पिछला पन्ना विषय सूची अगला पन्ना

315 अगर किसी इंसान को पेशाब या पाख़ाना इस तरह बार बार आता हो कि नमाज़ का कुछ हिस्सा भी बा वुज़ू पढ़ने की मोहलत न मिलती हो, तो वह एक ही वुज़ू से कई नमाज़े पढ़ सकता है। लेकिन अगर वह जान बूझ कर पेशाब या पख़ाना करे या वुज़ू को बातिल करने वाली कोई दूसरी चीज पेश आ जाये तो फिर ऐसा नही कर सकता।

316 अगर कोई इंसान रियाह (पाख़ाने के रास्ते पेट से निकलने वाली गैस) रोकने पर क़ादिर न हो, तो उसे, उन लोगों की तरह अमल करना चाहिए, जो पेशाब या पाख़ाना रोकने पर क़दिर नही हैं।

317 जिसका पाख़ाना बार बार निकलता रहता हो उसे हर नमाज़ के लिए वुज़ू करना चाहिए और वुज़ू करने के फ़ौरन बाद नमाज़ में मशग़ूल हो जाना चाहिए। लेकिन भूले हुए सजदे, तशाहुद नमाज़े एहतियात जिनको नमाज़ के बाद अंजाम दिया जाता है, अगर उनको फ़ौरन अंजाम दिया जाये, तो उनके लिए नया वुज़ू ज़रूरी नही है।

318 जिस इंसान का पेशाब क़तरा क़तरा टपकता रहता हो, उसे नमाज़ पढ़ने के लिए एक ऐसी थैली का इस्तेमाल करना चाहिए जिसमें रूई रखी हुई हो, ताकि वह पेशाब को दूसरी जगह तक फैलने से रोक सके। एहतियाते वाजिब यह है कि हर नमाज़ से पहले पेशाब की जगह और थैली दोनो को पाक करे। जो पाख़ाना रोकने पर क़ादिर न हो, उन्हें भी नमाज़ की हालत में, पाख़ाने को दूसरी जगह तक पहुँचने से रोकने के लिए इसी तरह का कोई काम करना चाहिए। एहतियाते वाजिब यह है कि अगर मुशकिल न हो, तो हर नमाज़ से पहले पख़ाने के मक़ाम को पाक करे।

319 जिसका पेशाब या पाख़ाना बार बार निकलता रहता हो, उसे नमाज़ की हालत में जहाँ तक मुमकिन हो पेशाब या पाख़ाना रोकने की कोशिश करनी चाहिए। चाहे उसके लिए उसे कुछ ख़र्च ही क्यों न करना पड़े। अगर उसके इस मरज़ का इलाज हो सकता हो, तो एहतियाते वाजिब यह है कि उसे इलाज कराना चाहिए।

320 पेशाब या पाख़ाने को न रोक सकने वाला इंसान, अगर इलाज से सही हो जाये, तो जो नमाज़े उसने मरज़ की हालत में अपने वज़ीफ़े के मुताबिक़ पढ़ी हैं, उनकी कज़ा उस पर वाजिब नही है। लेकिन अगर किसी नमाज़ को पढ़ने के बाद उसका मरज़ ठीक हो जाये और अभी उस नमाज़ का वक़्त बाक़ी हो, तो फ़क़त उस नमाज़ को दोबारा पढ़े।  

वह चीज़े जिन के लिए वुज़ू करना ज़रूरी है।

321 छः चीज़ों के लिए वुज़ू करना वाजिब है।

1. नमाज़े मय्यित के अलावा हर वाजिब नमाज़ के लिए।

2. भूले हुए सजदे और तशाहुद अदा करने के लिए। अगर नमाज़ के  बाद उनको अदा करने से पहले उसका वुज़ू बातिल हो गया हो।

