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283 अगर वुज़ू वाले हिस्सों में से कोई हिस्सा नजिस हो और वुज़ू करने के बाद शक हो कि वुज़ू से पहले इस नजिस हिस्से को पाक किया था या नही, और वुज़ू करते वक़्त उस हिस्से के पाक या निजास होने की तरफ़ मुतवज्जे नही था, तो वुज़ू बातिल है। लेकिन अगर वुज़ू करते वक़्त उसके पाक या नजिस होने की तरफ़ मुतवज्जे था, या शक करे कि मुतवज्जे था या नही, तो वुज़ू सही है। लेकिन दोनों सूरतों में नजिस जगह को पाक करना चाहिए।
284 अगर किसी इंसान के चेहरे या हाथ पर कोई ऐसा ज़ख़्म हो जिससे खून बराबर बहता रहता हो और पानी उसके लिए नुक़्सान दे न हो, तो उसे कुर या जारी पानी में डुबाये और इतना दबाये कि ख़ून बंद हो जाये, बाद में बयान किये गये अहकाम के मुताबिक़ इरतेमासी वुज़ू करे।
सातवीं शर्त- वुज़ू करने और नमाज़ पढ़ने के लिए वक़्त काफ़ी हो।
285 अगर नमाज का वक़्त इतना कम रह गया हो कि वुज़ू करने की वजह से पूरी नमाज़ या नमाज़ का कुछ हिस्सा वक़्त के बाद पढ़ना पड़े, तो इस हालत में तयम्मुम करना ज़रूरी है। लेकिन अगर तयम्मुम और वुज़ू दोनों में बराबर वक़्त लगता हो तो फिर वुज़ू करना ही ज़रूरी है।
286 अगर नमाज़ का वक़्त कम होने की वजह से किसी इंसान के लिए तयम्मुम करना ज़रूरी हो और वह तयम्मुम न करके वुज़ू करले, तो उसका यह वुज़ू सही है। चाहे वह वुज़ू इसी नमाज़ के लिए किया हो या किसी और काम के लिए।
आठवीँ शर्त- वुज़ू क़स्दे क़ुर्बत यानी अल्लाह से क़रीब होने के लिए किया जाये। अगर अपने आपको ठंडा करने या किसी और मक़सद से वुज़ू किया जाये तो बातिल है।
287 वुज़ू की नियत का ज़बान से अदा करना या दिल में दोहराना ज़रूरी नही है। लेकिन वुज़ू करते वक़्त शुरू से आख़िर तक इस बात की तरफ़ मुतवज्जे रहना चाहिए कि वुज़ू कर रहा हूँ। इस तरह कि अगर कोई उससे पूछे कि क्या कर रहे हो ? तो वह कहे कि वुज़ू कर रहा हूँ।
नवीँ शर्त –वुज़ू तरतीब से किया जाये। यानी पहले चेहरा उसके बाद दाहिना हाथ फिर बायाँ हाथ धोना चाहिए, इसके बाद सिर और पैरों का मसाह करना चाहिए और एहतियाते वाजिब यह है कि पहले दाहिने पैर का मसाह करना चाहिए और बाद में बायेँ पैर का। अगर इस तरतीब से वुज़ू न किया जाये, तो वुज़ू बातिल है।
दसवीँ शर्त- वुज़ू में एक हिस्से को धोने के बाद बिला फ़ासला दूसरे हिस्से को धोया जाये।
288 अगर वुज़ू के कामों के बीच इतना फ़ासला हो जाये कि पहले धोये हुए या मसह किये हुए हिस्सों की तरी ख़ुश्क हो गई हो, तो वुज़ू बातिल है। लेकिन अगर जिस हिस्से को धो रहा हो या मसाह कर रहा हो सिर्फ उससे पहले वाला हिस्सा खुश्क हुआ हो और बाक़ी हिस्से तर हो, मसलन बायाँ हाथ धोते वक़्त दाहिना हाथ ख़ुश्क हो गया हो लेकिन चेहरा तर हो, तो इस हालत में वुज़ू को दोबारा शुरू से करना चाहिए।
289 अगर कोई इंसान वुज़ू करते वक़्त वुज़ू के हिस्सों को बिला फ़ासला धोये, लेकिन गर्मी या बुख़ार की वजह से पहले धोये हुए हिस्सों की तरी ख़ुश्क हो जाये, तो वुज़ू सही है।
