल बराबर हिस्सा भी बग़ैर धुला रह जाये तो ग़ुस्ल बातिल है। लेकिन दिखाई न देने वाले हिस्सों को धोना ज़रूरी नही है जैसे कान व नाक के अन्दुरूनी हिस्से वग़ैरा।
375 किसी इंसान को शक हो कि बदन का यह हिस्सा ज़ाहिरी (बाहरी) है या बातिनी (अन्दुरूनी) तो एहतियाते वाजिब यह है कि उसे धोया जाये। लेकिन अगर पहले बातिनी हिस्सा हो और अब शक हो रहा हो कि यह ज़ाहिरी में बदला है या नही, तो उसे धोना लाज़िम नही है।
376 अगर कान का बाली पहनने वाला सुराख़ या इसी जैसा कोई और सुराख इतना बड़ा हो कि उसका अन्दरूनी हिस्सा दिखाई देता हो और वह बदन का ज़ाहिरी हिस्सा समझा जाता हो, तो उसे धोना चाहिए। लेकिन अगर उसका अन्दरूनी हिस्सा दिखाई न देता हो और वह बाहरी हिस्सा न समझा जाता हो, तो उसे धोना ज़रूरी नही है।
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