3. ख़ान-ए-काबा के वाजिब तवाफ़ के लिए।

4. अगर वुज़ू करने की मन्नत मानी हो  या अहद किया हो या क़सम खाई हो।

5. अगर क़ुरआने करीम को मस करने की नज़र की हो।

2. 6. अगर कुरआन नजिस हो गया हो, तो उसको पाक करने या उसे किसी निजासत से निकालने के लिए, जबकि इन कामों के लिए इंसान अपना हाथ या बदन का कोई दूसरा हिस्सा कुरआने करीम के अलफ़ाज़ को लगने पर मजबूर हो। लेकिन अगर देखे कि क़ुरआन को पाक करने या निजासत से निकालने के लिए अगर वुज़ू करेगा, तो उसमें लगने वाले वक़्त की वजह से इस दौरान कुरआन की बेहुरमती होती रहेगी, तो इंसान को चाहिए कि वुज़ू किये बिना ही कुरआन को फ़ौरन निजासत से बाहर निकाले। अगर वह नजिस हो गया है, तो उसे पाक करे और जहाँ तक मुमकिन हो उसके अलफ़ाज़ को छूने से परहेज़ करे। ।

322 बग़ैर वुज़ू के क़ुरआने करीम के अलफ़ाज़ को छूना हराम है। लेकिन अगर कुरआने करीम का किसी दूसरी ज़बान में तर्जमा हुआ हो, तो उस तर्जमें को बग़ैर वुज़ू छूने में कोई हरज नही है।

323 बच्चे और पागल को क़ुरआने करीम को छूने से रोकना वाजिब नही है। लेकिन अगर उनका कुरआन को छूना उसकी बे हुरमती व तौहीन का सबब हो, तो उन्हें रोकना ज़रूरी है।

324 वुज़ू के बग़ैर अल्लाह के नामों को छूना हराम है, चाहे वह किसी भी ज़बान में लिखे हों।

325 अगर कोई इंसान नमाज़ के वक़्त से पहले, बा तहारत रहने के इरादे से वुज़ू या ग़ुस्ल करे, तो वह वुज़ू या ग़ुस्ल सही है। और अगर क़स्दे क़ुरबत से वुज़ू करे तो काफ़ी है।

326 नमाज़े मय्यित पढ़ने,कब्रिस्तान में जाने, मस्जिद में दाखिल होने, आइम्मा-ए- मासूमीन के हरम में जाने, कुरआने करीम को साथ रखने, कुरआन को पढ़ने, कुरआन को लिखने, उसके हाशिये को छूने और सोने से पहले वुज़ू करना मुस्तहब है। और अगर कोई इंसान वुज़ू से हो तब भी दोबारा वुज़ू करना मुस्तहब है। अगर इंसान ऊपर बयान किये गये कामों में से किसी एक के लिए वुज़ू करे, तो उस वुज़ू से, वह उन तमाम कामों को कर सकता है, जिनके लिए वुज़ू करना ज़रूरी है। मसलन उस वुज़ू के साथ नमाज़ पढ़ सकता है।

वह चीज़ें जिन से वुज़ू बातिल हो जाता है।

327 सात चीज़ें ऐसी हैं, जिन से वुज़ू बातिल हो जाता है।

· पेशाब करना

· पाख़ाना करना

· पेट की गैस का पाख़ाने के सुराख से निकलना

· ऐसी नींद जिस में न आँखें देख सकें और न कान सुन सकें। लेकिन अगर आँखे न देख रही हो, मगर कान सुन रहे हो, तो वुज़ू बातिल नही होता।

· ऐसी हालत तारी हो जाना जिसमें अक़्ल काम करना बंद कर दे, जैसे पागलपन, मस्ती या बेहोशी।

· औरतों का इस्तेहाज़ा होना (इसका ज़िक्र बाद में आयेगा।)

· हर वह काम जिसकी वजह से इंसान पर ग़ुस्ल वाजिब हो जाये, जैसे जनाबत (संभोग) और मसे मय्यित में इस हुक्म का साबित होना एहतियात पर मबनी (आधारित)  है।

जबीरा के अहकाम

ज़ख़्म या टूटी हुई हड्डी पर बाँधी जाने वाली पट्टियों और दवाओं को जबीरा कहते हैं।

328 अगर वुज़ू वाले किसी हिस्से की हड्डी टूटी हुई हो या उस पर कोई ज़ख़्म या फोड़ा हो और उसका मुँह खुला हो और उसके लिए पानी नुक़्सानदे (हानिकारक) न हो, तो वुज़ू आम तरीक़े से करना चाहिए।