290 वुज़ू करते वक़्त चलने फिरने में कोई हरज नही है। लिहाज़ा अगर कोई इंसान चेहरे व हाथों को धोने के बाद चन्द क़दम चले और फिर सिर व पैरों का मसाह करे, तो उसका वुज़ू सही है।
ग्यारहवीँ शर्त- इंसान अपने चेहरे व हाथों को ख़ुद धोये और फिर सिर व पैरों का मसाह करे। अगर कोई दूसरा इंसान उसे वुज़ू कराये या वुज़ू करने में उसकी मदद करे, तो उसका वुज़ू बातिल है।
291 अगर कोई इंसान ख़ुद वुज़ू न कर सकता हो, तो दूसरे की मदद ले सकता है। अगर मदद करने वाला इंसान इस काम की उजरत माँगे और वह उसे अदा कर सकता हो, तो उजरत का अदा करना ज़रूरी है। लेकिन एहतियते वाजिब यह है कि वह और उसका नायब दोनो वुज़ू की नियत करे और वह अपने हाथ से खुद मसह करे। अगर वह खुद ऐसा न कर सकता हो, तो उसका नायब उसका हाथ पकड़ कर मसेह की जगह पर फेरे और अगर यह भी मुमकिन न हो, तो उसके हाथों से तरी लेकर, उससे उसके सिर और पैरों का मसह करे। एहतियाते मुस्तहब यह है कि अगर मुमकिन हो तो वुज़ू के अलावा तयम्मुम भी करे।
292 वुज़ू में जो काम इंसान ख़ुद कर सकता हो, उन्हे करने के लिए दूसरों की मदद नही लेनी चाहिए।
बारहवीँ शर्त- वुज़ू करने वाले के लिए पानी नुक़्सान दे न हो।
293 जिस इंसान को यह डर हो कि अगर वुज़ू करेगा तो बीमार हो जायेगा या यह डर हो कि अगर इस पानी से वुज़ू कर लिया तो बाद में प्यासा रह जायेगा और वह वुज़ू करले तो एहतियाते वाजिब की बिना पर उसका वुज़ू बातिल है। लेकिन अगर कोई यह न जानता हो कि पानी उसके लिए नुक़्सान दे है और वह वुज़ू करले और वुज़ू के बाद समझे कि पानी उसके लिए नुक़्सान दे था, तो उसका वुज़ू सही है।
294 अगर चेहरे और हाथों को इतने कम पानी से धोना नुक़सान दे न हो जिससे सही वुज़ू हो सके और इससे ज़्यादा पानी से धोना नुक़्सान दे हो, तो उसे कम पानी से ही वुज़ू करना चाहिए।
तेरहवीँ शर्त- वुज़ू के हिस्सों पर कोई ऐसी चीज़ न लगी हो, जो बदन तक पानी पहुँचने में रुकावट हो।
295 अगर कोई इंसान यह जानता हो कि उसके वुज़ू वाले किसी हिस्से पर कोई चीज़ लगी हुई है, लेकिन उसे शक हो कि यह चीज़ पानी के बदन तक पहुँचने में रुकावट है या नही, तो ज़रूरी है कि या तो उस चीज़ को साफ़ करे या फिर उसके नीचे तक पानी पहुँचाये।
296 अगर नाखुन के नीचे मैल जमा हो गया हो, तो वुज़ू सही है। लेकिन अगर नाख़ुन को काट दिया जाये, तो उस मैल को साफ़ करना ज़रूरी है। इसी तरह अगर नाखुन मामूल से ज़्यादा बढ़ जाये, तो बढ़े हुए हिस्से के नीचे से मैल साफ करना ज़रूरी है।