329 अगर किसी इंसान के चेहरे या हाथ की हड्डी टूटी हुई हो या उन पर कोई ज़ख़्म या फोड़ा हो और उसका मुँह खुला हो और पानी उसके लिए नुक़्सान दे हो, तो वुज़ू में उसके चारों तरफ़ का हिस्सा ऊपर से नीचे की तरफ़ आम तरीक़े से धोना चाहिए। अगर ज़ख़्म वाली जगह पर तर हाथ फेरना नुक़्सान दे न हो, तो एहतियात यह है कि उस पर तर हाथ फेरे और अगर उस पर तर हाथ फेरना नुक़्सानदे हो, तो एहतियाते वाजिब यह है कि एक पाक कपड़ा उस पर डाल कर, गीला हाथ उस कपड़े पर फेरे। अगर ऐसा करना भी नुक़्सानदे हो या ज़ख़्म नजिस हो और उसे पाक भी न किया जा सकता हो, तो उसके चारो तरफ़ के हिस्सों को ऊपर से नीचे की तरफ़ धोये और आख़री सूरत में एहतियाते वाजिब की बिना पर तयम्मुम भी करे।  

330 अगर किसी इंसान के सिर के सामने वाले हिस्से या पैर के मसाह करने वाले हिस्से की हड्डी टूटी हुई हो या उस पर कोई ऐसा ज़ख़्म या फोड़ा हो जिसका मुँह खुला हो और उसका मसह न किया जा सकता हो, तो उस पर पाक कपड़ा रख कर, वुज़ू की उस तरी से जो हाथ मे रह जाती है, मसह करे। अगर उस पर कपड़ा रखना मुमकिन न हो, तो मसह करना जारूरी नही है, लेकिन वुज़ू के बाद तयम्मुम भी करना चाहिए।    

331 अगर टूटी हुई हड्डी, फोड़े या ज़ख़्म का मुँह किसी चीज़ से बंधा हो और उसको बग़ैर तकलीफ़ के खोला जा सकता हो और पानी उसके लिए नुक़्सान दे न हो, तो उसे खोल कर वुज़ू करना ज़रूरी है। चाहे ज़ख़्म धोये जाने वाले हिस्सों पर हो या मसाह किये जाने वाले हिस्सों पर।

332 अगर किसी इंसान के चेहरे की या हाथ की हड्डी टूटी हुई हो या उन पर कोई ऐसा ज़ख़्म वग़ैरा हो, जो किसी चीज़ से बंधा हो और उसका खोलना मुमकिन हो, और सूरत यह हो कि उस पर पानी डालना तो नुक़्सान दे हो मगर तर हाथ फेरना नुक़्सान दे न हो, तो इस सूरत में उस पर तर हाथ फेरना वाजिब है।

333 अगर ज़ख़्म पर बंधी हुई पट्टी को खोलना मुमकिन न हो और ज़ख्म व उस पर बंधी पट्टी पाक हो और ज़ख़्म तक पानी पहुँचाना मुमकिन हो और उसके लिए नुक़्सान दे भी न हो, तो ज़रूरी है कि पानी  को ज़ख़्म के मुँह तक  पहुँचाया जाये। लेकिन अगर ज़ख़्म या उस पर लगाई गई दवा या पट्टी नजिस हो और उसको पाक करना व ज़ख़्म के मुँह तक पानी पहुँचाना, ज़हमत व मशक़्क़त के बग़ैर मुमकिन हो और पानी ज़ख़्म के लिए नुक़्सान दे न हो, तो उसे पाक करना और वुज़ू करते वक़्त ज़ख़्म के मुँह तक पानी पहुँचाना ज़रूरी है। लेकिन अगर पानी नुक़्सान दे हो या ज़ख़्म तक पानी पहुँचाना मुमकिन न हो या ज़ख़्म नजिस हो और उसे पाक न किया जा सकता हो, तो ज़ख़्म को उस तरीक़े से धोना चाहिए जो वुज़ू के बारे में बयान किया जा चुका है। अगर ज़ख़्म पर बंधी पट्टी पाक हो, तो उस पर मसह करना चाहिए। लेकिन अगर वह पट्टी या दवा नजिस हो या उस पर तर हाथ फेरना मुमकिन न हो, मसलन उस पर कोई मरहम वगैरा लगाया गया हो, तो इस हालत में ज़ख़्म पर कोई पाक कपड़ा इस तरह रखना चाहिए कि वह जबीरा शुमार हो और उस पर तर हाथ फेरना चाहिए। अगर यह भी मुमकिन न हो तो एहतियाते वाजिब यह है कि वुज़ू और तयम्मुम दोनो अंजाम दे।