297 अगर किसी इंसान के चेहरे, हाथों, सिर के अगले हिस्से या पैरों के ऊपर वाले हिस्से पर जल जाने से या किसी और वजह से वरम (सूजन) आ जाये, तो उसे धोना और उस पर मसाह करना काफ़ी है। और अगर उसमें सुराख़ हो जाये तो खाल के नीचे पानी पहुँचाना ज़रूरी नही है। बल्कि अगर खाल का एक हिस्सा उखड़ जाये और दूसरा हिस्सा बाक़ी रहे, तो जो हिस्सा नही उखड़ा है, उसके नीचे भी पानी पहुँचाना ज़रूरी नही है। लेकिन अगर खाल इस तरह उखड़ी हो कि कभी बदन से चिपक जाती हो और कभी अलग हो जाती हो, तो इस हालत में ज़रूरी है कि या तो खाल के उस हिस्से को काट दिया जाये या फिर उसको इस तरह धोया जाये कि उसके ऊपर नीचे दोनो तरफ़ पानी पहुँच जाये।
298 अगर किसी इंसान को यह शक हो कि वुज़ू वाले हिस्सों पर कोई चीज़ लगी हुई है या नही और उसका यह शक लोगों की नज़र में सही हो, मसलन गारे का काम करने के बाद शक करे कि गारा इसके हाथ पर लगा रह गया है या नही, तो ज़रूरी है कि इसको सही से देखे या फिर इतना मले कि यक़ीन हो जाये कि अब उस पर गारा बाक़ी नही रहा है या अगर है, तो इसके नीचे पानी पहुँच चुका है।
299 जिस हिस्से को धोना हो या मसाह करना हो, अगर उस पर मैल हो और वह पानी के खाल तक पहुँचने में रुकावट न हो, तो कोई हरज नही है। इसी तरह अगर पलस्तर या सफ़ेदी वग़ैरह का काम करने के बाद, सफ़ेदी हाथ पर लगी रह जाये और वह खाल तक पानी के पहुँचने में रुकावट न हो, तो उसमें भी कोई हरज नही है। लेकिन अगर शक हो कि पानी बदन तक पहुँच रहा है या नही, तो इस हालत में इन चीज़ों का साफ़ करना ज़रूरी है।
300 अगर कोई इंसान वुज़ू करने से पहले यह जानता हो कि वुज़ू वाले हिस्सों पर कोई ऐसी चीज़ लगी है, जो बदन तक पानी पहुँचने में रुकावट है और वुज़ू करने के बाद शक करे कि इन हिस्सों तक पानी पहुँचाया है या नही, तो अगर उसको यह एहतेमाल हो कि वुज़ू करते वक़्त, वह उसकी तरफ़ मुतवज्जे था, तो उसका वुज़ू सही है।
301 अगर वुज़ू वाले किसी हिस्से पर कोई ऐसी चीज़ लगी हो जिसके नीचे पानी कभी तो खुद चला जाता हो और कभी न जाता हो और इंसान वुज़ू के बाद शक करे कि इसके नीचे पानी पहुँचा या नही, तो अगर वह जानता हो कि वुज़ू करते वक़्त वह इस चीज़ की तरफ़ मुतवज्जे नही था, तो उसे दोबारा वुज़ू करना चाहिए।
302 अगर कोई इंसान वुज़ू करने के बाद, वुज़ू वाले किसी हिस्से पर कोई ऐसी चीज़ देखे जो बदन तक पानी पहुँचने में रुकावट हो, और वह, यह न जानता हो कि यह वुज़ू के वक़्त मौजूद थी या बाद में लगी है, तो उसका वुज़ू सही है। लेकिन अगर वह, यह जानता हो कि वुज़ू के वक़्त, वह इस चीज़ की तरफ़ मुतवज्जे नही था, तो उसे दोबारा वुज़ू करना चाहिए।
303 अगर किसी इंसान को वुज़ू के बाद शक हो कि जो चीज़ बदन तक पानी के पहुँचने में रुकावट है, वुज़ू के हिस्से पर थी या नही, और उसका यह एहतेमाल अक़्ली तौर पर सही हो और उसे वुज़ू करते वक़्त उसकी तरफ़ मुतवज्जे होने का भी एहतेमाल हो तो उसका वुज़ू सही है।
305 अगर कोई इंसान यह शक करे कि उसका वुज़ू बातिल हुआ है या नही, तो उसे यह समझना चाहिए कि उसका वुज़ू बाक़ी है। लेकिन अगर उसने पेशाब करने के बाद इस्तबरा किये बग़ैर वुज़ू कर लिया हो और वुज़ू के बाद पेशाब के रास्ते से कोई ऐसी रतूबत निकले, जिसके बारे में न जानता हो कि यह पेशाब है या कोई दूसरी चीज़, तो उसका वुज़ू बातिल है।
306 अगर किसी इंसान को शक हो कि उसने वुज़ू किया है या नही, तो उसे वुज़ू करना चाहिए।
307 अगर कोई इंसान यह जानता हो कि उसने वुज़ू किया था और उससे हदस भी सादिर हुआ था, मसलन उसने पेशाब किया था। लेकिन यह न जानता हो कि कौनसा काम पहले किया था, तो अगर यह हालत, नमाज़ से पहले पेश आये, तो उसे चाहिए कि वुज़ू करे और अगर नमाज़ के दरमियान पेश आये, तो नमाज़ तोड़ कर वुज़ू करे और अगर नमाज़ के बाद पेश आये, तो वुज़ू करके उस नमाज़ को दोबारा पढ़े।
308 अगर किसी इंसान को नमाज़ पढ़ने के बाद शक हो कि उसने वुज़ू किया था या नही, तो अगर नमाज़ शुरू करने से पहले वुज़ू की तरफ़ मुतवज्जे होने का एहतेमाल हो, तो उसकी वह नमाज़ सही है। लेकिन बाद वाली नमाज़ों के लिए उसे दोबारा वुज़ू करना होगा।
309 अगर किसी इंसान को नमाज़ पढ़ते वक़्त शक हो कि उसने वुज़ू किया था या नही, तो उसकी नमाज़ बातिल है। उसे चाहिए कि वुज़ू करके दोबारा नमाज़ पढ़े।
310 अगर कोई इंसान नमाज़ के बाद शक करे कि उसका वुज़ू नमाज़ से पहले बातिल हुआ था या नमाज़ के बाद, तो जो नमाज़ पढ़ चुका है वह सही है।
311 अगर किसी इंसान को ऐसा मरज़ हो कि पेशाब के क़तरे टपकते रहते हों या पाख़ाना रोकने पर क़ादिर न हो, तो अगर उसे यक़ीन हो कि नमाज़ के अव्वले वक़्त से आख़िरे वक़्त तक ऐसा मौक़ा मिल जायेगा कि वुज़ू करके नमाज़ पढ़ सकेगा, तो ज़रूरी है कि वह उसी मौक़े पर नमाज़ पढ़े और अगर उसे सिर्फ़ इतनी मोहलत मिले जो नमाज़ के वाजिबात पूरे करने के लिए काफ़ी हो, तो उसके लिए ज़रूरी है कि नमाज़ के वाजिब हिस्सों को अदा करे और मुस्तहब हिस्सों को छोड़ दे। (जैसे अज़ान, इक़ामत,क़नूत वग़ैरह।)
312 अगर वुज़ू करने और नमाज़ पढ़ने के लिए दरकाक वक़्त के लिए भी ऐसे मरज़ से मोहलत न मिलती हो और नमाज़ की हालत में कई बार पेशाब निकल जाता हो, तो इस सूरत में अगर उसके लिए मुशकिल न हो, तो उसे अपनी बराबर में पानी का बरतन रखना चाहिए और जैसे ही पेशाब निकले एहतियाते वाजिब की बिना पर फौरन वुज़ू करके बाक़ी नमाज़ पढ़ लेनी चाहिए। अगर किसी को ऐसा मरज़ हो कि नमाज़ की हालत में कई बार पाख़ाना निकल जाता हो, तो उसके लिए भी यही हुक्म है।
313 अगर किसी को ऐसा मरज़ हो कि उसका पाख़ाना मुसलसल (थोड़ी - थोड़ी देर पर) निकलता रहता हो, तो अगर वह नमाज़ का एक हिस्सा वुज़ू के साथ पढ़ सकता हो, तो उसे चाहिए कि जहाँ तक मुमकिन हो, हर बार पाखाना निकलने के बाद वुज़ू करता रहे।
314 जिसको बार बार पेशाब निकलने का मरज़ हो, अगर दो नमाज़ों के बीच उसका एक क़तरा भी पेशाब न निकले तो वह एक ही वुज़ू से दो नमाज़ें पढ़ सकता है। नमाज़ पढ़ते वक़्त पेशाब के जो क़तरे निकलेगे उनसे कोई हरज वाक़े नही होगा। जबकि बेहतर यह है कि एहतियात की रिआयत की जाये।
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