334 अगर जबीरा वुज़ू के किसी एक हिस्से पर हो तो जबीरा के अहकाम जारी होंगे और वुज़ू-ए-जबीरा करना ही काफ़ी है । लेकिन अगर जबीरा वुज़ू के कई हिस्सों पर हो तो जबीरा के अहकाम जारी नही होंगे, इस सूरत में तयम्मुम करना चाहिए।

335 जिस इंसान की हथेली और उंगलियों पर जबीरा हो और वुज़ू करते वक़्त उसने तर हाथ उस पर फेरा हो, तो वह सिर और पैर का मसह इसी तरी से कर सकता।

336 अगर किसी इंसान के पैरों के ऊपर वाले हिस्से पर जबीरा हो (यानी पट्टी बंधी हो) लेकिन कुछ हिस्सा उंगलियों की तरफ़ से और कुछ हिस्सा पैर के ऊपर वाले हिस्से की तरफ़ से खुला हो, तो जो जगह खुली हुई हो उस पर आम तरीक़े से मसह करना चाहिए और जहाँ पर पट्टी बंधी है, वहाँ पट्टी के ऊपर मसह करना ज़रूरी है।

337 अगर चेहरे या हाथों पर कई जगह जबीरा हों (यानी पट्टियाँ बंधी हों) तो उनके बीच वाले हिस्से को धोना चाहिए। अगर सिर या पैर के ऊपर वाले हिस्से पर जबीरा हो और वाजिब मसेह के बराबर कोई जगह खुली हुई हो, तो उस पर मसह करे, वरना उनके बीच मसह करे और जहाँ जबीरा हो, वहाँ पर जबीरा के अहकाम के मुताबिक़ अमल करे।

 338 अगर जबीरा ज़ख़्म के आस पास के हिस्सों को मामूल से ज़्यादा घेरे हुए हो और उसे खोलना मुमकिन न हो, तो जबीरे के अहकाम के मुताबिक़ अमल करे और एहतियात की बिना पर तयम्मुम भी करे। लेकिन अगर उसका खोलना मुमकिन हो, तो उसे खोल देना चाहिए। अगर ज़ख़्म चेहरे या हाथों पर हो, तो उसके अतराफ़ को धोना चाहिए और अगर ज़ख़्म सिर या पैर पर हो, तो उसके अतराफ़ का मसह करना चाहिए और ज़ख़्म की जगह पर ज़ख़्म के अहकाम के मुताबिक़ अमल करना चाहिए।

339 अगर किसी इंसान के वुज़ू के हिस्सों पर न तो कोई ज़ख़्म हो और न ही कोई हड्डी टूटी हुई हों, लेकिन किसी दूसरी वजह से पानी तमाम हाथों व चेहरे के लिए नुक़्सान दे हो, तो ऐसी सूरत में तयम्मुम करना चाहिए। लेकिन अगर पानी चेहरे या हाथों के कुछ हिस्से के लिए ही नुक़्सान दे हो, तो एहतियाते वाजिब यह है कि उनके अतराफ़ को धोये और तयम्मुम भी करे।

340 अगर वुज़ू वाले किसी हिस्से की किसी रग से ख़ून निकल आये और उसे धोना  मुमकिन न हो या पानी उसके लिए मुज़िर (हानिकारक) हो, तो अगर वह बंधा हुआ है तो जबीरे के अहकाम के मुताबिक़ अमल करे। लेकिन अगर वह जगह खुली हुई हो तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसके अतराफ़ को धोने के बाद, उस जगह पर पाक कपड़ा रख कर उस पर तर हाथ फेरना चाहिए।   

341 अगर इंसान के बदन पर कोई चीज़ चिपक गई हो और वुज़ू या ग़ुस्ल के लिए उसका उतारना मुमकिन न हो या उसे उतारने में नाक़ाबिले बर्दाश्त तकलीफ़ का सामना हो, तो इस सूरत में जबीरे के अहकाम पर अमल करे।

पिछला पन्ना विषय सूची अगला पन्ना